“सुनिए जी, त्योहार का समय है, सोच रही हूॅं बच्चों के लिए कुछ कपड़े ले आया जाए।” माधवी फलियां छीलती हुई अपने पति अभय से कहती है।
“क्यों, बच्चों के पास कपड़े नहीं हैं क्या।” अभय समाचारपत्र मोड़ कर रखते हुए तुनक कर कहता है।
हाॅं हैं, लेकिन त्योहार पर तो नए कपड़े लेने ही चाहिए, तुम्हारी ना नुकुर के कारण हमेशा मन मसोस कर रहना पड़ता है।” फलियां थाली में रखती हुई माधवी कहती है।
“अरे भाग्यवान, बच्चों को जितने अभाव में रखोगी, अपने लक्ष्य के प्रति उतने ही संघर्षशील बनेंगे। मैंने भी बहुत अभाव झेले हैं, फिर यहाॅं पहुॅंचा हूॅं।”
“हो गए सुबह सुबह शुरू। अरे घर में सब कुछ होते हुए भी अभाव में खुद की जिंदगी बीती, इसका अर्थ थोड़े ना हैं कि बीवी बच्चों को भी वैसे ही रखो।” माधवी थाली उठाकर रसोई की ओर जाती हुई कहती है।
“क्या मम्मी, पापा का व्यवहार जानती ही हैं, हम सब जानते हैं, वो कभी नहीं बदलने वाले।” नाश्ते के मेज पर बेटी कहती है।
“हूं”, माधवी छोटी सी प्रतिक्रिया देती है।
“तो आप चिंता ना किया करें, सब ठीक हो जाएगा, जब हम दोनों अपना अपना कैरियर बना लेंगे, तो वो सब करना, जो आप चाहती हैं।” माधवी की हूं में छिपी चिंता को महसूस कर बेटा कहता है।
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“देखो सुनो ये, प्रवीण शंकर जी भी कह रहे हैं। बच्चों को अपनी औकात से नीचे ही रखना चाहिए, जितने अभाव में रखा जाएगा, जीवन को उतने करीब से समझेंगे।” यूट्यूब पर मशहूर मोटिवेशनल स्पीकर प्रवीण शंकर को सुनते हुए बैठक से ही माधवी को आवाज देते अभय कहते हैं।
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“आप और आपका सोशल मीडिया, आप चलाइए अपनी जिंदगी इनके सहारे। मेरी जिंदगी इनकी मोहताज नहीं है।” अभय की आवाज पर माधवी बाहर आती हुई कहती है।
“ये तैयार होकर कहाॅं जा रही हो।” पर्स लिए माधवी को बाहर जाने के लिए तैयार देख अभय पूछते हैं।
“त्योहार के लिए समान लेने और सबके लिए नए कपड़े लेने।” माधवी पल्लू ठीक करती हुई जवाब देती है।
“मेरी नहीं तो प्रवीण शंकर जी की बात सुनकर अमल करो।” मोबाइल माधवी की ओर बढ़ाते हुए अभय कहते हैं।
“मैं अपने बच्चों में संस्कार देने के लिए और घर चलाने के लिए सोशल मीडिया की मोहताज नहीं हूॅं।”
“भाभी, भाभी।” बाहर से पड़ोसन की आवाज पर माधवी बाजार के लिए चली गई।
दोनों बच्चे अपने कमरे में माधवी के बाजार से आने के बाद उसे घेरे बैठे थे और चहक चहक कर माधवी भी उनके साथ अपनी भावनाओं को बाॅंट रही थी और बच्चे भी माधवी के साथ एक एक समान को देखते हुए चहक रहे थे। यह दृश्य अभय को भा तो रहा था लेकिन पुरुषोचित अहम् उसे वहाॅं तक जाने से रोक रहा था। आखिर प्रतीक्षा करते करते रात का भोजन हो गया, तब अभय माधवी से पूछता है, “मेरे लिए क्या लाई।”
“आपके लिए, आपकी आज्ञा बिना कुछ ले आती तो आप उसकी तरफ नजर उठा कर भी नहीं देखते और पहनते तो कभी नहीं। इतने सालों से यही तो हो रहा है इसलिए इस बार मैंने कुछ नहीं लिया।” बर्तन समेटती हुई माधवी अभय से कहती है।
