घनश्याम जी के गुजर जाने के बाद उनके दोनों बेटों ने अपनी माँ को बाँट लिया था । सीता किसी के भी पास नहीं जाना चाहती थी । उसे लगता था कि मैं अपने ही घर में पति की यादों के सहारे जी सकती हूँ । अपना घर तो अपना ही होता है ।
लेकिन बच्चे, लोगों की डर से उसे अपने पास रखना चाह रहे थे। वैसे भी घनश्याम जी के गुजरने के बाद से सीता की तबियत भी ठीक नहीं थी उनके घुटनों में दर्द होने लगा था । उन्हें चलने में काम करने में दिक़्क़त होने लगी थी । सीता कुछ दिन यहीं बिताना चाहती थी इसलिए मेहमान और बच्चे सब अपने अपने घर चले गए थे ।
एक दिन सीता सुबह उठकर नहा धोकर पूजा कर रही थी कि बड़ा बेटा निशांत आया और कहने लगा कि माँ मेरे पास ज़्यादा समय नहीं है आप चलिए आज से छह महीने तक आप को मेरे पास रहना है ।
उसके बुलाने में प्यार अपनापन नज़र नहीं आ रहा था । ऐसा लग रहा था कि जैसे वह एक औपचारिकता पूरी कर रहा है । विनोद को छुट्टी नहीं मिली तो उसने कहा कि आप पहले माँ को अपने घर ले जाओ बाद में मैं लेकर जाऊँगा ।
सीता ने कहा कि— निशांत मैंने कहा था ना कि मैं थोड़े दिन यहाँ रहकर फिर आऊँगी, अभी उसकी बातें पूरी भी नहीं हुई थी कि निशांत ने कहा कि माँ अभी मैं अपना काम छोड़कर आया हूँ चलो बाद में बात करना ।
अब सीता की एक न चली और वह सामान बाँध कर उसके साथ चली गई थी । जैसे ही वह निशांत के घर पहुँची तो देखा कि नीरजा अपने माता-पिता के साथ बैठकर चाय पी रही थी ।
निशांत ने कहा कि — अरे यार नीरू मुझे भी चाय पिला दो मैं थक गया हूँ कहते हुए उसने सास ससुर के पैर छुए ।
नीरजा तो सीधे उठकर चली गई चाय बनाने के लिए सास की तरफ़ मुड़कर नहीं देखा था ।
निशांत ने कहा कि— माँ वह सामने वाले कमरे में आप अपना सामान रख लीजिए ।
सीता ने ही उठकर मुश्किल से अपना सामान कमरे में रखा था किसी ने भी उसकी सहायता नहीं की थी ।
सीता ने कमरे को देखा तो छोटा सा था । सिर्फ़ एक पलंग के लिए जगह थी । एक अलमारी जिसमें कपड़े रख सकते हैं उसी कमरे से जुड़ा हुआ छोटा सा बाथरूम था ।
सीता ने सोचा इसमें तो मेरा दम घुटने लगेगा कैसे रहूँगी परंतु और कोई चारा भी तो नहीं था ।
वहीं पलंग पर लेट कर सोच रही थी कि शायद चाय पीने के लिए कोई बुला लेगा पर आधा घंटा हो गया था किसी ने उसे नहीं बुलाया था ।
सीता के दो लड़के थे जैसे हमने पढ़ा है । सीता खुद कॉलेज में लेक्चरर थी चार साल पहले ही रिटायर हुई थी । घनश्याम जी बैंक मेनेजर थे । सीता के रिटायर होने के बाद दोनों बहुत ही जगह घूम फिरकर आ गए थे । अपने दोनों बेटों और बहुओं को देखने के बाद उन्होंने कहा भी था कि सीता अगर मैं अकेला रह जाऊँ या तुम अकेले हो जाओगी तो हमें बच्चों पर निर्भर नहीं रहना है उन्हें अपनी ज़िंदगी जीने देंगे । हम अपनी ज़िंदगी जिएँगे।
अभी यह बात हुई ही थी और अमल करने का समय आ गया था कि घनश्याम जी बीमार पड़ गए थे । अचानक से इतने कॉम्पिलिकेशन्स आ गए थे कि उनका शरीर बर्दाश्त नहीं कर पाया और वे चल बसे थे ।
