आज ट्रेन में घर वापसी के लिए बैठी रूपाली की आंखों के सामने भाई की वो आंसुओं से भरी आंखें रूपाली क्या कोई भी बहन भूल नहीं पा रही थी ।और उनके कहे शब्द पता नहीं अब दोबारा कब मिल पाएंगे कानों में गूंज रहे थे। रूपाली और उसके तीनों और बहनें चाहकर भी भाई से ध्यान हटा नहीं पा रहे थे ।
चारों बहनें सोचने लगी कि आज भाई के अंदर हम बहनों के लिए कहां से उमड़ आया है। कभी भाई ने हम बहनों को तो इतना प्यार दिया नहीं है ।हम लोग हमेशा सोचते रहे कि भाई हम लोगों को भी पूछे कभी ,हम बहनों को भी प्यार दे लेकिन ,,,,,,,।
रूपाली पांच बहनें थीं और दो भाई थे भाई दोनों बड़े थे और सभी बहनें छोटी ।सबसे बड़ी बहन संचिता का देहांत हो चुका था उनको कैंसर था।और सबसे छोटी बहन शेफाली तो भाइयों से बहुत छोटी थी । जबतक मां बाप थे तब-तक तो बेटियों का मायके जाना होता रहा लेकिन मां बाप के गुजर जाने के बाद बेटियां मायके को तरस गई।
दोनों ही भाई बहनों से कोई खास व्यवहार नहीं रखते थे। जिनमें बड़े भाई के पास तो थोड़ी आर्थिक तंगी थी और उनके बड़े बेटे का तो कोर्ट में बहू से तलाक का केस चल रहा था । उसी में परेशान रहते थे ।बहू ने लम्बी चौड़ी रकम की मांग कर रखी थी तलाक में।
कभी कभी बड़ी भाभी से बातचीत होती थी ननदों की तो कहती थी ननदों से कि आ जाओ लेकिन उनके घर की स्थितियां देखकर बहनें नहीं जाती थी । जबरदस्ती का बोझा बनो जाकर। लेकिन अभी कुछ साल पहले भाभी को ब्रेस्ट कैंसर हो गया था जिसका भाभी ने आपरेशन कराया था तो एक एक करके बहनें दो दिन को मिलकर आ गई थी ।
लेकिन उनके घर की परिस्थितियां ज्यादा दिन रहने की नहीं थी ।और फिर सभी बहनों के ससुराल से भाई का घर दूर भी बहुत पड़ता था ,बारह से चौदह घंटे लग जाते थे जाने में और इतना ही समय आने में भी ।
वहीं छोटे भाई सम्पन्न और बहनों के ससुराल से नजदीक भी रहते थे ,चार घंटे में पहुंचा जा सकता था । लखनऊ में रहते थे।और दो बहनें सागर में ,एक छतरपुर और एक गुड़गांव में थी । छोटे भाई भी पहले तो मां पिताजी के ही साथ रहते थे लेकिन फिर बच्चों को उच्च शिक्षा देने की वजह से लखनऊ आ गए थे रहने ।
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लेकिन मकसद पढ़ाई लिखाई से ज्यादा भाभी का मायका था वहां भाभी हर समय कहती रहती थी कि मैं तो भाई अपने भाई बहनों के आसपास ही रहना चाहती हू।हो भाई का मन न होते हुए भी जबरदस्ती उनके वहां आना पड़ा।और वहां आकर भाभी ऐसे मस्त हो गई भाई बहनों में कि ननदों को तो जैसे भूल ही गई।भाई भी ससुराल के रंगों में रंग गए। कोई भी फंक्शन होता या त्योहार होता भाभी अपने मायके वालों को ही बुलाकर पूरा काम कर
लेती। राखी हो या भाई दूज कभी बहनों को न पूछती हम बहनें सोचती ही रहती थी कि कभी भाई भाभी हम लोगों को भी बुलाए । परन्तु नहीं वो तो दोनों वहीं के लोगों में कहीं गुम हो गए ।
कुछ समय पहले भतीजे की शादी पड़ी तो बहनों को बुलाया , शादी थी तो बुलाना ही पड़ा । लेकिन चारों बहनों का परिवार अलग-थलग सा ही बना रहा । कोई भी काम हो हर जगह भाभी के भाई बहन ही आगे रहते थे। शादी में जयमाल के बाद पूरे परिवार की फोटो खींच रही थी तो हम बहनों के परिवार को कोई पूछ ही नहीं रहा था
पूरे समय भाभी के मायके वाले ही फोटो खिंचवाते रहे । ऐसा लग रहा था कि बहनें जबरदस्ती आ गई हो। शादी थी तो बुला लिया था नहीं तो क्यों बुलाना। शादी के दो साल बाद भतीजे के बेटा हुआ तो पार्टी की गई लेकिन बहनों को नहीं बुलाया गया । अभी कुछ समक्ष पहले भाई ने नया मकान लिया था तो गृहप्रवेश की पार्टी रखी तब भी बहनों को नहीं बुलाया।
ये सब जब बहनों को पता चलता था तो बड़ा दुख होता था कि भाई इतने सारे लोगों को बुलाते हैं लेकिन नहीं बुलाते तो हम बहनों को । अब नहीं बुलाया तो शिकायत भी तो नहीं कर सकते कि नहीं बुलाया नहीं है उनका मन बुलाने का। बहनों के घर भाई आते थे लेकिन बहनों से कभी नहीं कहते थे कि तुम लोग भी कभी आओ।
