अपराध बोध – उमा वर्मा

अंधविश्वास को तोड़ती छोटी सी स्वरचित  कहानी ।—- सुबह होते ही भाग दौड़ शुरू हो जाती है ।पति का नाश्ता, बच्चों की टिफ़िन,घर की साफ-सफाई  सब कुछ तो जरूरी  हो जाता है ।आज भी सारे काम खत्म करके  चाय का कप लेकर  बालकनी में बैठी ही थी कि पति चिल्लाए “” मेरे मोजे नहीं मिल रहें हैं शीतल”” जरा खोज दो आकर ।अब वैसे भी आज लेट हो गया आफिस के लिए ।

“” जरा देर को चैन नहीं ।शीतल के सिर में भी दर्द है आज ।पति को मोजे पकड़ाये और फिर चाय पीने लगी ।तभी पड़ोस की उर्मिला दी आ धमकी ।”” याद है शीतल, कल रामनवमी है और पंडित जी के यहाँ भैरो बाबा की पूजा भी है ।उनकी पत्नी के उपर पीर साहब और सायरा बुआ आती हैं ।

सुनते हैं बहुतों  का दुख दूर करते हैं ।तुम भी तो सिर दर्द लेकर बैठी रहती हो।मै तो कहती हूँ एक बार चल कर देख लो ।शायद फायदा हो जाए।शीतल को इन बातों पर विश्वास नहीं था ।

लेकिन उसने हामी भर दी ।वह तो बात की तह तक पहुँचना चाहती थी ।आखिर माजरा क्या है ।बच्चों को लोहे की जंजीरों से पीट कर बीमारी ठीक करना, उपर से मिठाई का पैकेट गिरना, आखिर क्या है यह सब ।दूसरे दिन पति और बच्चों की छुट्टी थी  रामनवमी के कारण सो उसने सब को ननद के यहाँ भेज दिया मिलने के लिए ।ननद भी इसी शहर में रहती थी ।

जल्दी जल्दी तैयार हो कर शीतल उर्मिला दी  के साथ पंडित जी के यहाँ पहुँच गयी ।दस बज रहे थे ।और उनके घर में काफी भीड़ जमा हो गई थी ।शीतल भी भीड़ में शामिल हो गई ।औरतें, बच्चे और आदमी  सब थे।कुछ देर बाद पंडित जी अपनी पत्नी के साथ पधारे ।लोगों ने जयकारे लगाए ।कानाफूसी होने लगी ।” सुना है पंडिताईन ने दो तीन भूतों को अपने वश में कर लिया है ।


“” वे उनसे मनचाहे काम करा सकती है ।शीतल का ध्यान उनकी बात चीत पर  लगा  था ।वे और भी सतर्क हो गई ।ढोल  ताशे बजने लगे ।पंडिताईन  झूमने लगी ।महिलाएं अपने बीमार बच्चों को उनकी गोद में डाल देती।फिर वे लोहे के जंजीरों से बच्चे के सिर पर फिराती और कहती

“” जा तेरा बच्चा ठीक हो जाएगा “” माताएं खुश हो जाती ।उनके पिता मिठाई का पैकेट लाते जो एक आदमी सीधे कमरे के छज्जे पर ले जाता और दूसरा आदमी छिप कर वह पैकेट गिरा देता ।

लोग कहते ” देखो पीर बाबा ने मिठाई की वर्षा की है ।अब सबकुछ ठीक हो जाएगा ।एक घंटे का कार्य कर्म  चला फिर ब्रेक हो गया ।अब दूसरे पारी का खेल शुरू हो गया ।पंडिताईन ने चुनरी ओढ़ लिया ।सायरा बुआ उनपर आ गई ।पंडित जी बगल में बैठ गए पत्नी के मुँह में लगातार पान का बीड़ा ठूसने लगे।लोग अपनी समस्या बताते ।पंडिताईन ठीक होने का भरोसा देती ।फिर कपड़े, रूपये और मिठाई की बरसात होती ।शीतल अनमने भाव से सब देख रही थी ।

उर्मिला दी ने कयी बार कहा कि अपने सिर दर्द की समस्या बताए।पर शीतल को तो इन बातों पर विश्वास नहीं था ।वह तो बात की तह तक पहुँचना चाहती थी ।दो घंटे बाद बैठक खत्म हो गई ।हर साल रामनवमी को यह खेल होता ।फिर एक दिन मौका देखकर शीतल ने पंडिताईन को जा घेरा ।अच्छा मौका मिला था ।पंडित जी कहीँ  बाहर गये थे ।””” ललिता, तुम मुझे सच सच बताओ, यह सब क्या है? क्यों करती हो यह सब ।क्यो करती हो यह नाटक? ललिता नाम था पंडिताईन का।वह घबरा गयी।”” नाटक नहीं है दीदी, सच्चाई है

