आज विभा जब बाजार गई, तब अचानक एक महिला उससे टकरा गई। विभा ने कहा-“सॉरी !”
उसे औरत ने भी कहा-“सॉरी”और जब दोनों ने एक दूसरे को देखा, तब 2 मिनट लगे एक दूसरे को पहचानने में। हालांकि पहले विभा ने पहचान लिया-“अरे शिल्पा तू।”
शिल्पा उसकी एक पुरानी सहेली थी। कई वर्षों बाद दोनों ने एक दूसरे को देखा था।
शिल्पा ने तब ध्यान से देखकर कहा-“अरे विभा, कितनी बदल गई है यार।”
इतना सुनते ही विभा झेंप गई। शिल्पा ने कहा-“चल ना, यहां पास में ही एक बहुत अच्छा रेस्टोरेंट है। वहां सुपर टेस्टी डोसा मिलता है। चलकर खाते हैं बहुत भूख लगी है।”
विभा ने दो पल के लिए कुछ सोचा। अभी तो बच्चों के स्कूल से आने में थोड़ा वक्त है और पतिदेव सुनील भी शाम को ही आएंगे और सास ससुर आराम कर रहे होंगे। यह सब सो कर वह शिल्पा के साथ डोसा खाने चली गई।
फिर बातों का ऐसा दौर शुरू हुआ कि समय का पता ही नहीं चला। शिल्पा ने बताया कि उसका पति रवि एक प्राइवेट कंपनी में जॉब करता है। एक बेटी है रिया 8 साल की। शिल्पा ने विवाह से भी उसके परिवार के बारे में पूछा।
विभा-“मेरे पति सुनील भी प्राइवेट कंपनी में जॉब करते हैं। सैलरी बहुत अच्छी है। 10 साल का बेटा रोहन और 5 साल की बिटिया कृति है। सास ससुर है। एक ननद मुझसे बड़ी थी जिसकी शादी पहले ही हो चुकी थी और एक ननद छोटी जिसकी शादी 2 साल पहले हुई है। क्या बताऊं शिल्पा जब से शादी हुई है काम, काम और काम। काम करते-करते बहुत थक चुकी हूं। जिम्मेदारियां बहुत सारी हैं। तुझे तो पता ही है मायके में मैं सुबह कितने आराम से उठती थी। यहां तो कई बार मेरी नींद भी पूरी नहीं हो पाती। सारा दिन एक पैर पर खड़ी रहकर काम करती हूं फिर भी कोई शाबाशी का एक शब्द भी नहीं बोलना। उल्टे मीन मेख निकालते हैं। सुबह से रात तक चकरघिन्नी की तरह घूमती रहती हूं। सास ससुर इतने बूढ़े नहीं है लेकिन फिर भी कोई मदद नहीं करवाते।
शिल्पा -“तूने सबके प्रति अपने दायित्व निभाए और बड़ी अच्छी तरह निभाए। लेकिन तू अपने प्रति दायित्व निभाना भूल गई। अपनी हालत देखने घर जाकर आईने में। शीशे में खुद को निहारना और खुद से सवाल पूछना। अच्छा अब बाकी बातें किसी और दिन। अपना एड्रेस और मोबाइल नंबर दे और मेरा ले।”
दोनों ने अपने घरों का पता आदान-प्रदान किया और अपने-अपने घर आ गई।
घर जाकर समय मिलते ही विभा ने खुद को शीशे में देखा। थोड़ी मोटी हो गई हूं, बाल भी ढंग से नहीं बनाए हैं और सूट देख कितना पुराना लग रहा है। मैं तो आंटी लग रही हूं। कुछ तो करना पड़ेगा और फिर बस, कामों में व्यस्त हो गई।
थोड़े दिन बाद अचानक शिल्पा उसके घर आ गई। इत्तेफाक से उसके सास ससुर उस दिन अपनी बुजुर्गों की टोली के साथ कहीं घूमने गए थे और बेटा स्कूल पिकनिक पर गया था। कृति के स्कूल से आते ही उसे खाना खिलाकर विभा ने सुला दिया और फिर दोनों सहेलियों ने शाम तक ढेर सारी बातें की।
शिल्पा -“मैं सुबह सैर करने जाती हूं और जब किसी दिन नहीं जा पाती तो हल्की-फुल्की एक्सरसाइज घर पर ही कर लेती हूं। हां यह बात जरूर है कि जितनी तेरी जिम्मेदारियां है उतनी मेरी नहीं। मेरा पति घर का इकलौता बेटा है और सास ससुर दूसरे शहर में रहते हैं। विभा, अब मैं तुमसे कुछ पूछना चाहती हूं, अगर तुम्हें ठीक लगे तो जवाब देना वरना कोई बात नहीं।”
विभा-“ऐसा क्यों कह रही है शिल्पा मुझे बुरा क्यों लगेगा,पूछ?”