घनश्याम जी की मृत्यु के बाद आए हुए मेहमानों के सामने अपनी इज़्ज़त बचाने के लिए दोनों बेटों ने माँ को अपने साथ ही रखने का फ़ैसला कर लिया था ।
उनके जाने के बाद दोनों के बीच समझौता यह हुआ कि माँ दोनों के घर छह छह महीने रहेगी । सीता ने उन्हें बहुत समझाने की कोशिश की थी कि वह पढ़ी लिखी है अपने दम पर रह सकती है बीच बीच में उन दोनों के घर आती रहेगी परंतु नहीं वे दोनों जिद पर अड़ गए थे ।
आज उसी जिद का नतीजा है कि उन्हें बड़े बेटे के घर आना पड़ा था।
उसी समय निशांत की दोनों लड़कियाँ कमरे में आ गई उन्हें दादी बहुत पसंद थी क्योंकि वह उन्हें कहानियाँ सुनातीं थीं और उनके स्कूल के काम में मदद करा देतीं थीं ।
वे दोनों सीता से बातें कर रही थी कि नीरजा ने बुलाया था कि खाना लग गया है आ जाइए । टेबल पर सिर्फ़ सीता का खाना लगा था नीरजा के माता-पिता ने खा लिया था निशांत और नीरजा बाद में खाने वाले थे ।
सीता के हलक से एक कौर भी नहीं उतरा क्योंकि अपने घर में तो अकेले ही खाती थी अब यहाँ भी अकेले ही खाना है तो मैं क्यों यहाँ आई हूँ ।
सीता ने निर्णय ले लिया था कि अब वह किसी से कुछ नहीं कहेगी । उस दिन से अपने कमरे में रहने लगी पढ़ती थी या कुछ लिखती थी बच्चों के साथ समय बिताती थी और शाम को घूमने चली जाती थी ।
छह महीने होते ही उसे विनोद के घर भेज दिया गया था । वहाँ छोटी बहू रागिनी पेट से थी । अपनी माँ से घंटों फ़ोन पर बात करती थी । सामने बैठी सास के साथ बातें करना उसे अच्छा नहीं लगता था ।
एक दिन फोन पर माँ से कह रही थी कि मुझसे काम नहीं हो रहा है माँ इसलिए इन्हें अपने घर में रख कर झेल रही हूँ । वैसे उन्हें मैंने खाना बनाने की ज़िम्मेदारी दे दी है । अब सोचो माँ घर बैठे बैठे उनका समय भी नहीं कटता होगा ना इसलिए मैं उन्हें व्यस्त रखना चाहती हूँ कहते हुए ज़ोर ज़ोर से हँस रही थी ।
उसकी माँ डिलीवरी के लिए आने वाली थी इसलिए विनोद से कहा कि माँ को निशांत के घर भेज दो उन्हें यहाँ आकर चार महीने हो गए हैं चाहे तो नेक्स्ट टाईम दो महीने ज़्यादा रख लेंगे ।
विनोद ने निशांत से पूछा कि माँ को अभी ले जाएगा क्या?
अरे सॉरी यार विनोद मैं ही तुझसे बात करने वाला था मेरी यूरोप ट्रिप के टिकट आ गए हैं और मैं उन्हें अपने साथ नहीं रख सकता हूँ ।
दोनों भाइयों ने फ़ोन पर बात किया और सीता को वृद्धाश्रम में रखने का फ़ैसला कर लिया था ।
सबने मिलकर एक दिन माँ को अपने पास बिठाया और बता दिया था कि कुछ दिनों के लिए आप वहाँ जाकर रहिए हम फिर आकर आपको अपने घर ले जाएँगे ।
सीता ने कहा कि मेरा अपना घर है वहीं छोड़ दो वहाँ मेरी अच्छी पहचान है । ज़रूरत पड़ने पर लोग मेरी मदद भी कर देंगे।
उन्होंने कहा कि— सॉरी माँ हमने वह घर ऑलरेडी बेच दिया है ।
सीता आश्चर्य से उनकी तरफ़ देखते हुए बोली पर मैंने तो कहीं साइन नहीं किया है ना ?
