अपने जन्म दाताओं का ध्यान रखो। – संगीता अग्रवाल

” मां ये क्या आप परी की प्लेट से पकौड़े खा रही हैं हद है आपकी भी डॉक्टर ने तला हुआ मना किया भूल गई !” प्रदीप अपनी मां शांति जी पर चिल्लाया।

” पापा आप दादी पर क्यों चिल्ला रहे हैं उन्हें पकौड़े मैं ही देकर गई थी आपको पता नही है क्या दादी को पकौड़े कितने पसंद हैं !” बारह साल की परी वहां आ बोली।

” बेटा दादी को पकौड़े मना किए हैं डॉक्टर ने …आप मां वो तो बच्ची है आपको तो समझ है ना कि आपके लिए क्या अच्छा क्या बुरा। बाद में मुसीबत हमे होती है फिर ।” प्रदीप फिर से बोला…शांति जी की आंखों में आंसू आ गए हाथ का पकौड़ा हाथ में ही रह गया।

” पापा मना तो आपको भी डॉक्टर ने किया है स्मोकिंग एंड ड्रिंकिंग को आप तो तब भी रोज करते हो दादी तो कभी कभी ही खाती है ये सब !” परी गुस्से में बोली।

” देख रही है आप परी आपको सोहबत में क्या सीख रही है बड़ों से बदतमीजी और परी आप क्या यही सिखाया है आपकी टीचर ने कि बड़ों के साथ ऐसे पेश आओ !” अब प्रदीप का गुस्सा सातवें आसमान पर था।

” पापा दादी भी तो आपको बड़ी है फिर आप क्यों उनसे ऐसे बोलते हो !!” परी दादी के आंसू पोंछते हुए बोली।

,” बेटा तुम अपने कमरे में जाओ !” तभी वहां परी की मां प्रीति आकार बोली।

” देख रही हो अपनी लाडली को कैसे बात करने लगी है वो अपने बाप से !” प्रदीप गुस्से में प्रीति से बोला।

” उसे तो मैं देख रही हूं पर आपको क्या हो गया है क्या आप ये नही जानते बच्चे जो अपने बड़ों से सीखते वही खुद करते आप मांजी के साथ ऐसा व्यवहार करके कल को अपने बच्चों से सही व्यवहार की उम्मीद कैसे कर सकते हो??” प्रीति बोली।



” पर मैने क्या गलत कहा जो कहा मां के भले के लिए ही तो कहा !” प्रदीप बोला।

” कहा तो परी ने भी आपके भले को ही है….हर चीज को कहने का ढंग होता है जैसे आपको परी का व्यवहार गलत लगा वैसे मांजी को भी तो आपका लगता होगा ना …फिर मांजी उम्र की जिस अवस्था में है उसमे इंसान फिर से बच्चा बन जाता है उसका मन मचलता है अपनी पसंद की चीजे खाने को और ये मत भूलो ये अवस्था हमारी भी आनी ही है एक दिन !” प्रीति ने समझाया।

” हम् कह तो तुम ठीक रही हो…रुको मैं अभी आता हूं !” प्रदीप ये बोल निकल गया ।

” अरे हुआ क्या कुछ बोलो तो .. उफ्फ ये भी हवा के घोड़े पर सवार रहते हैं !” प्रीति पीछे आवाज देती हुई बोली।

“मां , प्रीति , परी कहां हो तुम लोग ?” थोड़ी देर बाद प्रदीप आवाज लगाता हुआ घर में दाखिल हुआ।

” अरे ये क्या है ?” प्रदीप के हाथ में एक बॉक्स देख प्रीति ने पूछा।

” मां देखो ये आपके लिए !” प्रीति की बात का जवाब न दे प्रदीप ने बॉक्स मां के पास रख दिया।

” ये क्या है ?” शांति जी हैरान हो बोली।

” खोलो तो मां !” प्रदीप खुश होते हुए बोला।

” ये तो एयर फ्रायर है !” प्रीति बॉक्स खुलते ही बोली।

” हां अब मेरी मां को पकौड़े के लिए तरसना नही पड़ेगा तुम इन्हें जो भी तला हुआ खाना हो वो इसमें बना कर देना उससे इनके स्वास्थ्य पर भी गलत प्रभाव नही पड़ेगा ना ही इन्हे तरसना पड़ेगा  !” प्रदीप प्रीति से बोला।

” ये आपने बहुत अच्छा किया मैं अभी मांजी के लिए पकौड़े बना कर लाती हूं !” प्रीति खुश हो बोली और एयर फ्रायर ले चली गई। परी भी खुश हो गई।

थोड़ी देर बाद शांति जी नम आंखों से बेटे के हाथ से पकौड़े खा रही थी। फर्क इतना था कि थोड़ी देर पहले जो आंखें अपमान से नम हुई थी वो अब बेटे के प्यार से नम थी। पकौड़े खाते हुए शांति जी मन ही मन बेटे को ढेरों आशीष दे रही थी। 

प्रीति भी ये सब देख मुंह घुमा कर आंसू पोंछने लगी।

दोस्तों यहां बात सिर्फ पकौड़े की नही है बात है एक बेटे ने मां के दिल को समझा क्योंकि मां तो बेटे की खुशी के लिए सब कुछ करती है पर बेटा जब करता है तो मां के लिए वो बहुत खास होता है। वैसे भी आज का युवा कल का वृद्ध होगा और आज का बच्चा कल का युवा तो जो व्यवहार आज का युवा अपने साथ चाहता है वही उसे करना होगा …यानी अपने जन्मदाताओं का ध्यान रखना होगा।

क्या आप मेरी कहानी से इत्तेफाक रखते हैं।

आपकी दोस्त

संगीता

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!