गर्मियों की दोपहर थी। सूरज की किरणें तपती धरती को आग के गोले में बदल रही थीं। आंगन में बैठी सुमित्रा बाई के चेहरे पर पसीने की बूंदें चमक रही थीं,
पर उनके चेहरे पर एक संतोष की मुस्कान थी। आज उनका बेटा, रवि, जो शहर में नौकरी करता है, कई महीनों बाद घर लौट रहा था।
रवि जब छोटे शहर से बड़ा होने के बाद पहली बार शहर गया था, तो उसके मन में असीम उत्साह था।
शहर की ऊँची इमारतें, चमचमाती सड़कों, और बड़े-बड़े मॉल ने उसे मंत्रमुग्ध कर दिया था। उसने सोचा था कि वह शहर में ही अपनी नई दुनिया बसाएगा,
लेकिन वक़्त के साथ उसे एहसास हुआ कि घर की सुकून और अपनी मिट्टी की खुशबू की कोई तुलना नहीं है।
शहर की व्यस्त ज़िन्दगी और काम की थकान ने रवि को निचोड़कर रख दिया था। उसे अक्सर अपने छोटे से गाँव का आंगन,
वहाँ की सादगी, और माँ के हाथों का खाना याद आता था। वह दिन भर भागदौड़ में व्यस्त रहता, लेकिन रात को अकेलेपन में अपने बचपन की यादें उसे घेर लेती थीं।
आज, इतने महीनों बाद घर लौटते समय, रवि के मन में एक अजीब सी बेचैनी थी।
गाँव की हर एक चीज़ को वह जैसे नई नज़रों से देख रहा था। सड़क के किनारे खड़े पेड़,
आंगन में खेलते बच्चे, और वो पुरानी हवेली, सब उसे पहले से कहीं ज्यादा खूबसूरत लग रहे थे।
जब वह घर पहुँचा, तो माँ ने अपने बेटे को देखकर अपनी आँखों में आँसू भर लिए। रवि ने माँ के पैरों को छुआ,
और माँ ने उसे गले लगा लिया। उस पल में, रवि को समझ में आ गया कि असली खुशी और संतोष तो अपने ही घर में है।
रवि ने अपने दोस्तों से भी मुलाकात की। वे सभी उससे शहर की बातें जानने के लिए उत्सुक थे,
लेकिन रवि को अपनी गाँव की कहानियों में ही मजा आ रहा था। उसने सोचा कि शहर में रहने के लिए भले ही ज्यादा सुविधाएँ हों,
लेकिन अपने घर की मिट्टी का सुकून, अपनी माँ का प्यार, और बचपन की कुछ खट्टी मीठी यादों का आनंद कोई भी चीज़ नहीं दे सकती।
रात को खाने के बाद, रवि अपने कमरे में गया। वह कमरा जो उसने सालों पहले छोड़ा था,
अब भी वैसा ही था। दीवार पर उसके स्कूल के प्रमाणपत्र और खेल के टॉफियाँ टंगी हुई थीं। वह बिस्तर पर लेटा और अपनी आँखें बंद कर लीं।
उसे अपने घर की खुशबू महसूस हुई, जो उसे सुकून देने के लिए काफी थी।
रवि को एहसास हुआ कि चाहे वह शहर में कितना भी बड़ा आदमी बन जाए, लेकिन उसका असली पहचान और सुकून उसके अपने घर में ही है।
अपना घर, जहाँ हर दीवार, हर कोना उसकी यादों से भरा है, उसकी पहचान है।
सुमित्रा बाई ने अपने बेटे को देखा और उसके चेहरे की मुस्कान से समझ गईं कि उनका
बेटा अब भी उनके अपने घर का ही है। उन्होंने आसमान की ओर देखा और मन ही मन भगवान को धन्यवाद दिया।
वास्तव में, अपना घर अपना ही होता है।
तृप्ती देव
भिलाई छत्तीसगढ़
#अपना घर अपना घर ही होता है