शहर की तेज़ रफ़्तार ज़िंदगी में साक्षी, एक सफल कॉर्पोरेट प्रोफेशनल, हमेशा अपनी उपलब्धियों का ढिंढोरा पीटती रहती थी। उसे लगता था कि दूसरों की सफलता केवल दिखावा है, असली प्रतिभा तो बस उसी में है।
एक दिन उसे अपनी पुरानी सहपाठी अदिति का सोशल मीडिया प्रोफाइल दिखा। अदिति ने अपने छोटे से बुटीक की तस्वीरें शेयर की थीं। साक्षी ने अपनी सहेली समीरा से कहा,
“देखो न, अदिति! एमबीए करके यह बुटीक खोल रही है? कितनी छोटी सोच है उसकी। लगता है कि वह कभी हमारे जैसे बड़े सपने देख ही नहीं पाई।”
समीरा ने मुस्कुराते हुए कहा, “अच्छा है कि उसने अपने पैशन को फॉलो किया। सबके लिए सफलता की परिभाषा अलग होती है।”
लेकिन साक्षी ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया और अदिति की छोटी सोच पर ठहाके लगाती रही।
कुछ दिनों बाद, साक्षी और समीरा को बॉस ने एक बड़े क्लाइंट से मिलने भेजा। साक्षी को ऑफिस में एक बड़ी क्लाइंट मीटिंग के लिए भेजा गया था। उसे बताया गया कि कंपनी के एक महत्वपूर्ण पार्टनर के साथ डील फाइनल करनी है। वह आत्मविश्वास से भरपूर थी और अपने परफेक्ट प्रेजेंटेशन के बारे में सोचते हुए कॉन्फ्रेंस रूम में पहुँची।
जैसे ही दरवाजा खुला, उसकी आँखें अदिति पर पड़ीं। वही अदिति, जिसे वह कुछ दिन पहले अपनी सहेली समीरा के साथ ताने कसते हुए कह रही थी, “एमबीए करके बुटीक खोलने लगी? यह तो अपने करियर का मजाक बना रही है।”
अदिति ने मुस्कुराते हुए कहा, “ओह, साक्षी! कितने समय बाद मिल रहे हैं। तुम्हारी कंपनी के साथ पार्टनरशिप की खबर सुनकर खुशी हुई। यह डील मेरे ब्रांड के लिए बहुत खास है।”
साक्षी के चेहरे का रंग उड़ गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या बोले। उसके दिमाग में उसके कहे गए शब्द गूंजने लगे। मीटिंग के दौरान, अदिति ने बड़े आत्मविश्वास से अपनी कंपनी के विज़न और विस्तार योजनाओं को साझा किया। पूरे रूम में अदिति की सराहना हो रही थी।
मीटिंग खत्म होते ही बॉस ने अदिति से हाथ मिलाया और साक्षी की ओर देखकर कहा, “अदिति जैसी विज़नरी एंटरप्रेन्योर से सीखने को बहुत कुछ मिलता है। हमें इस साझेदारी पर गर्व है।”
साक्षी सिर झुकाए खड़ी थी। वह चाहकर भी किसी से नजरें नहीं मिला पा रही थी। बाहर आते ही समीरा ने उससे कहा, “तो, साक्षी, अब क्या कहोगी? अदिति ने जिस मेहनत और लगन से अपना ब्रांड खड़ा किया है, वह काबिले तारीफ है। लगता है, तुम्हारे कहे शब्द तुम्हें ही काट रहे हैं।”
साक्षी कुछ नहीं कह सकी। वह चुपचाप बाहर निकल गई। उसे एहसास हो चुका था कि दूसरों की काबिलियत को कम आंकना कितना गलत है। वह पूरी तरह अपना सा मुँह लेकर रह गई।
प्रस्तुतकर्ता
डा. शुभ्रा वार्ष्णेय