निशांत ने कहा कि —-माँ पिताजी के गुजरने के बाद हमने आपसे कई पेपरों पर साइन करवाया था उनमें उस घर के पेपर भी थे ।
सीता ने सोचा- इतना बड़ा धोखा वह भी मेरी कोख से जन्मे बच्चों ने मुझे दिया है ।
उसका दिल टूट गया था । वह सोचने लगी थी कि ऐसे दग़ाबाज़ों के साथ रहने के बदले में वृद्धाश्रम में रहूँगी तो ज़्यादा अच्छा है ।
उसने अपना सामान बाँध लिया । विनोद ने कहा कि कल चली जाना माँ मैं एयरपोर्ट जाने के समय आपको ड्रॉप कर दूँगा ।
सीता ने कहा कि— मुझे आज इसी वक़्त जाना है।
विनोद ही उसे छोड़ने गया था । रास्ते भर कोई बात नहीं हुई ।
वहाँ पहुँचने के बाद मैनेजर से विनोद ने बात की उन्होंने एक महिला को बुलाया और सीता को कमरा दिखाने के लिए कहा ।
सीता उस औरत के साथ चली गई उसने एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखा ।
विनोद को एक बार को लगा था कि हम गलत तो नहीं कर रहे हैं । उसे वह दिन याद आया जब पहली बार माँ ने उसे स्कूल में छोड़ा था। मुझे आया लेकर जा रही थी मैं रो रहा था और माँ की आँखों में भी आँसू थे । वह छुट्टी होने तक बाहर ही बैठी थी जैसे ही मैं बाहर आया माँ ने मुझे गले लगा लिया था । आज जाते हुए माँ ने एक बार पीछे मुड़कर भी नहीं देखा है।
वह उदास हो कर घर आ गया था । उस दिन उसने खाना नहीं खाया था अपने कमरे से बाहर नहीं निकला और ना ही किसी से बात की थी ।
निशांत के बच्चों ने स्कूल से आते ही विनोद को देखकर कहा अरे वाह विनोद चाचू दादी आ गई है क्या?
दादी कहकर पुकारते हुए अंदर दादी के कमरे की तरफ़ जा रहे थे।
निशांत ने कहा कि — रिचा दादी नहीं आई हैं । दादी तीर्थ यात्रा पर अपनी सहेलियों के साथ गई है ।
विनोद को लड़का हुआ था और निशांत की अपनी फेमली ट्रिप भी हो गई थी। निशांत की लड़कियाँ ही दादी को याद करती थी और कोई उन्हें याद नहीं करता था ।
सीता इधर लोगों के बीच घुल मिल गई थी । वहाँ सब उसका आदर करते थे। उन्हें मालूम चल गया था कि वह लेक्चरर थी बस मेडम कहते हुए उसके आगे पीछे घूमते थे । सीता भी उन्हें बहुत सारी बातें बताती थी ।
एक दिन सबको बिठाकर वह नई नई बातें बता रही थी कि एक आवाज़ सुनाई दी थी मेम । सीता मुड़कर देखती उसके पहले ही वह दौड़कर आकर सीता के गले लग गई और कहने लगी कि मैं आपको बहुत खोज रही थी ।
वह कहने लगी बचपन में आपने मेरी इतनी सहायता की थी । आपको मालूम है ना मेरी सौतेली माँ मेरी शादी कराना चाह रही थी और आपने उनसे लड़कर मुझे अपने घर में रख कर पढ़ाया था ।आज मैंने अपने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर अपनी एक कंपनी खोल ली है । हम सब मिलकर कंपनी के साथ वृद्धाश्रम और अनाथालयों में उन लोगों की मदद भी करते हैं जिनका कोई नहीं है ।
बहुत सारी बातें हुई और फोन नंबर का आदान-प्रदान भी हुआ फिर से मिलने का वादा करके वह चली गई थी। मैंने उसका नाम नहीं बताया है ना वह सुजाता है ।
एक दिन सीता कुछ लोगों के साथ बैठी हुई थी। उनकी समस्याओं को सुलझा रही थी कि सामने से निशांत की बड़ी बेटी रुचि दादी कहते हुए आई और दादी के गले लगकर कहने लगी कि आप तो तीर्थ यात्रा पर गईं थीं ना दादी परंतु यह तो ओल्डेज होम है । सीता को लगा कि माता-पिता ने बच्चों के पूछने पर यही बताया होगा । उसे देख कर सीता के आँखों में आँसू आ गए थे ।
सीता रुचि को अपने कमरे में ले गई। वहाँ बिठाकर सबका हाल-चाल पूछा तो उसने बताया था कि विनोद चाचू के बेटे का जन्मदिन है आज तो वे लोग भी यहीं आ गए हैं । दादी शाम को बहुत बड़ी पार्टी है। आप भी चलिए मेरे साथ ।
