” इंदू बेटा.. इंटरव्यू कैसा रहा? ” पुष्पा जी ने बेटी से पूछा तो वह अपना हैंडबैग सोफ़े पर पटकती हुई गुस्से-से बोली,” मम्मी …, पापा के तो इतने जान-पहचान वाले हैं,
किसी एक को भी फ़ोन कर देते तो मेरा काम आसानी से हो जाता पर…नहीं…उन्हें तो अपना उसूल प्यारा है।मैं कितने इंटरव्यू दे चुकी हूँ
लेकिन हर जगह मुझे निराशा ही हाथ लगी है।क्या फ़ायदा मेरे गोल्ड मेडलिस्ट होने का।इशिता को देखिये…।
मेरे से हमेशा पीछे रही है लेकिन आज उसने अपने डैडी की सिफ़ारिश से नौकरी पाकर मुझे पीछे कर दिया उसने सबके सामने यहाँ तक कह दिया,” इंदू…तेरे पापा तेरा भला नहीं चाहते।
और अब तो मम्मी …,मुझे भी यही लगता है कि….।” कहते हुए उसकी आँखें डबडबा गई।
पुष्पा जी अपने पति के आदर्शों से भलीभांति परिचित थीं, फिर भी उनसे बेटी का दुख देखा नहीं गया।
वे अपने पति से तीखे स्वर में बोली,” इंदू की नौकरी के लिए आप क्यों नहीं अपने किसी मित्र को फ़ोन कर देते हैं…।
आप कैसे पिता हैं जो बेटी के लिये इतना भी नहीं कर सकते हैं।बाकी सब को देखिये…।”
” कर सकता हूँ पुष्पा लेकिन फिर इंदू के इतने वर्षों की मेहनत का क्या होगा।तुमने देखा है कि कितनी अनुशासित तरीके से उसने अपनी पढ़ाई की थी।
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उसे खुद पर कितना विश्वास है।आज अगर मैंने उसकी सिफ़ारिश कर दी तो उसका खुद पर से विश्वास उठ जायेगा।
अभी तो उसका सफ़र शुरु हुआ है, इसी तरह से असफ़लताओं का सामना करते हुए ही तो हमारी बेटी अपनी मंजिल को प्राप्त करेगी।
फिर भी अगर तुम कहती हो तो मैं…।”
पास खड़ी इंदू अपने पिता की बात सुनकर बोली,” नहीं पापा..अब तो बिलकुल भी नहीं।जैसे काॅलेज़ में मुझे एडमिशन मेरे अंक देखकर मिला था,
वैसे ही नौकरी भी मैं अपनी काबिलियत के दम पर ही प्राप्त करुँगी, किसी की सिफ़ारिश की भीख लेकर नहीं। थोड़ी देर के लिये मैं अपना धैर्य खो बैठी थी,
मुझे माफ़ कर दीजिये..।” बेटी के विचार सुनकर पिता का सीना गर्व से चौड़ा हो गया।उन्होंने ‘ शाबास बेटी ‘ कहकर इंदू को अपने हृदय से लगा लिया।
विभा गुप्ता
स्वरचित