अपनों की पहचान – रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi

“माँ ऽऽऽ” फोन पर बिलखती बेटी निशि की आवाज सुन सुनंदा जी घबरा गईं 

कल तक तो सब कुछ ठीक ही था फिर अचानक रात को ऐसा क्या हो गया जो मेरी बेटी के हँसते खेलते परिवार को ग्रहण लग गया 

“बेटा तुम चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा बस तुम हिम्मत मत हारना और मैं आज ही तेरे पास आ रही हूँ ।” कहकर सुनंदा जी फोन रख पति वीरेश जी से टिकट के लिए …बोल सामान पैक करने लगी

शाम तक वो बेटी के पास पहुँच गई और सीधे अस्पताल की ओर चली गई… जहाँ बेटी का उतरा चेहरा देख वो रो पड़ी साथ में पाँच साल का रुहान माँ से चिपका पड़ा था 

माँ को देखते ही निशि उनके गले लग फूट फूटकर रोने लगी ।

तभी किसी महिला ने निशि को चुप करवाते हुए कहा,” अब हिम्मत रखो निशि … तुम्हारी माँ भी आ गई है ।” 

उस महिला की ओर आश्चर्य से देखते हुए सुनंदा जी की आँखों में सवाल उभर आए…,” ये तो रोहन के परिवार के लोग नहीं लग रहे…आखिर कौन है जो निशि से इतनी हमदर्दी और अपनापन जता रहे।”

“ नमस्ते आँटी जी मैं तुहिना…निशि की पड़ोसी भी हूँ और ये भी कह सकते है कि यहाँ पर उसका परिवार भी मैं ही हूँ ।” तुहिना ने नमस्ते करते हुए कहा 

“ अच्छा तुम ही तुहिना हो… निशि  हमेशा तुम्हारी बातें किया करती है…मतलब कल से आप लोग ही  निशि के साथ यहीं पर हैं… आप लोग घर जाइए… अब मैं यहाँ पर हूँ तो घबराने की ज़रूरत नहीं है ।”सुनंदा जी ने कहा

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निशि ने भी तुहिना और उसके पति को जाने का इशारा किया और वो लोग परिस्थिति सँभली हुई जान कर वहाँ से चले गए 

“ निशि ऐसा क्या हो गया बेटा जो रोहन को दिल का दौरा पड़ गया ?” सुनंदा जी कल  दोपहर में जब निशि से बात कर रही थी तो सब कुछ ठीक ही था रोहन भी अभी चालीस का ही था ऐसे में दिल का दौरा…उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था 

“ माँ क्या बताऊँ जब से रुहान हुआ है पता नहीं क्यों जेठ जेठानी को अच्छा नहीं लग रहा है वो बात बात पर रोहन को कुछ ना कुछ सुनाते रहते हैं…सास ससुर के गुज़र जाने के बाद जेठ जेठानी खुद को मालिक समझने लगे… हमने भी कभी एतराज़ नहीं किया बड़े है तो हमारे लिए माता-पिता के समान ही माना पर इधर एक साल से वो हमारे जमीन जायदाद को लेकर बहुत परेशान कर रखें थे रोहन ने कहा भी भैया सब कुछ तो पिताजी ने हम दोनों में बराबर बाँट दिया है फिर किस बात पर आपको तकलीफ़ हो रही है….

उन लोगों को हमारा हिस्सा चुभ रहा है… जेठ जी की तीन बेटियां है.. और हमने रुहान के बाद कुछ सोचा नहीं उनका कहना है तेरा एक ही तो बेटा है….. क्या करेगा इतना कुछ रख कर मेरी छोटी बेटी के लिए अपने हिस्से से कुछ दे दे …रोहन बोलते हैं भैया आपको जब जरूरत हो पैसे से मदद कर दूँगा पर ये जमीन जायदाद की बात मत किया करो… पर कल शाम को जेठ ,जेठानी ,छोटी बेटी के साथ अचानक घर आ गए और फिर से वही बात रोहन से कहने लगे…

