Moral stories in hindi: “ देखो इसको कैसे बेशर्म की तरह अभी भी इस घर में पड़ी हुई है… ये नहीं कि अब यहाँ से चली जाए… भगवान बचाएँ ऐसी बहू से।” कहने को तो अक्षरशः यही शब्द कहे थे जमना चाची ने सुकृति को और संजोग देखो वही शब्द आज उनकी बेटी के लिए उसकी सास कह कर उसे छोड़कर जा रही थी ।
“ ये आप सही नहीं कर रही है आंटी जी.. इसमें बेचारी मोना की क्या गलती है ..आपने अपना बेटा खोया है तो उसने तो अपनी ज़िंदगी ही खो दी है… ये दर्द मुझसे बेहतर कौन समझ सकता है, मोना को आप इस तरह मायके की दहलीज़ पर छोड़कर कैसे जा सकती है?” सुकृति ने कहा
“ तुम कौन होती हो हमारे बीच में बोलने वाली… एक पड़ोसन को इतना दख़लंदाज़ी करना अच्छा नहीं है।”कह कर मोना की सास चली गई
सुकृति मोना को सांत्वना देते हुए उसे ज़मीन पर बिलखते देख गले लगाते हुए बोली,” मोना चलो कमरे में ।”
जमना चाची सुकृति को देख नज़रें चुरा रही थी, उस दिन से ही वो सुकृति की आँखों से गिर चुकी थी जब वो उसे ताने देने से बाज ना आती ,उपर से उसके ही सास ससुर को सुकृति के अपशगुनी होने की बात कह कर कान भरती रहती।
मोना को उसके कमरे में छोड़कर सुकृति अपने घर आ गई।
कई बार इंसान कड़वी यादों से बाहर नहीं निकल पाता है और वो यादें यदा कदा ताजी हो उठती है ।
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शादी कर के सुकृति जब परम की दुल्हन बन कर आई तो पड़ोस में रहने वाली जमना चाची उसकी ख़ूबसूरती की तारीफ़ करते ना थकती, साल भी ना बीता होगा कि परम की एक बस दुर्घटना में मृत्यु हो गई… तब वो दो महीने की गर्भवती भी थी, सास ससुर का इकलौता बेटा चल बसा था अब इनके लिए जो थी वो सुकृति और उसका होने वाला बच्चा और सुकृति के लिए सास ससुर कीं ज़िम्मेदारी जिसे ना तो वो छोड़कर जाना चाहती थी
ना उसके माता-पिता उसे ये करने देते… हाँ वो बेटी को पूरा सहयोग करते थे पर जमना चाची को सुकृति का यहाँ रहना रास ना आ रहा था उनके ताने सुन सुन कर सुकृति नज़रअंदाज़ तो करती रही पर पहले वाली इज़्ज़त अब वो उन्हें चाह कर भी नहीं दे पा रही थी।
समय अपनी रफ़्तार से चल रहा था… सास ससुर भी सुकृति के सेवा भाव और उसके बेटे को देख अपनी ज़िंदगी काट रहे थे, जमना चाची से उन्होंने भी बातचीत कम कर दी थी पर पड़ोसन होने के नाते एकदम से नज़रअंदाज़ करना मुनासिब नहीं था।
दो महीने पहले मोना का पति शराब पीकर गाड़ी चला रहा था और सामने से आती ट्रक से खुद को बचाने के चक्कर में दूसरी तरफ़ से आती कार से टकरा गया और इहलीला समाप्त हो गई…दस और आठ साल के बच्चों के साथ मोना ससुराल में रह रही थी, कोई नौकरी थी नहीं.. घर खर्च चलाना मुश्किल होता देख मोना की सास उसे अपने घर जाने के लिए कहने लगी पर मोना चाहती थी बच्चों के साथ ससुराल में ही रहे… इसलिए मोना की सास उसे ज़बरदस्ती मायके ले आई और जब सुकृति के साथ और लोगों ने पूछा कि आप ऐसा क्यों कर रही है ये आपके घर की बहू है और ये पोते पोती इन्हें अपने साथ ही रखिए ।”
तब ही मोना की सास ने वो वक्तव्य कहे थे जो सुकृति के लिए जमना चाची कहा करती थी ।
“ बहू क्या हम अंदर आ सकते हैं?” दरवाज़े पर ठक ठक के साथ जमना चाची की आवाज़ सुनाई दी और सुकृति यादों से बाहर निकल आई
“ आ जाइए ।” कहते हुए वो बिस्तर से उठ बैठी
“ अब क्या बाकी रह गया चाची ,जो सुनाने आई है?” सुकृति पूछ बैठी
“ जानती हूँ बहू तेरी आँखों में मेरे लिए कोई सम्मान ना बचा है… मैंने करम ही ऐसे किए … पर जब आज तुमने मोना के लिए कहा तब समझ आया मैं कितना गलत बोल रही थी, हो सके तो अपनी जमना चाची को माफ कर देना।” कहते हुए जमना चाची रो पड़ी
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“माफ़ी की कोई बात नहीं है चाची बस मन दुखता था क्योंकि जब आप खुद सदमे में होते है और उस तकलीफ़ में बस सांत्वना चाहता है ,जली कटी सुनना नहीं इसलिए मुझे मोना के लिए बुरा लग रहा था जो भी हो अगर उसके ससुराल वाले उसे ना समझें पर आप बेटी को ज़रूर समझ कर सहारा देना, ताकि उसकी आँखों में आपका सम्मान बना रहे।” सुकृति ने कहा
जमना चाची नज़रें झुकाए वहाँ से चली गईं , किसी अपने पर जब बीती तब उन्हें बात समझ में आई।
दोस्तों आप की बातें या कृत्य ही आपको दूसरों की आँखों का सरताज बना सकता है या फिर आँखों से गिरा सकता है, हमें कुछ भी बोलने या करने से पहले समझना चाहिए उसकी जगह हम होते तो?
जवाब खुद ही मिल जाएगा इसलिए सोच समझ कर बोले।
धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
( मौलिक रचना)
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#ऑंखोसेगिरना ( आदर भाव कम होना)