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“ये देखिए, आपके प्रवीण शंकर और उनका परिवार। मालदीव में पानी में उछल उछल कर कैसे छुट्टियाॅं मना रहा है। देखिए विडियो में प्रवीण शंकर जी के बच्चे पानी में जीवन को समझने के लिए कितना ज्यादा संघर्ष कर रहे हैं और ये देखिए उनकी फोटोज, कितने महंगे महंगे ब्रांडेड कपड़ों में सजे धजे सब घूम रहे हैं। बताइए ऐसा अभाव तो भगवान सबको दे।” दो चार दिन के बाद माधवी अपना मोबाइल अभय की ओर बढ़ाते हुए अपनी हॅंसी को रोकने की कोशिश करती हुई कहती है।
“अरे तुम भी ना, ये अपनी जिंदगी के बारे में बताते हैं कि कैसे अभावों से संघर्ष कर यहाॅं तक पहुॅंचे हैं। बच्चों को क्यूं अभाव में रखेंगे।” माधवी के हाथ को सामने से हटाते हुए अभय कहते हैं।
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“लीजिए उत्तर तो आपने खुद दे दिया। वही तो मैं कहती हूॅं कि उन्होंने संघर्ष किया लेकिन अपने बच्चों को तो सारी सुविधा दे रहे हैं, फिर हम उनकी सुनकर अपने घर को अभावों का अड्डा बनाने पर क्यों तुले हैं और देखिए प्रवीण शंकर को सुनने के लिए कोई मध्यम वर्गीय या निम्न वर्गीय लोग नहीं बैठे हैं। जिनके यहाॅं वीकेंड वाला त्योहार होता है, वही ऊॅंचे तबके के लोग बैठे हैं। ये सच में बच्चों को इंस्पायर करना चाहते होते ना तो सड़क पर उतरते। यूट्यूब हो या मंच हो, सब जगह इनको पैसा ही मिल रहा है। ऐसी धांधली में आप फंसिए, मुझे मेरी वास्तविक जिंदगी पसंद है, आभासी दुनिया के अनुसार चलने वाले एक जगह खड़े ही रह जाते हैं। ऐसे भी हम मध्यम वर्ग के लोग बच्चों की आवश्यक आवश्यकता ही पूरी करते हैं तो इनके संघर्ष की कहानी की क्या जरूरत है। बच्चों को भाषण देने के बदले यदि अपनी स्वाभाविक स्थिति बताई जाए तो बच्चे समझ जाते हैं। रोज कुआं खोदो और पानी पियो वालों के लिए अपना संघर्ष ही काफी होता है।” माधवी अभय द्वारा प्रवीण शंकर का बचाव करते देख मन की दबी भावनाओं को उनके समक्ष रख रही थी।
“और मुझे बताइए ये किस ग्रंथ में लिखा है कि सुविधा पाने वाले बच्चे लक्ष्य तक नहीं पहुंचते और जिन्हें सुविधा नहीं मिलती, वही जीवन में लक्ष्य को प्राप्त करते हैं। ऐसे में तो प्रवीण शंकर के बच्चे अपराधी बनेंगे, है ना।” पति अभय की ऑंखों में देखती हुई माधवी कहती है।
अभय कुछ कह नहीं पा रहे थे, उन्हें शब्द नहीं मिल रहे थे। वो माधवी की बातों को काटना तो चाहते थे लेकिन मन ही मन समाज के चारों ओर देख रहे थे तो कई सुविधा प्राप्त बच्चे अच्छा कर रहे थे और कई प्रतिभाशाली बच्चे सुविधा के अभाव में संघर्षरत दिख रहे थे।
“आपके पास जो ज्ञान है ना, यहाॅं कुर्सी पर बैठे बैठे इनको सुनने और इनका व्यूज बढ़ाने से अच्छा होता है कि उस ज्ञान को समाज के उन बच्चों तक पहुंचाते , जिन्हें ज्ञान की आवश्यकता है, लेकिन सुविधा के अभाव में वहां तक पहुंच नहीं रहे हैं।” माधवी की बात पर अभय उसकी ओर चौंक कर देखने लगे क्योंकि वो भी इस समय कमोवेश समाज के उसी तबके की ओर भ्रमण कर रहे थे।
“तुम उचित ही कहती हो, औकात से बाहर जाकर कार्य ना करो, लेकिन दूसरों के कहे अनुसार अपना औकात सेट भी नहीं करना चाहिए। अपनी चादर जितनी लंबी हो, उतने पैर पसारो, लेकिन किसी की बड़ी या छोटी चादर देखकर उसमें घुसने की कोशिश करना निहायत ही मूर्खता है। आज से मेरी जिंदगी भी सोशल मीडिया की मोहताज नहीं होगी।” अभय कुछ देर माधवी की ओर देखते रहे, फिर एक गहरी साॅंस लेकर मोबाइल को बगल में रखते हुए कहते हैं।
आरती झा आद्या
दिल्ली
वाह वाह आरती जी
बहुत खूबसूरत सन्देश देती कहानी