यह कथन ध्रुव सत्य है कि – जैसे ध्रुव तारा अपने स्थान पर सदा अटल रहता है, उसी प्रकार घर भी हमेशा अपने स्थान पर अटल रहता है । अब इस बात को भी हम नकार नहीं सकते कि भारत जैसे देश में जहां अधिकांश आबादी गरीबी रेखा के नीचे रहती है वहां अपना खुद का घर होना किसी विलासिता से कम बात नहीं है।
और सौभाग्य से मेरे पास अपना खुद का घर है। परंतु प्रश्न यह है कि घर क्या है , ईंट,पत्थर, लकड़ी, लोहा आदि से घिरा हुआ एक क्षेत्र जिसे हम मकान कहते हैं,जब उसे मकान में हम निवास करने लगते हैं तो वह घर कहलाता है।
उस घर को हम अपनी इच्छा सुविधा और समर्थ के अनुसार व्यवस्थित करते हैं , सजते संवारते हैं और फिर उसमें निवास करते हैं । यह घर हमारी कितनी पीडियों के लिए यादगार हो जाता है यहां कितने ही मेहमान और मित्रगंण आते हैं हम अपने घर में उनका स्वागत सत्कार करते हैं।
हम उसी घर में उनके साथ अपना सुख दुख अपनी खुशियां बांटते हैं क्योंकि वह हमारा अपना घर होता है वहां हमें अपनापन मिलता है। हम अपने घर में अपनी आवश्यकता अनुसार रहते हैं अपने हिसाब से उसका निर्माण करते हैं। हमारा घर हमें सभी ऋतुओं और विपदाओं में सुरक्षित रखता है क्योंकि वह हमारा अपना घर होता है।
जिस प्रकार हमारा भारत देश हमारी मातृभूमि हम देशवासियों के लिए घर है , उसी प्रकार हमारा अपना घर भी तो है , इसीलिए किसी कवि ने क्या खूब लिखा है कि – हमें हमारे देश, हमारी धरती और हमारे घर पर गर्व करना चाहिए क्योंकि –
” विषुवत रेखा का वासी जो जीता है नित्य हांफ हांफ कर , रखता है अनुराग अलौकिक वह भी अपनी मातृभूमि पर , हिमवासी जो हिम में तम में , जीता है नहीं तो कांप-कांप कर , कर देता है प्राण निछावर वह भी अपनी मातृभूमि पर। ”
इस प्रकार हम देखते हैं कि मनुष्य तो क्या पशु – पक्षी , असामाजिक तत्व चोर – डाकू सभी अपने घर से प्रेम करते हैं , इसकी सुरक्षा करते हैं सेवा जतन करते हैं क्योंकि अपना घर तो अपना ही होता है । अपने घर में तो हमारा एक अलग ही अंदाज होता है वहां अपना एक अलग ही रुतबा होता है
वहां कोई भी हम पर अपने विचार नहीं थोपता। अपने घर को हम अपने हिसाब से सजा भी सकते हैं और बिखर भी सकते हैं हम चाहे दुनिया के किसी भी कोने में घूमने चले जाएं परंतु यदि सुकून की बात की जाए तो वह हमें अपने घर पर ही आकर मिलता है।
जंगल में शेर भालू भी अपनी गुफा बचाने के लिए आपस में लड़ते रहते हैं एक दूसरे की जान तक ले लेते हैं, पक्षी भी अपने घोसलों की रक्षा करते हैं , तो फिर हम तो मनुष्य हैं हमें तो अपना एक घर चाहिए ही, जहां हम हर विपत्ति की स्थिति में अपना
जीवन व्यतीत कर सकें। यहां हमारी पृथ्वी पर तो भगवान के भी कई घर बने हुए हैं, जिसे हम मंदिर, मस्जिद,गिरजाघर आदि कितने ही नाम से जानते हैं । इसीलिए कहा जाता है अपना घर अपना ही होता है।
हम पर चाहे जैसे भी स्थिति क्यों ना आ जाए हम अपने घर में अपने आप को सुरक्षित महसूस करते हैं पर यदि हम किसी पराए के घर में हो और थोड़ी सी भी ऊंच-नीच हो जाए तो लोग हमें गालियां देने लगते हैं सबके सामने बेज्जती करते हैं, हमें नीचा दिखाने की कोशिश तक करते हैं, परंतु घर यदि हमारा खुद का हो तो ऐसा कोई सोच भी नहीं सकता करना तो दूर की बात।
हमारे घर का बहुत महत्व भी है यहां हम अपनी चाहत के अनुसार बाग – बगीचे भी लगा सकते हैं जिस्से हमें सुकून मिलता हो कभी-कभी कुछ धन उपार्जन भी हो जाता है । बाड़ा घर होने पर हम किराए पर भी दे सकते हैं और अपने हिसाब से दुकान बनाकर आमदनी भी कर सकते हैं।
इसीलिए कहते हैं – ” अपना घर तो अपना ही होता है। “
अनन्या चक्रवती