ओह, तो आपको पैसा चाहिये,तो पैसा ही मांगते,फिर ये किसी कार्यक्रम के अध्यक्ष बनाये जाने के एवज में रुपये की मांग क्यों?देखिये मुझे आपके किसी सम्मान की जरूरत नही है।मेरे पास जब तक दौलत है तब तक मेरा सम्मान स्वयं ही सुरक्षित है।
नही-नही, सर ये बात नही है।वह तो सामान्य ऐसा होता ही है कि जिन्हें अध्यक्ष बनाया जाता है,वे संस्था को कुछ न कुछ देते ही हैं।
सोरी, भाई मुझे आपका प्रस्ताव स्वीकार नही है।आपका धन्यवाद,नमस्ते।
नगर की कथित समाज सेवी संस्था के पदाधिकारी आज सेठ मुरारीलाल जी के पास अपने वार्षिकोत्सव कार्यक्रम की अध्यक्षता के लिये उनके पास आये थे।बातों बातों में उन्होंने सेठ जी से इक्यावन हजार रुपयों के दान की इच्छा भी दर्शा दी थी।बस यही सेठ जी उखड़ गये।और उन्होंने उन्हें अपने घर से चलता कर दिया।
एक सामान्य से परिवार में जन्मे मुरारीलाल जी के पिता का बचपन मे ही निधन हो गया था।पिता का निधन क्या हुआ,मुरारीलाल जी का तो बचपन ही समाप्त हो गया।14-15 वर्ष की अवस्था मे ही मुरारीलाल जी के कंधे पर माँ की जिम्मेदारी भी पड़ गयी।मुरारीलाल जी को सहारा मिला नगर के उद्योगपति सागर रत्न जी का,
जिन्होंने उस पर तरस खा कर अपने यहां नौकर के तौर पर रख लिया।पानी पिलाना,फाइल्स इधर उधर पहुंचाना, घर के सामान की खरीद आदि मुरारीलाल ही करते।जो समय इस भागदौड़ में बचता उस समय का उपयोग मुरारीलाल जी अपनी पढ़ाई लिखाई में करते।मुरारीलाल ने सोचा था कि वह सेठ जी से अनुमति ले प्राइवेट रूप से तो परीक्षा दे ही
सकता है।एक दिन रात्रि में सर्वेंट क्वार्टर की लाइट जलती देख सेठ सागर रत्न जी मुरारीलाल के कमरे में अचानक आ गये।उन्होंने मुरारीलाल को अपनी परीक्षा की तैयारी करते पाया तो वे बहुत खुश हुए।
अब उनका नजरिया मुरारीलाल की तरफ से बदल गया था।वे मुरारीलाल में एक मेहनती और कर्तव्यनिष्ठ रूप देखने लगे थे।उन्होंने मुरारीलाल को उसकी पढ़ाई के लिये समय देना प्रारंभ कर दिया और उसकी हाई स्कूल की परीक्षा के लिये प्राइवेट फॉर्म भी भरवा दिया।
समय व्यतीत होता गया।मुरारीलाल अब सागर रत्न जी का विश्वासपात्र हो गये थे।मुरारीलाल जी इस समय तक ग्रेजुएट हो चुके थे,साथ ही सेठ सागर रत्न जी के उद्योग संचालन में उनकी महती भूमिका भी हो चुकी थी।मुरारी लाल अब सर्वेंट क्वार्टर में न रहकर कोठी के ही रूम में रहने लगे थे।
सेठ सागर रत्न जी के कोई संतान तो थी नही,उधर मुरारीलाल की माता भी स्वर्ग सिधार चुकी थी,इस कारण मुरारीलाल अब सेठ सागर रत्न को ही अपना अभिभावक मानने लगे थे तो सागर रत्न मुरारी लाल को पुत्रवत स्नेह करने लगे थे।हर दुख सुख में मुरारीलाल सागर रत्न के साथ खड़े रहते।
सागर रत्न जी को हार्ट अटैक आया तो रात दिन मुरारीलाल ने ही उनकी देखभाल की।सबसे आश्चर्यजनक बात तो ये रही,उस दौरान पूरा कारोबार सफलता पूर्वक मुरारीलाल जी ने ही संभाला।इससे सागर रत्न जी को असीम शांति भी मिली और मुरारी लाल पर उनका विश्वास और बढ़ गया।
और जब सागर रत्न जी स्वर्गवासी हुए और उनकी वसीयत सबके सामने पढ़ी गयी तो उसमें पाया कि वे समस्त अपना उद्योग साम्राज्य और संपत्ति मुरारीलाल के नाम कर गये थे।घर का नौकर सेठ मुरारीलाल बन चुका था।
मुरारीलाल ने उस समस्त संपत्ति को कभी अपनी निजी संपत्ति न मानकर अपने को उस साम्राज्य का ट्रस्टी ही समझा।अपनी जरूरत के मुताबिक ही वेतन के रूप में मानदेय लेकर मुरारीलाल जी उद्योग तो बढ़ा ही रहे थे,साथ ही सेठ सागर रत्न जी का नाम अमर रहे तो अनाथालय और वृद्धाश्रम के लिये खूब दान भी देते।
यही कारण था कि किसी ऐसी ही छोटी मोटी संस्था ने मुरारीलाल जी से दान के नाम पर इक्यावन हजार रुपये ऐंठने के लिये उनके सम्मान करने का नाटक रचा।जिसे मुरारीलाल जी ने अस्वीकार कर दिया।
उस संस्था के पदाधिकारियों को ये आशा थी ही नही,उन्हें विश्वास था कि मुफ्त में प्राप्त साम्राज्य मुरारीलाल को प्राप्त हुआ है तो उसे तो अपना सम्मान होना अच्छा ही लगेगा और उसके एवज में वह इक्यावन हजार रुपये देने को सहर्ष ही तैयार हो जायेंगे।पर यहाँ तो उनके प्रस्ताव को सिरे से ही खारिज कर दिया गया था।
इससे खिन्न हो बाहर आकर उन्होंने कहना शुरू कर दिया कि मुरारीलाल अहंकारी है उसे दौलत का नशा हो गया है, इसीलिये वह किसी का भी अपमान कर देता है।
मुरारीलाल जी ने फैक्टरी कैम्पस में सेठ सागर रत्न जी की प्रतिमा लगवाई और उसमें नगर के तमाम सभ्रांत नागरिकों को आमंत्रित किया।उस प्रतिमा का अनावरण मुरारीलाल जी ने स्व. सेठ सागर रत्न जी की वयोवृद्धा पत्नी यशोदा जी से कराया।भाव विभोर हो यशोदाजी ने मुरारी लाल को अपने सीने से लगा लिया।वे कह रही थी कि कौन कहता है उनके कोई औलाद नही है,है तो मेरा बेटा मुरारीलाल।
बालेश्वर गुप्ता,नोयडा
मौलिक एवम अप्रकाशित।
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