अपनों का साथ – सरोज सिंह : Moral Stories in Hindi

      हमने पूछ ही लिया आप  कठोर होकर इतने सहज कैसे हैं?बहुत दिनों तक तक बस ओ (राम)हमारी बातों को टालते रहे या यूं कह सकते हैं कि अनदेखा करते रहे पर उन्हें देखकर और सुनकर लगता था कुछ तो है जो छुपा हुआ है।हमारा फेवरेट सब्जेक्ट psychology था सो थोड़ा लोगों की भावनाओं को समझता है।

         हमारे बार बार आग्रह करने पर उन्होंने जो सुनाया ओ कुछ बहुत नया नही था पर अक्सर फिल्मों में देखने को मिल जाता है पर जब वही बाते वास्तविक जीवन में घटित होती हैं तो आदमी टूट जाता है।उन्होंने बताना चालू किया ….

             कुछ यूं कि जब ओ १४ ही साल के थे तो पापा का स्वर्गवास हो गया।दो बहने थी जिनकी अभी  शादी नहीं हुई थी और एक छोटा भाई ,उसकी पढ़ाई लिखाई की जिम्मेदारी सब एकाएक उन पर आन पड़ी।ऊपर से सारे घर का खर्च।अभी अभी उन समस्याओं से जूझ ही रहे तो इतने में पता चला मां को कैंसर हो गया।बाकी खुची हिम्मत भी जबाव दे रही थी पर अपनों का साथ (,भाई बहन)उन्हे हिम्मत देता था और ओ तब तक १९ साल के हो गए थे।

             इन सबके बीच एक अच्छी बात ये हुई कि उन्हें नौकरी मिल गई।बुकिंग कलर्क की।पर होनी को कौन रोक सकता है मां भी दुनियां से चली गई।इस बीच कोई लड़की उनके जीवन में आई पर इतनी जिम्मेदारियों के मध्य अपने बारे में सोचने का वक्त ही ना मिला।उसके घर वाले उसकी शादी कहीं और कर दिए।अब दोनो बहनों की शादी किए।तब तक बहुत देर हो गई थी ।

उस लड़की के जाने का इतना गम हुआ कि दूसरी   जगह शादी के बारे में सोच ही नहीं पा रहे थे।दिन गुजरता जा रहा था और कुछ समझ ही नही आ रहा रहा था इसी बीच छोटे भाई ने अपना फैसला सुना दिया।और भाई ने  बोला कि आप शादी नही कर रहे तो उसकी ही करा दें जिसे ओ पसंद करता है।इस तरह भाई की भी शादी हो गई पर कहते है ना आदमी अकेले रह सकता है पर असल में जी नही सकता ।उसे रोने के लिए एक कंधे की जरूरत पढ़ती ही है।

           इस तरह सभीअपनों के बार बार प्रयास करने और समझाने पर उन्होंने शादी का फैसला कर ही लिया।

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              आज अच्छे खासे उनके दो बच्चे एक बेटा एक बेटी है।अब उनको पालना ,उनकी पढ़ाई लिखाई की जिम्मेदारी।वक्त गुजरा बेटी को काफी पैसा लगा कर बाहर पढ़ने भेजा पर बोलते हैं ना संघर्ष पीछा नहीं छोड़ता। उस देश में युद्ध के चलते सारे भारतीय सुरक्षा की दृष्टि की वजह से वापस स्वदेश बुला लिए गए।पर इनका सारा पैसा डूब गया।फिर से आर्थिक समस्या में आ गए।

             पर कहते हैं ना अपनों और अपने जैसे दोस्तों का साथ हो तो कुछ भी नामुमकिन नहीं होता।फिर से कमर कसी अपनी जिम्मेदारियों को अच्छे से चलाने के लिए।अभी उनकी परीक्षा बाकी थी।थोड़ा ही वक्त संभले भी ना हुआ कि किसी दुर्घटना के चलते कुछ समस्या हो गई जिससे उन्हें दूसरे अपने से कम पद पर आसीन होना पड़ा।जिससे उनकी आर्थिक समस्या थोड़ी बढ़ गई कारण ओ पढ़ाई के लिए और घर के लिए पहले ही लोन ले चुके थे।एक घर उन्होंने अपने छोटे भाई को दे दिए थे।

            अपनों के साथ ने उन्हें टूटने नही दिया और वापस आज ओ दो दो जगह काम करके अपनी परेशानियों से निजात पाने की कोशिश कर रहे। हां एक बात इतनी अच्छी कि उनके चेहरे पर सिकन मात्र भी नही।दोस्तों का भी भरपूर खयाल रखना।परिवार तो उनके लिए बहुमूल्य है ही।सभी रिश्तों को वक्त पर वक्त देना। नात रिश्तेदारों का भी मान रखना।सामाजिक रूप से भी उतने ही सक्रिय रहना।बढ़ चढ़कर भाग लेना।मानना पड़ेगा उनके जज्बे को नमन करते हैं।और उनके दोस्त और अपने भी जो हर हाल में उनके साथ एक संबल की तरह खड़े हैं।

                कुल मिलाकर यही कह सकते हैं कि कितनी भी परेशानियां आएं जीवन में पर अपनों के जैसे दोस्त साथ हो तो सब कुछ सहन करने की हिम्मत अपने आप आ जाती है।🙏🙏💐💞

 

          सरोज सिंह मुंबई 

            #स्वचरित

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