शिल्पा-“क्या सुनील जी आज भी रोमांटिक होते हैं, क्या कभी-कभी सबके सामने तुम्हारा मजाक उड़ाते हैं और क्या दूसरी महिलाओं को ध्यान से देखकर उनकी तारीफ करते हैं?”
विभा -“जब हमारी नई-नई शादी हुई थी तब बहुत रोमांटिक थे पर अब नहीं। कई बार दूसरों के सामने मेरे मोटापे को लेकर मजाक उड़ाते हैं और दूसरी स्त्रियों की प्रशंसा तो बहुत ज्यादा करने लगे हैं इतनी ज्यादा कि कई बार तो मैं इरिटेट हो जाती हूं। मगर तू यह सब क्यों पूछ रही है?”
शिल्पा-“यह तो इंसान की फितरत होती है कि जिसके पास जो होता है वह उसकी कदर नहीं करता और जो उसे नहीं मिला होता, वो ही उसे अच्छा लगता है और वही चाहिए उसे। खैर छोड़। तू इतनी भी मोटी नहीं हुई है कि तू कोशिश करके पतली ना हो सके। भगवान ना करें कि मोटापे के कारण अगर तुझे कोई और बीमारी हो गई, तो सच कहती हूं विभा, कोई पूछेगा तक नहीं। जान है तो जहान है। अपने लिए भी समय निकाल। अच्छे-अच्छे सुंदर कपड़े पहन,कभी-कभी पार्लर जा। अगर पार्लर जाना पसंद नहीं है तो घर पर अपनी सुंदरता के उपाय कर। दूसरों के साथ-साथ अपनी भी केयर कर। तेरी सास सारा दिन पड़ोस में जाकर गप्पें लगाती है। कभी-कभी उन्हें भी सब्जियां काटने के लिए दे दिया कर। पालक, मेथी ,मटर साफ करेगी तो उनका भी टाइम पास हो जाएगा और तुझे भी अपने लिए समय मिल जाएगा। कभी-कभी ससुर जी को कह दिया कर कि बच्चों को स्कूल से ले आए, कम से काम तेरा आधा घंटा बचेगा और तुझे थोड़ा आराम मिल जाएगा। सुबह तू स्कूटी से बच्चों को स्कूल छोड़ने जाती है ना।”
विभा -“हां जाती हूं”
शिल्पा-“तो बस, वापसी में किसी गार्डन में जाकर तीन-चार राउंड लगाकर फिर घर आ जाया कर। देखना थोड़े ही दिनों में तुझे अपने अंदर फर्क नजर आने लगेगा। हां यह बात तो सच है कि हर चीज की अति बुरी होती है। तू यह मत समझना कि मैं तुझे घर की जिम्मेदारियां से दूर कर रही हूं या फिर तुझे भड़का रही हूं पर अपने प्रति दायित्व निभाना भी जरूरी है। आजकल कौन किसकी सेवा करता है और फिर हमें जरूरत ही क्यों पड़े,किसी की सेवा की।”
फिर शिल्पा हंसकर बोली-“अरे बाबा, मैंने तो तुझे अच्छा खासा भाषण दे दिया।”
विभा-“अरे नहीं शिल्पा, ऐसा कुछ नहीं है तूने जो कुछ कहा मेरी भलाई के लिए ही तो कहा।”
शिल्पा के जाने के बाद विभा को लग रहा था कि शिल्पा ठीक कह रही है मुझे अपनी तरफ ध्यान देना ही चाहिए।
स्वरचित अप्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली