अपमान और तिरस्कार के बीच जीते-जीते वर्षा की आधी जिंदगी निकल गई। उसका पति, रमेश, रोज शराब पीकर घर आता और अक्सर वर्षा पर हाथ उठाता। उनकी शादीशुदा जिंदगी जैसे नरक बन गई थी। वर्षा का बेटा पाँचवीं कक्षा में और बेटी तीसरी कक्षा में थी। हर दिन के मानसिक और शारीरिक शोषण ने वर्षा को पूरी तरह तोड़ दिया था।
वर्षा हर दिन सोचती कि वह क्या करे। घर का खर्चा, बच्चों की पढ़ाई और ऊपर से ससुराल वालों की बातें—इन सबके बीच उसका दम घुटने लगा था। उसकी सास उसे हर वक्त ताने देती, “तेरे से कुछ नहीं होता। घर की इज्जत मिट्टी में मिला दी।” इन सब बातों से तंग आकर वर्षा ने एक दिन बड़ा फैसला लिया। उसने अपने और बच्चों के सामान को पैक किया और घर छोड़ने का निश्चय किया।
जब वर्षा घर से निकलने लगी, तो उसकी सास उसके पीछे-पीछे गालियां देती हुई आई। सास चिल्लाई, “करमजली! अब कहां जा रही है? किसके साथ भाग रही है?” लेकिन वर्षा ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। वह अपने बच्चों का हाथ पकड़े आगे बढ़ती गई।
बस स्टैंड पहुंचकर वर्षा ने अपनी मायके की ओर जाने वाली बस ली। जब वह मायके पहुंची, तो उसकी मां ने चिंतित होकर पूछा, “बेटी, क्या हुआ? तू अचानक यहां कैसे आ गई?” वर्षा ने अपनी मां को सारी बातें बताईं और कहा, “मां, मैं अब ससुराल नहीं जाऊंगी। मैं बहुत परेशान हूं।” उसकी मां तो उसे सहारा देने के लिए तैयार थी, लेकिन उसकी भाभी ने ताने मारने शुरू कर दिए। भाभी बोली, “हम लोग तुम्हारा खर्चा नहीं उठा सकते। हां, अगर कुछ दिनों के लिए आई हो, तो रह सकती हो।”
वर्षा ने भाभी से कहा, “मुझे बस एक सप्ताह का समय दो। मैं अपना काम ढूंढ लूंगी और यहां से चली जाऊंगी।” अगले ही दिन वर्षा ने चार घरों में रोटी बनाने का काम शुरू कर दिया। धीरे-धीरे उसकी मेहनत रंग लाई। उसने कुछ पैसे जमा किए और बच्चों का दाखिला एक सरकारी स्कूल में करा दिया। कुछ समय बाद उसने एक छोटा-सा किराए का मकान ले लिया और वहां शिफ्ट हो गई।
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वर्षा की जिंदगी अब एक नई दिशा में बढ़ रही थी। एक दिन अचानक रमेश गांव में वर्षा को ढूंढते हुए पहुंच गया। उसे जब वर्षा के नए घर का पता चला, तो वह वहां आ पहुंचा। वर्षा को देखकर रमेश ने कहा, “मैं बहुत गलतियां कर चुका हूं। मुझे माफ कर दो। अब मैं बदल गया हूं।” वर्षा ने पहले तो रमेश को माफ करने से इनकार कर दिया, लेकिन रमेश ने बार-बार मिन्नतें कीं और कहा, “मैं अब शराब नहीं पिऊंगा। मैं पूरी तरह सुधर गया हूं। बच्चों के सामने अब कोई गलत हरकत नहीं करूंगा।”
वर्षा ने रमेश को कुछ शर्तें रखकर घर में रहने की इजाजत दी। उसने कहा, “अगर तुम फिर से मेरे पैसे लेकर भागे, तो मैं तुम्हें कभी माफ नहीं करूंगी।” रमेश ने वादा किया कि वह कभी ऐसा नहीं करेगा। रमेश ने पास की एक दुकान में नौकरी करनी शुरू कर दी। धीरे-धीरे दोनों की जिंदगी फिर से पटरी पर आ गई। रमेश ने वाकई अपनी आदतें बदल लीं और वर्षा ने भी उसे एक और मौका दिया।
वर्षा और रमेश ने मिलकर मेहनत की और कुछ सालों में अपना खुद का घर खरीद लिया। बच्चे भी अब बड़े हो गए थे और अपनी पढ़ाई पूरी करके अच्छी नौकरियों में लग गए थे। वर्षा को अपनी मेहनत और संघर्ष पर गर्व था।
एक दिन, सास वर्षा का हालचाल लेने उनके घर आई। वर्षा को देखकर सास ने कहा, “बेटी, मैंने तुम्हारे साथ बहुत बुरा किया। जब तुम हमारी मदद मांग रही थी, तब मैंने तुम्हारा साथ नहीं दिया। यह मेरी सबसे बड़ी भूल थी। मुझे माफ कर दो।” वर्षा ने सास की तरफ देखा और कहा, “मां, उस समय आपने मेरा साथ नहीं दिया, लेकिन अब मुझे कोई शिकायत नहीं है। जो हुआ, वह बीत चुका है।”
इसके बाद सास भी वर्षा और रमेश के साथ रहने लगीं। घर में अब सुकून और खुशी का माहौल था। सास ने महसूस किया कि हर घर की बहू को बेटी की तरह मानना चाहिए। उन्होंने अपने अनुभव से सीखा कि किसी भी बहू को उसकी स्थिति में अकेला छोड़ना गलत है।
दोस्तों चाहे परिस्थितियां कितनी भी कठिन क्यों न हों, आत्मनिर्भरता और मेहनत से जीवन में बदलाव लाया जा सकता है। यह कहानी उन महिलाओं के लिए प्रेरणा है, जो मुश्किल हालात में भी हार नहीं मानतीं।
लेखिका : विधि जैन