सुमि आज बहुत उदास थी। जिन बच्चों की परवरिश की खातिर उसने छोटे से छोटा काम किया । दुत्कारे सही ,अपशब्द सहे ,आज उन्हीं दिल के टुकड़ों को सुमि पर शर्म आ रही थी । कम उम्र में लंबी बिमारी के चलते पति को खो दिया था सुमि ने ।
सुमी की तो जैसे दुनिया ही खत्म हो गई थी। तीन छोटे-छोटे बच्चे और वह अकेली। आजकल तो जिम्मेदारियों का मुंह देख गैर तो गैर अपने भी पराए हो जाते हैं। यही सब सुमि को भी झेलना पड़ा था। छोटे से रोहित की किलकारी से सुमि का ध्यान टूटा ,
पर फिर रुलाई छूट गई यह सोचकर कि इस नादान को तो यह भी नहीं पता कि इसने क्या खो दिया है। यही हाल 4 साल की निशा का भी था । बचपने में गुम अपनी गुड़िया का हाथ थामे बैठी थी वो ,इस बात से अनजान कि उसके पापा का हाथ उसके हाथ से हमेशा-हमेशा के लिए छूट चुका है । पर 6 साल का अश्विन मां की सुबकियों में लगातार अपना साथ देता रहा
बच्चों की भूख और घर के खाली डिब्बों ने सुमि को अधिक दिन शॉक में ना रहने दिया । जिम्मेदारियों के बोझ और पति की यादों से उसके कंधे ज्यादा झुकने लगे। घर- घर जाकर बर्तन मांजे, झाड़ू पोछा किया, टिफिन सर्विस की पर कभी थकी नहीं ,
कुछ भी करती पर अपने कलेजे के टुकड़ों को किसी चीज की कमी ना होने देती। समय बदला टिफिन सर्विस के खाने का स्वाद और खुशबू फैली तो फैलती चली गयी। वहीं अश्विन बड़ा होकर अच्छी नौकरी पर लग गया, निशा कॉलेज और छोटा स्कूल जाने लगा। सुमि को लगा उसकी तपस्या सफल हो गई ।
अपने पति की फोटो के आगे खड़ी हो बताती रहती वो उन्हें कि आज उनके बच्चे कितने बड़े हो गये हैं , पर बच्चों के मन में अपनी मां के लिए आदर -सम्मान जाता रहा था ,उन्हें अपने दोस्तों से अपनी मां का परिचय करवाने में शर्म आती थी।
सुमि का दिल उस समय पूरी तरह टूट गया जब उसके छोटे से रोहित ने अपने दोस्त के सामने उसे घर की आया कह कर संबोधित किया । टूट कर बिख़र गई सुमि। दूध पीते रोहित के मुंह से दूध की बोतल ना छूटने पाए सुमी ने पहली बार किसी के सामने हाथ जोड़े थे । बर्तन मांजे थे।
पति के जाने के बाद जो बिखराव उसने समेट कर रखा था आज आंसूओं से बिखर गया था । यही व्यवहार बेटी निशा और अश्विन भी करते आ रहे थे ।सुमि का आत्म सम्मान उसे कचोटने लगा । जिन बच्चों को अच्छा जीवन देने के लिए उसने अपने आत्मसम्मान को कहीं दबोचकर रख दिया था ,
वह उसे ललकार रहा था। सुमि ने जो टिफिन सर्विस यह सोचकर बंद कर दी थी कि अब तो उसका बेटा उसका हाथ बटाएगा,उसने वो दोबारा शुरू कर दी।
कुछ ही समय में उसके पुराने सारे कांटेक्ट उसे मिलने शुरू हो गए । इस बार ठान लिया था उसने कि अपना आत्मसम्मान गिरने नहीं देगी और अब कभी टूटेगी भी नहीं।धीरे-धीरे कई बड़ी कंपनियों के आर्डर आने शुरू हो गये उसके पास ।
दिन- रात मेहनत, अच्छा स्वाद और खाने की महकती खुशबू ने सुमि के काम को खूब बढ़ा दिया था ।सुमि मेहनत तो कब से करती आ रही थी पर आज वो पूरे सम्मान और इज्ज़त के साथ खड़ी हुई थी अपने आसमान को पाने के लिए ,
बच्चों की नजरों में अपने आप को साबित करने के लिए । अब सुमि के बच्चों को उस पर नहीं अपने आप पर शर्म आने लगी थी और उन्हें अपने बर्ताव पर शर्मिंदगी हो रही थी कि जब माँ को हमारी ज़रूरत थी हमने माँ को अकेला कर दिया और इस तरह दिल दुखाया। हमारी माँ किसी से कम नहीं।
आज सुमि के होटल का उद्घाटन था । शलभ की तस्वीर को सीने से लगाए वो खुद में एक अजीब सी ताकत महसूस कर रही थी जो शायद उसे उसके आत्मसम्मान से मिली थी।
#आत्मसम्मान
तृप्ति शर्मा।