औकात – अविनाश स आठल्ये : Moral Stories in Hindi

सूरत के बड़े से “चाइनीज़ रेस्टोरेंट” में दोपहर के वक़्त सफ़ेद सूती कुर्ता पैजामा पहने एक प्रौढ़ शख़्स दाख़िल होता है।  उस व्यक्ति के रेस्टोरेंट में आते ही “मुकेश” नाम का वेटर जिसका उस समय अगले आगंतुक को रिसीव करके उसका ऑर्डर लेने का “टर्न” था,

उसने थोड़ा मायूस होकर कुर्ता पैजामा पहने उस प्रौढ़ को किनारे की छोटी सी टेबल जिस पर मात्र दो लोग आमने सामने बैठ सकते थे, पर बैठने का इशारा किया और जग में पानी भरकर उनके सामने रखते हुये बोला.. सर सादा पानी या मिनरल वाटर?

उस प्रौढ़ ने पूछा सादा पानी मतलब?

वेटर मुकेश ने कहा यह “RO वाला” पानी है जग में…

चलेगा, सादा पानी, मैं घर पर भी यही पीता हूँ। उस प्रौढ़ ने जग में से पानी निकालकर गिलास भरते हुये कहा।

सर, खाना ऑर्डर कर दीजिये… मुकेश ने मीनू कार्ड देकर उस प्रौढ़ से कहा।

अच्छा क्या है अभी खाने में? प्रौढ़ ने होटल के मीनू कार्ड पर सरसरी नज़र देखते हुए कहा…

सब कुछ मिलेगा सर.. टोमैटो सूप, मनचाओ सूप, वेज क्लियर सूप, शोरबा, हॉका नूडल्स, चाउमीन, मन्चूरियन, वेज फ्राइड राइज़….मुकेश ने टेप रिकॉर्डर की तरह बोलना जारी रखा…

ये वेज हॉका नूडल्स कितना क्वांटिटी होता है? प्रौढ़ ने प्रश्न किया।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

मेथी आलू की सब्जी – मीनाक्षी सिंह : Moral Stories in Hindi

सर एक बड़ा बॉउल भरकर होता है एक आदमी का आराम से खाना हो सकता है. मुकेश ने कहा।

और मंचूरियन? प्रौढ़ ने पुनः प्रश्न किया..

अरे सर, यहाँ पर सभी डिशेज एक बड़ा बॉउल भरकर ही हैं, जो एक व्यक्ति के लिए पर्याप्त है।मुकेश ने प्रौढ़ व्यक्ति की वेशभूषा से अंदाज़ लगा लिया था कि यह व्यक्ति ज्यादा कुछ खरीद सकते की हैसियत नहीं रखता है।

अच्छा क्या “हॉफ डिश” मिल सकती है मुझे? उस प्रौढ़ ने जैसे ही यह कहा, वैसे ही मुकेश समझ गया कि यह प्रौढ़ तो “फक्कड़ इंसान” है…

नहीं सर, कम से कम एक बॉउल का ऑर्डर तो करना ही पड़ेगा, वरना आप जा सकते हैं.. मुकेश के लिहाज़ में थोड़ी “अशिष्टता” आ चुकी थी।

अच्छा, तो मुझे एक बॉउल “नूडल्स” कर दो.. उस प्रौढ़ ने मजबूरी में कहा।

Ok, सर कहकर मुकेश सीधा किचन की तरफ़ चला गया और उसने कुक को वह ऑर्डर दे दिया।  सामान्य दशा में मुकेश नुडल्स ऑर्डर करने वाले हर शख्स से कुछ और सवाल जैसे “कौन सा नूडल्स प्लेन या हॉका नूडल्स, थोड़ा स्पाइसी करवा दूँ, साथ में सूप कर दूँ, मंचूरियन तो आपको साथ में लगेगा ही,