माँ जेठ जी बोलते सो बोलते कल तो जेठानी जी और छोटी ने भी बोलना शुरू कर दिया…छोटी ने तो यहाँ तक कह दिया.. चाचू क्या मैं आपकी बेटी नहीं हूँ जब पापा कह रहे हैं तो दे दीजिए… उन्हें दीदियों की शादी के लिए अपनी जमीन बेचनी पड़ी अब मुझे पढ़ाई करने के लिए इतने पैसे नहीं है पापा के पास… तभी तो आपसे थोड़ी सी ज़मीन मुझे देने को कह रहे हैं वो बेच कर मेरी पढ़ाई हो जाएगी क्या आप नहीं चाहते मैं पढ़ाई करूँ?”कहते कहते निशि रूक गई और उसकी हिचकी बँध गई 

“ फिर क्या हुआ निशि?” सुनंदा जी ने पूछा 

“ माँ  ये सब सुन कर रोहन की हालत बिगड़ने लगी वो परेशान हो रहा था पसीने पसीने होने लगा और बोला ठीक है भैया आप लोगों को जमीन ही चाहिए ना ले लेना… कौन सा मुझे इस दुनिया से कुछ लेकर जाना है सब यहीं रह जाएगा जो मेरे पिता ने मुझे दिया वो मैं अपने बेटे को देकर जाता… सब ये सुन कर बहुत खुश हो गए थे पर मैं चुप नहीं रह सकी।” ये कहते हुए निशि के चेहरे के भाव बदल से गए 

“ कहीं तेरी बातों ने तो… रोहन को इस हाल में नहीं पहुँचा दिया?” सुनंदा जी घबराते हुए बोली 

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“नहीं माँ… मैं अपने पति को तकलीफ़ क्यों दूँगी… मैंने बस यही कहाँ पुरखों की जमीन तो पहले ही भैया ने बेच दिया है अब जो थोड़ा बचा है उसको तो सँभालना चाहिए… और छोटी को पढ़ाई ही करना है तो उसके लिए लोन लिया जा सकता है पर ये जमीन जब पिताजी ने रोहन को अपनी मर्जी से दिया था तो अब उसके पास ही रहने दीजिए.. और रोहन कह तो रहे हैं…और पैसे की जरूरत होगी तो हम लोग है ना परिवार होते किस लिए है…

मेरे इतना कहते ही जेठानी ने तपाक से कहा- देखा मैं ना कहती थी देवर जी बस अपनी बीबी की सुनते… वो कभी हमारी मदद नहीं करेंगे और परिवार किस लिए होते कब मदद कर दी है तुमने कौन सा तकलीफ़ में साथ दिया है वो तो मेरे मायके वाले मदद करते रहते हैं परिवार क्या होता है वो तुम्हारे भैया को उनके ससुराल वालों ने समझाया है…उनके अपने भाई ने नहीं…रोहन और मैं एक दूसरे का मुँह देखने लगे.. जेठ जी की दोनों बेटियों के ब्याह में रोहन ने मदद किया…

जेठ जी जब भी तकलीफ़ में होते वो रोहन को ही फोन करते और रोहन हमेशा आगे बढ़कर उनकी मदद किया करते पर आज जेठानी के मुँह से ये सब सुन कर रोहन से बरदाश्त ना हुआ …वो जोर से बोल गए…बस भाभी… भैया को तो पता होगा मैं क्या हूँ क्या नहीं हूँ पर आपको नहीं पता तो कोई बात नहीं पर जब आपको यही लगता है आपके परिवार वाले अपने सगे है तो उनसे ही मदद लिजिए हमसे नहीं… ये सुन कर वो सब लोग बिना खाना खाए ही उठ कर रात की बस से अपने घर जाने के लिए निकलने लगे…

तभी रोहन कराहते हुए गिर पड़े मैं जोर से रोहन चिल्लाई पर जेठ जेठानी अनसुना कर बिना देखे निकल गए… मैं दरवाज़े पर आकर भैया भैया रूकिए रोहन ..  कहती रही वो नहीं रूके तभी तुहिना मेरी आवाज़ सुन कर बाहर आई…मेरी हालत देख वो घर आकर रोहन को देखते ही जल्दी से अपने पति को कॉल कर के बुलाई और सीधे हम अस्पताल आ गए.. 