वैसे रुचि छोटी बच्ची नहीं थी । वह आठवीं कक्षा में पढ़ती थी । उसे अपने माता-पिता और चाचा चाची की करतूतों का पता चल गया था ।
इतने में ही उसकी टीचर आ गई थी। उसने सीता को देखने के बाद उन्हें पहचानने की कोशिश की और फिर उसे याद आया कि यह तो मेरी पी जी की लेक्चरर हैं रुचि ने बताया था कि यह मेरी दादी हैं ।
दादी के साथ टीचर बहुत ही प्यार से बात किया और बच्चों को लेकर चली गई थी ।
सीता अपने कमरे में आ गई थी। उसका मन नहीं लग रहा था । बच्चों को झूठ बोल दिया था कि वह तीर्थ यात्रा पर गई है ।
मैंने उनका क्या बिगाड़ा है। मैंने तो कहा भी था कि मैं अपने घर में रह लूँगी पर मालूम नहीं ईश्वर क्या चाहते हैं ।
उसी समय सुजाता आई उसने कहा मेम चलिए आप हमारा काम करेंगी हमने आपके लिए एक फ़्लैट ले लिया है
सीता ने पूछा कि कौनसा काम करना है। कहाँ फ़्लैट लिया है कुछ अच्छे से बता बेटा ।
उसने कहा— ठीक है सुनिए मैंने जैसे आपको बताया था कि हम कुछ लोगों की मदद करते हैं जिनका कोई नहीं है बस उनको आपकी ज़रूरत है । मैंने मैनेजर से बात कर लिया है । आप आज ही मेरे साथ चल रही हैं ।
सुजाता उसका सामान लेकर कार में रखती है । सीता सब लोगों के पास जाकर उनसे विदा लेती है । कुछ ही दिनों में उसने सबका दिल जीत लिया था ।
सुजाता ने घर दिखाया बहुत ही अच्छा था।
सुजाता ने कहा कि मेम यह आपका अपना घर है आप यहीं रहेंगी । कल से आप हमारे साथ मिलकर काम करेंगी ।
उस रात सीता सुकून की नींद सो रही थी क्योंकि अपना घर अपना ही होता है उसके अपने बच्चों ने उससे घर छीन लिया है तो क्या ईश्वर ने उसे दूसरा घर देकर उसकी ज़िंदगी ही बदल दी है । सुजाता ने दूसरे दिन उन लोगों से मिलाया जो अनाथ थे । सीता उन लोगों से मिली तो बहुत अच्छा लग रहा था । वह सोच रही थी कि सुजाता और उसके दोस्त इतने छोटे बच्चे हैं उन्होंने इतना बड़ा काम किया है । एक फ़्लैट लेकर उन अनाथ बच्चों को वहाँ रखा था । सीता का फ़्लैट उनके फ़्लैट के सामने ही था ताकि वे उन पर नजर रख सके । सीता उन्हें देख कर खुश हो गई थी कि छोटे बच्चों की पढ़ाई में मदद करना ही नहीं उनका मार्गदर्शन करना था यह तो सीता के लिए आसान था ।
एक बार सीता को लगा अपने बच्चों की परवरिश भी मैंने ही किया था परंतु मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि वे इस तरह का व्यवहार करेंगे ।
रिचा जब घर पहुँच गई थी तो देखा पूरा परिवार ख़ुशियाँ मना रहा था । उसे किसी से भी बात करने की इच्छा नहीं हुई । उसने अपने कमरे में जाकर दरवाज़ा बंद कर लिया था ।
बाहर हेपी बर्थडे गाना सुनाई दे रहा था । किसी को भी फ़िक्र नहीं थी कि बच्ची घर पहुँच गई है या नहीं । वह अंदर ही बैठी हुई थी उसकी आँख लग गई थी ।
बाहर ज़ोर ज़ोर से दरवाज़ा पीटने की आवाज़ आ रही थी तो उसकी नींद खुली जल्दी से उसने दरवाज़ा खोला तो पूरा परिवार वहाँ खड़ा था ।
सबने कहा कि कब आई थी केक कटिंग के समय क्यों नहीं आई । सब प्रश्नों की बौछार कर रहे थे ।
रिचा की नींद उड़ गई थी। बिना विलंब किए उसने कहा पापा दादी नहीं आई है क्या ? आज तो उनके पोते का पहला जन्मदिन भी है ।
विनोद को याद आया अरे आज तो मैं माँ को ला सकता था न मैं भी कैसा भुलक्कड़ हो गया हूँ । निशांत बेटी को बता रहे थे कि दादी अगले महीने आएगी उसकी तीर्थ यात्रा तब तक ख़त्म हो जाएगी ।
वाहह उसने ताली बजाई क्या बात है ? पापा झूठ बोलना तो कोई आपसे सीखे वाहह !!!
