अपने पराये – रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi

“जाने कब ज़िन्दगी में कौन सा मोड़ आ जाये ये कोई नहीं जानता…. ये जिन्दगी भी ना बड़ी अजीब है जाने कब क्या खेल दिखा जाती है….कभी किसी को हँसाती है तो कभी ये रूलाती ।”सोचती हुई वृन्दा जी सब्जी का थैला लिए अपने घर में कदम रखी….चेहरे पर थोड़े दुःख और थोड़े संतोष के भाव साफ दिख रहे थे।

‘‘ बहू एक गिलास पानी तो दे बेटा, और ये सब्जियां  लाई हूँ देख लो कुछ और चाहिए तो ले आऊँ…रेहड़ी वाले के पैसे भी देने बाक़ी है।” वृंदा जी बहू से बोली

‘“जी माँ जी” कहती हुई बहू आस्था जब सास के पास आई तो बोली ,”क्या हुआ माँ जी आप क्या सोच रही है सब ठीक तो है?”

‘“वो शर्मा आँटी है ना,..अभी वो बाहर मिली ….वो भी सब्जी लेने आई हुई थी….बहुत कमजोर हो गई है…चेहरा भी उतरा हुआ था….सोच रही हूँ….हम सभी मोहल्ले की औरतों में सबसे मस्त जिंदगी उसकी ही थी पर आज देखो क्या से क्या हो गई।” वृंदा जी परेशान से लहजे में बोली 

वृन्दा जी जब से इस मोहल्ले में रहने आई थी।

घर के सामने ही शर्मा परिवार रहता था।

धीरे धीरे बात चीत होते होते बहुत अच्छी दोस्ती हो गई। बच्चे हुए, फिर जब भी किसी बच्चे की शादी होती सब मोहल्ले वाले परिवार की तरह एक दूसरे का साथ निभाते रहते।

जब वृन्दा जी के पति का स्वर्गवास हुआ मिसेज शर्मा का बहुत सहारा रहा था। एक वही थी जो वृन्दा जी को ये समझाती रहती थी एक बेटा है उसके लिए खुद को सँभालो।तुम दोनों ही एक दूसरे का सहारा हो अब। 

साल दर साल बीतते गए। फिर बहू भी आ गई।वृन्दा जी अब बेटे बहू के साथ अपनी जिन्दगी बड़े आराम से बीताने लगी।

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पिछले महीने शर्मा जी की मृत्यु हो गई तो वृन्दा जी ने भी मिसेज शर्मा को बहुत हद तक उबारने का प्रयास किया। मिसेज शर्मा का एक ही बेटा है जो कही बाहर नौकरी करता है। पिता की मृत्यु के समय बेटा बहू कुछ दिनों के लिए आये फिर चले गये। माँ को  एक बार भी साथ चलने नहीं बोले। 

पति के पेंशन से पहले भी जिन्दगी कट रही थी अब भी कट जायेगी ,ऐसा ही तो कहा था मिसेज शर्मा ने जब वृन्दा जी ने पूछा था मिसेज शर्मा आप अब अकेले कैसे रहेंगी? क्यों नहीं सोहन के साथ चली गई? 

मिसेज शर्मा क्या ही बोलती कि ,” बेटे ने कुछ भी नहीं पूछा।”

उसके बाद से मिसेज शर्मा चुप सी रहने लगी। हमेशा चहकती रहने वाली मिसेज शर्मा को देखकर वृन्दा जी परेशान हो जाती।

आज उनकी हालत और बिगड़ी हुई देख कर वृन्दा जी सोचने लगी जिन्दगी बड़ी अजब गजब रंग दिखाती जो हमेशा मेरे साथ खड़ी रहती थी आज उसको सहारे की जरूरत पड़ गई।

‘‘माँ जी कुछ और सब्ज़ियाँ ,फल चाहिए क्या? मैं कब से आपको आवाज दे रहा आप सुन ही नहीं रही।”रेहड़ी वाले की आवाज से उनकी तंद्रा भंग हुई।

अरे हां , बहू कुछ चाहिए तो बोल नहीं तो इसके पैसे दे देती हूँ।

‘‘नहीं माँ , सब है आप उसको पैसे दे दीजिए मैं तो कब से आपका पर्स आपके पास रख के आई , लगता आप कही खोई हुई है तभी आपने ध्यान नहीं दिया।”बहू आस्था ने वृन्दा जी के चेहरे को देखते हुए कहा

‘‘आज मेरे ख्याल में बस मिसेज शर्मा ही है बहू , उसने मेरा बहुत साथ दिया आज उसकी हालत देख कर मुझे कुछ अजीब लग रहा।”वृन्दा जी उदास हो कर बोली

‘‘ माँ जी आप चिंता मत कीजिए हम है ना उनके पास , जिन्दगी के जिस मोड़ पर आंटी ने आपका साथ दिया था अब इस मोड़ पर हम उन्हें सहारा देंगे…. वो कहते हैं ना भगवान किसी ना किसी को हमारे लिए ज़रूर भेजता है …शायद उनके बेटे बहू ना समझ पाए तो कोई बात नहीं आप और हम है ना….आप आज आंटी के घर जाईए उन्हें अपने साथ यहां लेकर आ जाइए…. आज हम साथ में ही लंच करेंगे….उन्हें भी अच्छा लगेगा….मुझे पता है आंटी बिना बुलाए नहीं आएगी।” आस्था की समझ पर वृन्दा जी बहू पर वारी वारी जा रही थी।

 वो जल्दी जल्दी अपनी दोस्त को बुलाने निकल गई।

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दोस्तों यूँ तो आज के समय में किसी के पास किसी के लिए भी समय नहीं होता…वो चाहे अपने ही क्यों ना हो… पर कभी कभी ग़ैरों के किए एहसान को समझदार इंसान भूला नहीं पाता और वृंदा जी की तरह सोच रख किसी का दर्द बांटा जा सकता है ।

रचना पर आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा ।

धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

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