रवीश , आप क्यों बार-बार चाहत को यह महसूस कराना चाहते हो कि अभि से शादी करनी उसकी गलती है। जब हमारी बेटी उसके साथ खुश है तो फिर परेशानी क्या है?
वो उसके साथ खुश नहीं है गीता ! कमाल है कि तुम माँ होकर भी अपनी बेटी का चेहरा नहीं पढ़ सकती । वो खुश होने का नाटक करती है ताकि हमें दुख ना हो ।
नहीं, आपने एक धारणा बना ली है और आप अड़ गए हैं । चाहत और अभि बहुत खुश हैं । रही छोटी- छोटी नोकझोंक तो , वह विवाहित जीवन का हिस्सा है । क्या हम दोनों में कभी कोई बहस नहीं होती ?
कैसी औरत हो ? मेरी बेटी के पास बुनियादी सुविधाएँ भी नहीं और तुम कहती हो कि वह खुश हैं ।
सब हो जाएगा । आपको याद नहीं कि हम केवल पहनने के कपड़े लेकर घर से आए थे और कैसे धीरे-धीरे सारा सामान जुटाया था । अगर अभि हमारी मदद लेना नहीं चाहता तो तुम्हारे अहम को ठेस क्यों लग रही है । चाहत ने मुझे साफ़ कहा है कि अभि केवल हमसे ही नहीं बल्कि अपने माता-पिता से भी किसी प्रकार की मदद नहीं चाहता । और फिर मैंने चाहत को कह दिया कि अगर कोई भी ज़रूरत हो तो बता दे ।
पत्नी गीता के तर्कों के सामने निरुत्तर होकर रवीश अपने कमरे में चले गए और गीता ने समझा कि शायद पति को उसकी बात समझ आ गई । अभी दो ही दिन गुजरे थे कि चाहत का फ़ोन आ गया ।
मम्मी, आपको पता है कि पापा आज अभि के दफ़्तर गए थे और उसके बॉस से मिलकर न जाने क्या बात करके आए कि अभि काफ़ी नाराज़ लग रहा है । ना तो उसने ढंग से बात की ना ही खाना खाया । केवल इतना कहा कि नौकरी छोड़कर आया है और मुझसे पूछ रहा है कि मुझे अपने घर जाना है या उसके साथ । आप प्लीज़ पापा से पूछिए कि उन्होंने मि० खन्ना से क्या कहा अभि के बारे में?
नहीं बेटा , शायद अभि को कोई ग़लतफ़हमी हुई हो क्योंकि तुम्हारे पापा से इस बारे में मेरी बात हो चुकी है । वैसे तुम कहती हो तो अभी बात करके बताती हूँ ।
चाहत की आवाज़ सुनकर गीता तुरंत रवीश के पास गई—-
क्या आज आप खन्ना भाई साहब के पास ऑफिस में गए थे?
हाँ, गया था । वो मेरे बचपन का दोस्त है । मैं कभी भी उससे मिलने जा सकता हूँ । किस बारे में बात कर रही हो ?
रवीश, आप अच्छी तरह से जानते हैं कि मैं किस बारे में बात कर रही हूँ । क्या कह आए आप उन्हें कि अभि नौकरी से त्यागपत्र देकर आ गया?
त्यागपत्र….. ये लड़का क्या समझता है अपने आप को ? अपनी पत्नी को सुख- सुविधाएँ तो क्या देगा , मुँह का निवाला भी छीन लिया । जाहिल कहीं का ….वो क्या सोचता है कि उसे क़ाबिलियत के बलबूते पर तरक़्क़ी मिलेगी, उस जैसे हज़ारों हैं ऑफिस में । अगर खन्ना ने उसका प्रमोशन करके सीनियर मैनेजर बना दिया तो कम से कम मेरी बच्ची तो सुख का जीवन जिएगी ।
पर आपको इस तरह सिफ़ारिश करके अभि का अपमान करने की क्या ज़रूरत है रवीश? ज़रूरी तो नहीं कि जो विचार आपके हैं , वहीं अभि के हों । आप सोचते हैं कि सिफ़ारिशों के बल पर तरक़्क़ी मिलती है पर अभि सोचता है कि मेहनत और योग्यता के बल पर । मैं आपको समझा कर थक गई हूँ कि अपनी बेटी का घर बर्बाद मत करो । जैसा जीवन वो चाहते हैं… जीने दो । अगर ज़रूरत पड़ी तो हम हैं ही , कोशिश तो करने दो ।
अरे छोड़ो उसे , मेरी बेटी उस कंगले के साथ तिल- तिल मरने के लिए नहीं है । मैं उसे अभी लेकर आऊँगा, बड़ा आया नौकरी छोड़कर आने वाला । वो मरे भूखा , मेरी चाहत घुट-घुटकर नहीं मरेगी ।
इतना कहकर रवीश ने अपनी बेटी को कई फ़ोन किए पर कोई जवाब न पाकर , गीता से बोले—-
ज़रा चाहत को फ़ोन मिलाना , मेरा तो मिल ही नहीं रहा ….
