अपनों का साथ.… – रश्मि झा मिश्रा : Moral Stories in Hindi

 कंधे पर दुपट्टा डाल… गीता घर से निकलने ही वाली थी… कि बड़ी भाभी बोल उठीं… 

 “क्यों अपनी जिंदगी का… सत्यानाश करने पर तुली हैं… यह कोई उम्र है सत्संग करने की… मैं जाऊं करूं तो समझ आता है… आप क्यों रोज निकल पड़ती हैं…!” 

वह गीता से उम्र में काफी बड़ी थीं… 

” भाभी… मुझे वहीं शांति मिलती है…!”

” अरे गीता जी… एक बार जिंदगी उजड़ गई… इसका गम क्या पूरी जिंदगी मनाएंगी… दूजा ब्याह कर लीजिए ना…मेरी लाडो रानी…!” 

” फिर वही बात भाभी… मैं चलती हूं…!”

 बोलती हुई गीता लंबे डग भरती… घर से निकल गई…

 गीता घर की सबसे छोटी लाडली बिटिया थी… हो भी क्यों ना… बड़े भाई बहनों के जन्म के दस बारह साल बाद आई थी गीता…

 दो भाइयों की प्यारी बहन… सब उसके नखरे सर आंखों पर रखते थे…

  ग्रेजुएशन में जाते ही… पहले ही साल मां ने उसका साथ छोड़ दिया…

 मां के इस तरह अचानक चले जाने पर भाभियां ही उसकी मां बन गईं…

घर संभल गया… भाभियां थीं…

 ग्रेजुएशन खत्म करते ही… एक बढ़िया परिवार… भरा पूरा घर देख… सब की सहमति से…

 गीता का ब्याह हो गया…

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 कितनी खुश थी गीता…

 दो छोटी ननदें… प्यार करने वाली सासू मां.…

  बढ़िया पति…

दो साल तो ऐसे ही गुजर गए… रिश्ते संभालते… निभाते… समझते…

 गीता मां बनने वाली थी…

 सब खुश थे… मायका… ससुराल… सब उसके खातिर में लगा रहता…

 आखिर पहला बच्चा जो था उसका…

 ऐसा लगता था… जैसे बस अब जिंदगी में कोई कमी नहीं रही…

 गर्भ के आठवें महीने में… गीता के पति का एक्सीडेंट हो गया…

 रोड एक्सीडेंट…वह घर कभी वापस नहीं आ सके…

  इस गम से गीता उबर नहीं पाई…

 उसका बच्चा भी सदमा नहीं सह सका.…

एक झटके में उसकी पूरी दुनिया तबाह हो गई…

वह ससुराल छोड़ मायके आ गई…

 वहां फिर से भाई भाभियों के साथ में जिंदगी बिताने लगी…

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अपनी पढ़ाई पूरी की…

कई नए नए कामों में खुद को व्यस्त रखने लगी…

हर कोई कहता…

” दूसरा ब्याह कर ले… अभी उम्र ही क्या है…!”

 वह तुरंत टाल जाती थी…

 नहीं करना था उसे दूसरा ब्याह…

 नहीं आजाद होना था… अपनी पुरानी यादों से…

 परिवार के पुराने गुरु जी थे… मां भी जीते जी उनके यहां जाती थीं…

 गीता ने भी वहीं जाना शुरू कर दिया…

वे अनाथ आश्रम भी चलाते थे… इसलिए गीता का वहां और भी मन लग जाता था…

 छोटे बच्चों का… कलरव… शैतानियां.… देख… थोड़ी देर के लिए वह अपने सारे दुख भूल जाती थी…

 गीता ने तो सोच लिया था…

 अब वह अपना पूरा जीवन इन्हीं बच्चों और आश्रम के नाम कर देगी…

 पर घर वालों को चैन कहां था…

 वे हर दिन कोई ना कोई बहाना बनाकर… उसे वापस जिंदगी से जोड़ना चाहते थे…

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 कभी कोई रिश्ता… तो कभी कोई लड़का.… देखते देखते… मना करते-करते… गीता भी थक चुकी थी…