नीरजा ने कहा— अपने पापा से ऐसे बात करते हुए तुम्हें शर्म नहीं आ रही है । अपना मुँह बंद कर दादी की चमची । वाहह माँ आप तो महान हैं ।
सब लोग देख रहे थे कि हमेशा चुप चाप रहने वाली रिचा आज शेरनी बनी हुई है ।
उसके आँखों से आँसू बहने लगे और वह रोते हुए कहने लगी आज मैंने दादी को वृद्धाश्रम में देखा है। पापा आपकी नज़र में वही उनकी तीर्थ यात्रा है शायद ।
मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि मेरे महान पापा और चाचा अपनी खुद की माँ के साथ ऐसा व्यवहार करेंगे।
मेरे क्लास के बच्चों के सामने मेरी तो इज़्ज़त चली गई थी । जब वे आपस में बातें कर रहे थे कि यह तो रिचा की दादी हैं । रिचा ज़ोर ज़ोर से रोने लगी थी कि मैं भी नहीं रहूँगी इस घर में ।
उसकी बातों को सुनकर दोनों भाइयों को शर्म महसूस हुई । उन्होंने दूसरे दिन सुबह वृद्धाश्रम जाकर माँ को लेकर आने निर्णय ले लिया।
उन्हें नहीं मालूम था कि समय किसी के लिए नहीं रुकता है । हमें जिनकी ज़रूरत नहीं होती है उनकी ज़रूरत बहुतों को होती है ।
दूसरे दिन सुबह दोनों भाई वहाँ अपने परिवार के साथ पहुँचे थे कि माँ के पैरों पर गिरकर उनसे माफ़ी माँग कर घर लेकर आएँगे। यह क्या माँ तो यहाँ है ही नहीं । मैनेजर ने बताया था कि कल ही सीता जी यहाँ से चली गई है ।
उन्होंने सुजाता का पता दिया था कि इनके साथ मिलकर आपकी माँ गई हैं । दोनों बेटे अपने परिवार के साथ मैनेजर के दिए हुए पते पर गए । जैसे ही इनकी कार रुकी तो अंदर से सुजाता आई और पूछा कि क़िससे मिलना है जैसे ही उन्होंने कहा कि सीता से मिलना चाहते हैं तो उसने अंदर की तरफ़ मुड़कर कहा मेम आपके लिए कोई आया है ।
सुजाता मेरे लिए कौन आया है कहते हुए बाहर आई देखा तो उसके बेटे और बहू थे रिचा और प्राची दादी के गले लग गए वह समझ गई थी कि रिचा के कारण उसके बेटे यहाँ आए हैं । उन्हें बिठाया और पूछा कि मैं आपकी क्या सहायता कर सकती हूँ ।
यह सुनते ही चारों सुजाता के पैर पर गिर कर रोने लगे।
सुजाता आश्चर्य चकित हो कर देख रही थी कि कितने बदनसीब बच्चे हैं ये बच्चे कि अपनी माँ के प्यार से वंचित हो गए हैं ।
उन्होंने माँ से क्षमा माँगी और घर वापस चलने की जिद करने लगे ।
सीता ने बहुत ही समझदारी दिखाई और बिना बच्चों के दिल को दुखाए उन्हें मना लिया कि वह यहीं उन लोगों के साथ रहना चाहती है। जहाँ उसकी ज़रूरत है । वह कुछ काम करके अपने आप को व्यस्त रखना चाहती है ।
बच्चों के कहने पर एक महीने या पंद्रह दिन में एक बार उनसे मिलने आएगी । इसी बात से खुश हो कर वे घर वापस चले गए थे ।
सीता ने सुजाता का हाथ पकड़ा और कहा कि मेरे लिए तुमने इतना अच्छा काम दिया है मैं बहुत खुश हूँ बेटा ।
स्वरचित
के कामेश्वरी