“”” देखो ललिता, झूठ मत बोलो, सच सच बताओ  वरना मैं तुम्हारे नाटक का भंडा फोड़ दूँगी ।ललिता रोने लगी ।उसने आस पास देखा।कोई नहीं था ।””” दीदी आप अंदर आइये ना, सब बताती हूँ “”” उसके घर में कोई नहीं था ।बच्चे स्कूल गये थे ।ललिता ने दरवाजे को बंद किया फिर बताने लगी।”” दीदी, शादी कर के आई तो घर वाले बहुत खुश थे।काफी दान दहेज भी मिला था ।


सास ससुर, जेठ जेठानी, ननदे बहुत मान देती ।साल दर साल बीत गए ।शादी के बारह साल बीत गए, मै माँ नहीं बन पायी ।अब घर वालों का रवैया बदलने लगा ।घर के लोग गालियां देते ।निपूती कहते।कहते दूसरा ब्याह कर देगें बेटे का।मै रोती गिड़गिड़ाती तो लात घूंसे से पिटाई कर देते ।

दिन किसी तरह बीत रहा था ।ठीक से भर पेट खाना नहीं मिलता ।मै बहुत कमजोर हो गई ।एक दिन बहुत तेज बुखार हो गया ।मै बिस्तर पर पड़े पड़े किस्मत को कोस रही थी कि दरवाजे पर ठक ठक हुई ।दरवाजे को खोला तो सामने सास खड़ी थी।बुखार से मेरा  बदन कांप रहा था ।

मेरी आँखे लाल हो रही थी ।सास ने देखा तो चिल्लाने लगी—-” बड़ी बहू, देखो तो, लगता है इस पर देवी  आई है “” “।”” हाँ, सच में “”। जेठानी ने सहमति जताई ।वे लोग हाथ जोड़ कर खड़े हो गए ।मैंने भी मौके का फायदा उठाया।””” इस अबला को ठीक से खाना  कपड़ा दो,वर्ना  सत्यानाश हो जायेगा

“” फिर क्या बताऊँ दीदी, सब का रवैया ही बदल गया “” अब रोज मेरी आरती होने लगी ।अच्छे कपड़े मिलने लगे।अच्छा भोग लगता ।बात दूर तक फैली ।””” अरे, वह ललिता है ना, पंडित जी की पत्नी, उनपर  देवी जी  आती हैं “” पीर बाबा और  सायरा बुआ आती हैं ।लोग अपनी समस्या बताते और खुश हो कर जाते ।संयोग से कुछ की मनोकामना पूरी भी हो जाती ।पंडित जी सब कुछ समझ गये।विचार किया ।

“” ललिता, यह तो अच्छा बिजनेस है, क्यो न हम इसे आगे बढाये।”” शादी के चौदह साल बाद दो बच्चे भी हो गये ।घर वालों ने इसे देवी कृपा  माना।अब जो मुझे दिन भर गालियाँ देते वे हाथ जोड़ कर खड़े हो गए ।मैंने भी मौके का फायदा उठा लिया ।तब से हम बहुत खुश हैं दीदी ।सास ससुर भी अब नहीं रहे, और जेठ जेठानी भी गांव में रहने लगे ।मैंने यहाँ आकर अपना यह बिजनैस चालू किया ।

आज भी बहुत सारे पढ़े लिखे लोग अंधविश्वास को सही मानते हैं जिसके कारण हमारी दुकान चलती है ।यही है मेरी कहानी दीदी ।””– पर ललिता, यह तो गलत है ना “”? तुम कब तक लोगों को ठगती रहोगी? तुम में बहुत सारे गुण हैं, तुम सिलाई कढ़ाई जानती थी, अपना एक दूकान खोल सकती हो ।

मै तुम्हारी मदद करूँगी ।ललिता ने शीतल के पैर पकड़ लिया “” आप बहुत नेक है दीदी, मुझे भी यह सब करना अच्छा नहीं लगता है एक  अपराध बोध तो होता ही है ।शीतल खुश थी।आज उसने किसी को सही राह जो दिखाई ।—— ।

 

 

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