शहर की धनाड्य महिलाओं में शामिल लक्ष्मी जी के इकलौते बेटे मेहुल का विवाह है। डेस्टिनेशन वेडिंग हो रही है। सारे कार्यक्रमों के लिए रिसोर्ट बुक हो चुके हैं। अमीर रिश्तेदारों को न्यौते भेजे जा चुके हैं।
आम मिलने झुलने वाले और साधारण रिश्तेदारों के लिए अपने ही शहर में एक साधारण भोज का इंतजाम किया गया है। उनकी धारणा है कि सबको जिमा भी देंगे और लिफ़ाफ़ों और गिफ्ट का लेनदेन भी हो जाएगा।
इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए उनकी बचपन की सहेली सविता जो इसी शहर में रहती है आई हुई है।
सविता और लक्ष्मी एक संग ही खेल कूद कर बड़े हुए थे। बल्कि किसी समय में लक्ष्मी के पिता सविता के पिताजी के यहां कार्य किया करते थे।
समय का फेर बदला। लक्ष्मी अत्यधिक रूपवान थी इसी कारण उसका विवाह बड़े घर में हो जाता है। ‘जिसने ना देखी हो कान की बाली उसके हाथ लग जाए खजाने की चाबी’
वाली कहावत है ना। लक्ष्मी का भी यही हाल था। अब वह पैसे के रंग में रंग चुकी थी।
सविता लक्ष्मी से मिलने गर्म जोशी से आती है लेकिन लक्ष्मी का व्यवहार उसके प्रति रुखा सुखा था। कार्यक्रम चल रहा था। सविता को देखकर लक्ष्मी की बहन पूजा ने लक्ष्मी से कहा, “सविता जीजी को नहीं बुलाया आपने शादी में। वह तो आपके बचपन की पक्की सहेली है ना”।
उसकी बात सुनकर लक्ष्मी तपाक से बोली,”हां सहेली तो
है पर अब उसके स्तर और हमारे स्तर में बहुत फ़र्क है।
शादी में बहुत बड़े-बड़े लोग आएंगे। मैंने मिडिल क्लास सोसाइटी में से किसी को भी नहीं बुलाया है। और फिर कर तो दिया आज इंतजाम सबके खाने पीने का”।
सविता लिफाफा देने आ रही थी तभी वह उन दोनों की बात सुन लेती है। उनकी बात सुनते ही वह#गच्चा खा जाती है।
पैसा बढ़ने से व्यक्ति का दंम्भ भी इस तरह बढ़ता है। यह तो उसने पहली बार देखा था। सविता लिफाफा लक्ष्मी को पकड़ाते हुए कहती है,
“ऐसी दावतों का इंतजाम बहुत किया है हमने। यह बात अलग है कि कुछ लोग खाकर भूल जाते है कि कल उनकी क्या औकात थी”। सविता लिफाफा देकर तेजी से बाहर निकल आती है।
लक्ष्मी को सविता की बात सुनकर ऐसा लगा जैसे किसी ने उसके मुंह पर तमाचा जड़ दिया हों।
#गच्चा खा जाना मुहावरा आधारित लघु कथा
सर्वाधिकार सुरक्षित
प्राची लेखिका
खुर्जा उत्तर प्रदेश