अटूट बंधन- सीमा प्रियदर्शिनी सहाय । Moral stories in hindi

“यह हो गई तुम दोनों का गठबंधन…सदा सौभाग्यवती रहो…!तुम दोनों की जोड़ी सलामत रहे…!”

रीमा भाभी ने अपनी ननद आकांक्षा और नंदोई अनय के शादी का जोड़े के गांठ बांधते हुए कहा।

शादी हो गई थी गठबंधन भी हो चुके थे बस फेरे पड़ने थे फिर विदाई।

फेरे के बाद माहौल बहुत ही ज्यादा ही गमगीन हो गया था।

शाम तक चहकती हुई आकांक्षा बार-बार आईने में देख कर खुद को सजा संवार रही थी। दुल्हन बनने की उसकी ललक बाबुल के घर से दूर जाने की सोच कर ही मन भरा जा रहा था।

उसके आंखों से आंसू निकल गए और वह फूट-फूट कर रोने लगी।

लाल जोड़े में सिमटी हुई नई नवेली दुल्हन आकांक्षा को उसके रिश्तेदारों ने घेर लिया गले लगाते हुए उसे समझाने लगे।

“ बेटी, यह तो दुनिया की रीत है बेटी को तो विदा होकर जाना ही पड़ता है…!

यह गठबंधन  तो एक अटूट बंधन है,सात जन्मों का  बंधन है।

रो मत, दिल छोटा मत कर। कल तुझे दूसरे घर जाना है वही तेरा अपना घर होगा। यह तो फिर पराया हो जाएगा।”

इस कहानी को भी पढ़ें:

बहू खुशियों को वक्त का मोहताज नहीं बनाते ..! – मीनू झा 

आकांक्षा की दादी ने उसे अपने गले लगाते हुए कहा।

अपनी दादी की बात को गांठ बांध कर आकांक्षा अपने नए घर में आ गई।

ससुराल की दहलीज पार करने से पहले घर के नियम और पूजा करने के बाद उसे गृह प्रवेश कराया गया। 

एक तरफ मायके छोड़ने का गम भी था दूसरी तरफ अपने इस नए रुप को जीने की ललक।

“तुम लोग दोनों थोड़ी देर आराम कर लो फिर शाम को पूजा पाठ शुरू हो जाएगा।” आकांक्षा की सासू मां ने उन दोनों को एक कमरे में ले जाकर बैठाते हुए कहा।

आकांक्षा झिझकी हुई थी। वह संकोच में बिस्तर केएक कोने में  बैठ गई।

उसका पति अनय उसके पास आकर बैठ गया। उसने आकांक्षा के दोनों हाथों को अपने हाथ में लेकर कहा

“आकांक्षा हमारी नई जिंदगी की बहुत सारी शुभकामनाएं…..! मेरे जीवन साथी बनने के लिए भी थैंक्यू।

अब हम दोनों मिलकर एक हैं।हम दोनों को एक साथ अपनी सारी जिंदगी गुजारनी है। सारे सुख सारे दुख एक दूसरे के साथ बांटने हैं इसलिए पहले हम दोनों के मन का मिलन पहले होना चाहिए।

आज से हम एक दूसरे से प्रॉमिस करेंगे कि हम ना एक दूसरे से कुछ छुपाएंगे और नहीं एक दूसरे को निचा दिखाएंगे। एक दूसरे का बेस्ट दोस्त बनकर अपनी शादी को निभाएंगे।

तुम तैयार हो?”

आकांक्षा शरमाते हुए अपना सर हिला

कर यहां में उत्तर दिया।

“ तो फिर मिलाओ हाथ…!” अनय ने अपना हाथ आगे बढ़ाया। 

आकांक्षा ने अपना हाथ उसके हाथों पर रख दिया।

इस कहानी को भी पढ़ें:

सासू मां ने किया ही क्या है?? –  कनार शर्मा

अनय ने उसके हाथों को पकड़ कर अपने होठों से चूम लिया

दो-तीन दिन पूजा पाठ, रिसेप्शन और फंक्शन में ही निकल गए फिर अनय ने घूमने के लिए गोवा का प्लान बनाया।

फिर उसे नौकरी पर वापस लौटना भी था।  गोवा के बीच पर चलते हुए आकांक्षा न जाने कैसे गिर पड़ी। 

उसके पैर में चोट लग गई और चलने फिरने से लाचार हो गई।

उसके पैरों में मोच आ गया था। अनय उसके लिए फिक्र मंद था।

उसने डॉक्टर को दिखाया फिर दो-तीन दिन लगातार उसकी अच्छे से देखभाल किया। तीन दिनों के बाद आकांक्षा के पैरों का सूजन कम होने लगा।

घूमने का समय समाप्त हो रहा था क्योंकि वापसी के टिकट हो चुकी थी।

अनय बहुत ही मायूस हो गया था. आकांक्षा गिल्टी फील कर रही थी। 

उसने अनय के पैरों पर बैठकर कहा 

“अनय आई एम सॉरी.. मेरे कारण हम हॉलीडे और हनीमून एंजॉय नहीं कर पाए।” “कैसी बातें कर रही हो आकांक्षा, किस बात के लिए सॉरी? अगर तुम्हारी जगह मेरा पैर फिसला होता और मेरे पैरों में मोच होता तो मैं तुम्हें सॉरी बोलता क्या?

 मैं तुमसे पहले भी कहा था ना कि हम दोनों पति-पत्नी है..  एक अटूट बंधन में बंध चुके हैं। कोई किसी को सॉरी नहीं बोलेगा। हम दोनों एक है, एक दूसरे के सुख-दुख के साथी।”

इस कहानी को भी पढ़ें:

  ‘ वक्त बदलता अवश्य है ‘ – विभा गुप्ता

आकांक्षा की आंखों में आंसू आ गए। वह रोते हुए भी मुस्कुरा दी।

 अनय ने अपने दोनों बाहें फैला दिया। आकांक्षा उसमें आकर सिमट गई ।

अनय ने  उसे अपने बाजुओं में कस लिया। शाम का समय था। ठंडी ठंडी हवा सामने समुद्र तट से आ रही थी।

दोनों उन हवाओं के आगोश में दोनों एक हो रहे थे…!

**

प्रेषिका–सीमा प्रियदर्शिनी सहाय

#अटूट बंधन

©®

 मौलिक और अप्रकाशित रचना 

बेटियाँ के साप्ताहिक विषय #अटूट बंधन के लिए

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!