 सात साल हो गए थे… उसके पिछले ब्याह की स्मृतियों के साथ… उसे जीते…

 आखिर एक दिन… एक पार्टी में… गीता की मुलाकात हुई सुजीत जी से…

 एक किस्मत और ईश्वर की नाइंसाफी के शिकार विधुर…

 उनकी पत्नी… दो छोटी बच्चियों को अपने पीछे छोड़… दुनिया से जा चुकी थी…

 बच्चियों को देख… गीता का मन डोल गया…

” इतनी मासूम बिना मां की बच्चियां.…

 लगता है ईश्वर ने मुझे उनके लिए ही चुना है…!”

 गीता ने इस बार कोई बहाना नहीं बनाया…

 वह सुजीत जी की पत्नी बनने को तैयार हो गई…

 उनका ब्याह हो गया… बिन मां की बच्चियों को दोबारा मां मिल गई…

पर ऐसी मां को… पूरी कायनात… शक की निगाह से ही दिखती है…

 गीता जी का सफर अब और भी मुश्किल भरा हो गया…

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 सबकी नजरों में खुद को साबित करते-करते… कई बार तो ऐसी मां की पूरी उम्र निकल जाती है…

 पर वह कभी भी सिर्फ मां नहीं बन पाती…

 यहां भी ऐसा ही था…

 मां तो गीता बन गई… दो नन्ही प्यारी बच्चियों की… पर यह बच्चियां…

छोटी बच्ची तो खैर बहुत छोटी थी… उसके अंदर अपने पराए की कोई समझ ही नहीं थी.…

 लेकिन बड़ी बेटी… उसे अपनी मां के रूप में स्वीकार नहीं कर पा रही थी…

  अपनी बच्चियों की असली मां बनने के प्रयास में… गीता ने अपने मां बनने के सारे रास्ते बंद कर दिए…

 वह नहीं चाहती थी… की बच्चियों को जरा सा भी एहसास हो… की मां किसी और को भी प्यार करती है… या मुझसे अधिक प्यार करती है…

 कोई इस विषय में बच्चियों को कुछ भड़का ना पाए… दूसरों के तानों से बचने के लिए गीता सिर्फ अपनी दोनों बच्चियों की मां बनी रह गई…

 पर यह बलिदान अभी भी निष्फल था…

 बेटियां लाख कोशिशों के बाद भी बगावत करती चली गईं…

 अगर गीता अधिक सख्ती दिखाने की कोशिश करती… तो उन्हें लगता की सौतेली मां है… इसलिए इतना डांटती है… इतना टोकती है…

 पर समय कोई भी हो… कहां ठहरता है…

 आज गीता जी की दोनों बेटियों का विवाह हो गया है.…वे अपने घर में खुश हैं…

 इस बीच सुजीत जी काफी बीमारियों से त्रस्त हो गए.… उनकी दोनों किडनियां फेल हो गई…

 गीता जी को हर दूसरे दिन… अपने पति को डायलिसिस के लिए ले जाना होता है…

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 गीता जी की बच्चियां… जब मां बनीं… तब उन्हें अपनी मां की अहमियत… और संघर्ष… दोनों का पता चला…

 अपनी गलतियों का एहसास भी हुआ…

आज सुजीत जी की रिटायरमेंट के बाद… गीता जी ने अपना घर… अपने मायके के पास बनाया है.…

 क्योंकि अस्पताल वहां से कुछ ही कदम की दूरी पर है…

 साथ ही… यहां उन्हें अपने भाई-भाभी…

 भतीजों का परिवार… साथ ही दोनों बेटियों का पूरा सहयोग…

 हर मुश्किल वक्त में मिल जाता है…

 उनके जीवन का संघर्ष यूं तो अनवरत जारी ही रहा… आज भी है…

 पर अब जीवन के इस पड़ाव पर…

 अपनों के साथ… और सहयोग के साथ… बाकी की जिंदगी सुखद हो…

“आपके संघर्ष को समर्पित”

रश्मि झा मिश्रा

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