यहाँ कैसे क्या करना है सब तुहिना के पति ने किया… रोहन को दिल का दौरा ही पड़ा पर हल्का ही था डॉक्टर उसे ऑब्ज़रवेशन में रखने को बोले है मैं जब थोड़ी सँभली तो जेठ जी को फोन कर के बताना चाहा आखिर हमारे लिए तो वही परिवार है पर पता है वो मुझे क्या बोले…

अब तुम लोगों से हमारा कोई रिश्ता नहीं है….वो मरता है तो मरे हमें क्या…माँ लोग परिवार परिवार करते हैं बताओ ऐसा परिवार होता है…… वो तो हमारे पड़ोसी ऐसे थे जो रात से हमारे साथ है मुझे हिम्मत दे रहें।” निशि कहते कहते एक लंबी सांस ली

“ पड़ोसियों और परिवार में यही तो अंतर होता है बेटा …सच कहूँ तो बहुत बार ऐसा ही होता है… कहने को तो बहुत लोग अपने होते हैं पर जरूरत में जो साथ दे वही अपना होता है चाहे वो पड़ोसी हो या परिवार… तेरी जो भी परिस्थितियाँ रही उसमें तेरे परिवार ने मुँह मोड़ लिया तो पड़ोसी ने अपना समझ तेरी मदद की वो तुमसे कुछ नहीं माँगेंगे पर परिवार जब भी मदद करता है एक उम्मीद के साथ उसे बदले में कुछ चाहिए होता है…सुन अब ज़्यादा मत सोच …अभी रोहन सो रहे है तू रुहान को लेकर घर चली जा… थोड़ा आराम कर ले…

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यहाँ अस्पताल में वैसे भी डॉक्टर सब सँभाल ही रहे हैं ….रोहन जल्दी ठीक हो जाएगा ।” बेटी को सांत्वना देते हुए सुनंदा जी का दिल भारी हो गया…कितनी खुश थी बेटी की शादी कर के..अब लोग ज़्यादातर छोटा परिवार ही खोजते हैं और उनकी बेटी को वो मिल गया था

पर परिवार में ये जमीन जायदाद का लफड़ा उनके दामाद के जीवन पर ऐसे संकट लाएगा ये वो तो कभी सोची ही नहीं थी… अच्छा होता बड़ा परिवार होता और ज़्यादा लोग होते तो कोई एक तो साथ होता किसी पड़ोसी की तब शायद जरूरत ना होती पर शायद मेरी बेटी के भाग्य में परिवार से ज़्यादा पड़ोसी की जगह बन गई ।

वो ये सब सोच ही रही थी कि डॉक्टर राउंड पर आ गए थे उन्हें देखते ही सुनंदा जी ने पूछा,” रोहन कैसे है?”

“ अब उनकी हालत सुधर रही है पर कोशिश कीजिएगा उन्हें ज़्यादा तनाव ना दे।” डॉक्टर ने कहा 

कुछ दिनों बाद रोहन जब घर आ गया तो सुनंदा जी ने कहा,” बेटा आप कभी खुद को अकेला मत समझना.. जब तक हम लोग है आपके साथ है और यहाँ अपने पड़ोसियों के साथ मिलकर रहे ताकि जब परिवार पास ना हो तो सबसे पहला हाथ वो आपकी ओर बढ़ा सके और आप उनकी ओर ।” 

“ जी मम्मी जी.. तुहिना और सरस ने हमारा बहुत साथ दिया है और हम भी कोशिश करेंगे जब भी उन्हें जरूरत हो हम उनके साथ रहे।”रोहन ने एक लंबी साँस भरते हुए कहा 

दोस्तों रचना पर आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा ।

धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

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#पड़ोसियों और परिवार में यही तो अंतर होता है बेटा !

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