स्वीट डिश में क्या लेंगें” पूछकर अपने ऑर्डर की वैल्यू बढ़वाने की कोशिश करता था, लेकिन यहां तो उसे कन्फर्म हो चुका था कि यह प्रौढ़ “खाली जेब” से आया है, पता नहीं यह बिल भी चुका पायेगा या नहीं।

अभी प्रौढ़ ने वह नूडल्स बमुश्किल आधा बॉउल ही खाया होगा.. कि तभी उसे उस मुकेश की दूसरे साथी वेटर से अपना का मज़ाक बनाकर कही बात सुनाई दी… “पता नहीं कैसे कैसे लोग इस रेस्टोरेंट में चले आतें हैं, “औकात ” नहीं है फ़िर भी यहां आकर खाएंगे जरूर…” मेरी तो किस्मत ही ख़राब थी, जो मेरी बारी में ऐसा फक्कड़ इंसान आया।

वह प्रौढ़ उस वेटर की बात सुनकर मन ही मन हल्के से मुस्कुराया, अब तक उसका पेट भर चुका था, हालांकि उसका बॉउल पूरा ख़त्म नहीं हुआ था।

उस प्रौढ़ ने पुनः मुकेश को बुलाकर कहा क्या यह बचा हुआ नूडल्स “पैक” करवा सकते हो?

मुकेश ने चिढ़ते हुये कहा, सर करवा तो दूँगा, पर इसका “10 रुपये पैकिंग चार्ज” अलग से लगेगा। मानो मुकेश तौल रहा हो कि यह प्रौढ़ इतना पैसा दे पायेगा भी या नहीं।

ठीक है भाई, पैक करवाकर ले आओ.. उस प्रौढ़ ने कहा।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

सुनो बाबा – देवेंद्र कुमार Moral Stories in Hindi

कुछ ही देर में मुकेश बचा हुआ नूडल्स पैक करवाकर ले आया और साथ ही खाने का बिल भी ले आया।

पैकिंग चार्ज और टैक्स मिलाकर उस खाने का कुल बिल 368 रुपये हुआ था।

मुकेश वह बिल देकर, उस प्रौढ़ की तरफ़ संशय से देखने लगा, कि कहीं वह प्रौढ़ बिल देखकर “घबरा” तो नहीं रहा है।

उस प्रौढ़ ने कुर्ते की जेब से अपना  महंगा वॉलेट निकाला, जिसमें 500-500 के नोट भरे हुये थे, उसमें से एक नोट मुकेश को देकर, वह प्रौढ़ चुपचाप रेस्टोरेंट से बाहर निकल गया..

मुकेश ने मैनेजर को 500 रुपये देकर बाकी के 132 रुपये लिये और उस प्रौढ़ के पीछे पीछे उसे वह बाकी के रुपये वापस करने आया। तभी मुकेश देखता है कि, सफेद ड्रेस और कैप पहने हुये एक ड्राइवर “बीएमडब्ल्यू” से उतरकर विनम्रता से कार की पिछली सीट का दरवाजा खोलता है, और वह प्रौढ़ उस कार की पीछे की सीट पर बैठ जाता है।

यह देखकर मुकेश थोड़ा घबरा गया, जिसे वह “फक्कड़ आदमी” समझ रहा था, वह तो “करोड़पति सेठ” निकला, मुकेश को अब अपनी अशिष्टता पर शर्म महसूस हो रही थी।

अंततः मुकेश ने हिम्मत करके उस प्रौढ़ से कहा “सेठ जी” यह बाकी के 132 रुपये..

यह बाकी का चेंज आप टिप समझकर रख लो, उस प्रौढ़ ने कहा.. और अपने ड्राइवर को वह पैक किया बचा हुआ नूडल्स देकर बोला, यह “खाना” चौराहे पर किसी “भूखे” को दे देना.. अब मेरे पेट की  “औकात” नहीं रह गई है पूरा एक “बॉउल नूडल्स” खाने की।

अविनाश स आठल्ये

स्वलिखित, सर्वाधिकार सुरक्षित

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!