ऐसे ही तीस साल का समय बीत गया ।सब बहनों के मन में भाई भाभी के प्रति नाराज़गी तो थी निराशा भी थी । ऐसे ही एक बार दीपावली के बाद तीन दिन की छुट्टी पड़ रही थी तो रूपाली ने सोचा चलो इस बार बेटे बहू को भाई भाभी के पास होआ लाऊं तो रूपाली ने फोन किया कि भइया हम लोग दो दिन को आ रहे हैं
तो भाई परेशान हो गए कहने लगे अरे कल अन्नकूट है और तुम्हारी भाभी का और हम लोगों का खाना भाभी के भाई के घर पर होता है दिनभर वहीं लग जाएगा हम लोग घर पर रहेंगे ही नहीं ,मतलब एक तरीके से मना ही कर दिया । रूपाली बोली ठीक है भइया हम लोग कहीं और घूम आते हैं ।
लेकिन अभी कुछ दिन से भाई की तबीयत ठीक नहीं चल रही है और भाई में एकाएक हृदय परिवर्तन हो गया है और कुछ समय से फोन करने लगे हैं और कहते हैं कि अब फिर से वही पुराना समय जीने का मन करता है ।जब हम लोग सब साथ साथ रहते थे कितना अच्छा लगता था।
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ऐसा करो तुम चारों मेरे घर एक साथ आओ और एक हफ्ता तक रहो पुराना समय हम साथ साथ जिएंगे। क्या रखा है जिंदगी में अब तो समय पूरा हो रहा है बस यहां से जाने का समय आ रहा है । धीरे धीरे सबकी उम्र बढ़ रही है सभी साठ के पार है और भाई तो फिर बहनों से भी बड़े है । फिर क्या था सभी बहनें फोन करके एक दूसरे से कह रही है आज भईया को क्या हो गया है । अचानक से इतना प्यार कहां से आ गया है।
रुपाली , शेफाली, मिताली,और निराली कहने लगी इतने साल तो भइया ने पूछा नहीं अब क्या है । पता नहीं हम लोगों के जाने के बाद भाभी का कैसा व्यवहार हो। रूपाली जो सबसे बड़ी थी समझदार थी बोली उम्र का एक ऐसा पड़ाव आता है जब अपनों की कमी महसूस होती है अपनों का साथ चाहिए होता है। रिश्तेदारों के बहुत नजदीक रहने पर दूरियां आ जाना लाजिमी है। भाभी के रिश्तेदारों में अब भइया को बनावटी पन नजर आने लगा है तो अब बहनों की याद आ रही है।
फिर क्या हर दिन फोन करके कहते रहते थे कि क्या हुआ प्रोग्राम बना कि नहीं कब आ रही हो । कभी न कभी कभी तो अपनों की खलती ही है फिर भाई बहन तो फिर भाई बहन ही है। भइया के साथ साथ भाभी भी आग्रह कर रही थी कि भइया तुम्हारे बड़े उदास से रहने लगे हैं आ जाओ तुम लोग कुछ दिन को।
फिर चारों बहनों ने एक साथ जाने का प्रोग्राम बनाया कि देखें कैसा रवैया है भाभी भइया का।इतने सालों का छूटा हुआ साथ सब मिलकर एक साथ बिताए ।सच बताएं इतना अधिक हृदय परिवर्तन भइया का और थोड़ा भाभी का भी फिर सब भाई बहनों ने मिलकर खूब मौज मस्ती की सारी पुरानी बातें सारा कुछ पुराना खाना पीना सच में ऐसा लगा
जैसे सच में मायका मिल गया हो मां पिताजी नहीं थे तो क्या भाई में ही पिताजी दिखाई दे रहे थे ।इतने बरसों की हुलास जैसे पूरी हो गई । मायके का छूट जाना किसी भी लड़की के लिए बहुत दुखद होता है ।उसकी स्मृतियां ताउम्र एक बेटी के ज़ेहन में रहती है।
आज चारों बहनों के जाने की तैयारी थी । भइया उदास थे कह रहे थे और रूक जाओ दो दिन लेकिन इससे ज्यादा रूकना संभव नहीं था। जाते जाते भइया ने बहनों को गले से लगा लिया और रोने लगे । बहुत अच्छा लगा तुम लोगों के आने से अपनों का साथ अपना ही होता है । बहनें सोचने लगी इतना प्यार कहां छुपा रखा था
भाई ने । वापस आकर बहनों को भी अच्छा लगा खुशी का एक अपार सागर लेकर लौटी थी सभी । क्यों कि जीवन का एक अनमोल समय भाई बहनों का आपस में दूरी में ही निकल गया।अब उम्र की उस दहलीज पर है सभी कि कौन कब बिछड़ जाए कहां नहीं जा सकता। इसलिए अपनों का साथ बहुत जरूरी है अपनों के बिना तो जीवन अधूरा है ।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश
10 अक्टूबर