गीता ने भी कई फ़ोन किए पर फ़ोन स्विच ऑफ आ रहा था । गीता ने सोचा कि अब कल बात करूँगी । पति- पत्नी के बीच में ही मामला सुलझ जाए तो ठीक रहता है । रवीश को बड़ी मुश्किल से उस समय जाने से रोका । अगले दिन रवीश गीता को यह कहकर ऑफिस चले गए कि चाहत से बात कर ले और बता दे कि वह शाम को पापा के साथ घर आ जाए ।
रवीश के जाने के बाद गीता बेचैन सी हो गई क्योंकि कल बेटी की आवाज़ में उसने पति के अपमान की पीड़ा महसूस की थी ।
गीता फ़ोन करने की सोच ही रही थी कि तभी चाहत का फ़ोन आ गया—-
मम्मी, प्लीज़ मेरी बात रिकार्ड कर लें नहीं तो पापा आपकी बात पर यक़ीन नहीं करेंगे और फिर से अभि का अपमान कर देंगे …….. मैं कल रात ही अभि के साथ दिल्ली आ गई हूँ । सामान तो कोई ख़ास था नहीं हमारे पास । मैं ऐसे दोराहे पर खड़ी थी जहाँ से मुझे अभि के साथ चलने का रास्ता चुनना पड़ा । मम्मी, पापा को लगता है कि मेरी ख़ुशी धन- दौलत और सुख- सुविधाओं में है पर अभि मेरा बहुत सम्मान करता है । मैं ऐसे जीवनसाथी को खोना नहीं चाहती जो एक अच्छा इंसान हो । हमें कम से कम एक साल का समय दीजिए । मम्मी, मैं आपसे रोज़ बात कर लूँगी पर प्लीज़ आप कॉल मत करना । कोई ज़रूरी बात हो तो मैसेज कर देना । अभि का मनोबल टूट चुका है , उसके विश्वास को ठेस पहुँची है ।मुझे अपने पति को सँभालने के लिए केवल आपके आशीर्वाद की ज़रूरत है । रखती हूँ, जल्दी ही फ़ोन करूँगी । अपना और पापा का ध्यान रखना ।
शाम को गीता ने रवीश को पूरी रिकार्डिंग सुनवाई तो वे चुपचाप वहाँ से उठकर चले गए । उस दिन खाने को भी मना कर दिया । गीता ने भी उन्हें कुछ समय अकेले छोड़ना उचित समझा । अगले दिन सुबह गीता चाय लेकर उनके पास गई और बोली—-
रवीश, हमारी चाहत बहुत अच्छी बेटी है । तुम्हें तो गर्व होना चाहिए उस पर । जहाँ आजकल छोटी-छोटी बातों पर तलाक़ हो रहे हैं, पति-पत्नी के रिश्ते बिखर रहे हैं, भावनाओं का उपहास हो रहा है वहाँ चाहत ने अपने पति का साथ देकर एक मिसाल पेश की है । आपकी बेटी भी आपसे बहुत प्यार करती है बस उसे नए जीवन में सामंजस्य स्थापित करने का थोड़ा सा समय और सहयोग दीजिए ।
तुम ठीक कहती हो गीता, मैंने ही जल्दबाज़ी दिखाई । ना मैं उस दिन खन्ना के पास जाकर प्रमोशन की बात कहता , ना अभि के स्वाभिमान को ठेस पहुँचती और ना हमारे बच्चों को एक नए आशियाने की तलाश में शहर छोड़कर जाना पड़ता । पर जब भी तुम्हें हफ़्ते-दो हफ़्ते में , उचित लगे मेरी चाहत से बात करवा देना, मैं अपने जिगर के टुकड़े से बात किए बग़ैर नहीं रह सकता ।
तक़रीबन हफ़्ते के बाद ही चाहत ने अपनी मम्मी को बताया कि अभि और उसने एक स्टोर पर नौकरी कर ली है । गीता को सुनकर दुख तो हुआ कि इतनी छोटी सी नौकरी पर अपने जज़्बातों पर क़ाबू रखकर उसने रवीश को केवल नौकरी मिलने की बात बताई । दो महीने बाद ही एक अच्छी कंपनी में चाहत को नौकरी मिल गई पर अभि को स्टोर पर ही काम करना पड़ रहा था पर चाहत के साथ ने कभी उसका मनोबल टूटने नहीं दिया, तक़रीबन आठ महीने बाद एक प्राइवेट बैंक में मैनेजर के पद पर अभि का चयन हो गया । उसी दिन चाहत ने रवीश को फ़ोन किया । इतने महीनों बाद बेटी की कॉलर रिंगटोन सुनकर रवीश की आँखें भर आई और उसने भर्राए गले से कहा—-
चा..ह..त.! बेटा आज पापा की याद आई ?
पा…पा…. ऐसा एक दिन नहीं गया जब आपकी याद नहीं आई पर क्या करती , अगर भावनाओं में बहकर ग़लत कदम उठा लेती तो बाद में आपकी चिंता देखकर, कभी खुद को माफ़ ना कर पाती । पापा , मैं और अभि इतवार को एक हफ़्ते की छुट्टी लेकर आपके पास आ रहे हैं । आप भी छुट्टी ले लेना , इन आठ दिनों में बीते दिनों की सारी कमी पूरी करनी है ।
आ जाओ बेटा , मैं और तुम्हारी मम्मी इंतज़ार करेंगे ।
लेखिका : करुणा मलिक