आज रचना की खुशी का पारावार नहीं है। कार तेज गति से चल रही है और रचना के मन की गति उससे भी तेज चल रही है। वह जल्दी से मायके पहुंचकर अपने भैया विशाल के गले लगकर उसे बधाई देना चाहती है। तभी उसका पति अमित ड्राइवर को हिदायत देता है, “अरे सोहन! गाड़ी जरा धीरे चलाओ।”
रचना समझती तो सब है पर आज उसका मन नियंत्रण में कहां? वह अपने पति से नाराज़गी दिखाती है, “मैं तो चाह रही हूं कि ये कार उड़ चले और आप इसे दौड़ने भी नहीं दे रहे।”
दोनों की प्यार भरी नोंक-झोंक जारी है और तभी विशाल का फोन आ जाता है, “कितनी देर में पहुंच रही है मेरी गुड़िया? मैं तेरे इंतजार में घंटे भर से घर के बाहर खड़ा हूं।” अपने से तीन साल छोटी रचना को उसका भाई विशाल प्यार से गुड़िया ही बुलाता है।
“बस भैया, दस मिनट और!” रचना कहती है। फिर वह अपने पति से मुखातिब होती है, “विशाल भैया ने प्रण लें रखा था कि मेरी शादी के बाद ही वे शादी करेंगे। मुझे खुशी है कि मां-पापा ने उनकी पसंद की लड़की को बहू बनाना स्वीकार किया है।आज मैं अपनी होने वाली प्रिया भाभी से मिलूंगी, कितनी स्वीट फीलिंग है ना, अमित! बस घर आ जाए और कार से बाहर निकलते ही मैं नाचना शुरू कर दूंगी।”
और कार थम गई। पापा, मम्मी, विशाल भैया और छोटा भाई अनुज, सभी उनकी प्रतीक्षा में पलकें बिछाए खड़े थे। सबसे आगे दौड़कर आते हुए विशाल भैया अपनी गुड़िया को गले लगाते हैं। फिर सब एक एक कर रचना और अपने दामाद अमित का अभिवादन करते हैं। रचना तो थिरकती हुई ही घर में प्रवेश करती है।
बेटी-दामाद की सब खूब खातिरदारी करते हैं। रचना की मम्मी अपने दामाद अमित की खूब बलैया लेती हैं और पापा भी उनके परिवार के सब सदस्यों का हाल-चाल पूछते हैं। अनुज भी अपने दीदी-जीजू की सेवा में एक पांव पर खड़ा है। लेकिन विशाल एक बार रचना से मिलने के बाद न जाने कहां गायब हो गया है। रचना की नजरें अपने भैया को ढूंढ रही हैं।
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अमित रचना को समझाते हैं, “भैया पुलिस विभाग में बड़े अधिकारी हैं। इस कार्य में हर समय सतर्क रहना पड़ता है। कोई आवश्यक काम आ गया होगा। तुम थोड़ा धीरज रखो।”
रचना शांत हो जाती है और सब आराम से स्वादिष्ट भोजन का आनंद लेते हैं। अमित मां के हाथों बने भोजन की तारीफ करते हुए उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हैं। इससे रचना को अपने भाग्य पर रश्क होता है और उसके मां-पापा के मन के सारे संशय धुल जाते हैं।
रचना के पापा स्वत: ही एक साल पहले के अतीत में खो जाते हैं। वे अपनी रचना के लिए सुयोग्य वर की तलाश में थे। उनके ममेरे भाई ने अमित को सीनियर बैंक मैनेजर बताकर रिश्ता करवा दिया। बिचोलिए के रूप में उनका कजिन ही था तो उन्होंने अधिक पूछताछ भी नहीं की।
रचना के विवाह के अवसर पर वर पक्ष की ओर से रचना के लिए आए आभूषण और वस्त्रों के स्तर से उत्पन्न हुआ संदेह थोड़ी देर में यकीन में बदल गया जब उन्हें पता चला कि अमित बैंक में क्लर्क के पद पर कार्यरत है। लेकिन अब देर हो चुकी थी। फेरे संपन्न हो गए थे। वे धोखे का शिकार हो गये थे और उनके पूरे परिवार पर वज्रपात हुआ था।
रचना की विदाई के समय उन सब की आंखों में बेटी के बिछोह के साथ साथ उम्र भर के इस दर्द के आंसू बेटी रचना साफ महसूस कर रही थी। वे अपनी लाडली रचना से नजरें नहीं मिला पा रहे थे। रचना को अपने से अधिक अपने मां-पापा और भाइयों की चिंता थी।
पगफेरे पर रचना आई तो चारों को एक तरफ ले जाकर बड़ी बन सबको समझाने लगी, “मां-पापा, माना कि हमारे साथ धोखा हुआ है। लेकिन अमित इस सबसे अनजान है। उनकी हैसियत हमारे से कम है लेकिन अमित सुलझे हुए इंसान हैं। रिश्तों की कद्र करना जानते हैं और मुझे क्या चाहिए! संस्कार के सामने संपत्ति का क्या अस्तित्व? इसलिए अपने को दोषी मानना बंद कीजिए और चलिए सब हंस कर दिखाइए, तभी मैं ससुराल में हंसी खुशी से रहूंगी। वरना…..”
“बेटियां ऐसी ही होती हैं। मुझे अपनी बेटी पर गर्व है।” सोचते हुए रचना के पापा की आंखों में नमी आ गई। तभी रचना ने पापा के कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा, ” क्या सोचने लगे, पापा? देखिए, मैं, अनुज और अमित तो तैयार हो गए हैं। आप भी जल्दी से रेडी हो जाइए। फिर चलते हैं ना मेरी होने वाली भाभी और उनके परिवार से मिलने।”
रचना के पापा तंद्रा से जागे और बस 5 मिनट में आया, कहते हुए तैयार होने चले गए। अनुज और अमित थोड़ी देर पास के पार्क में घूमने चले गए।
अब रचना अपनी मम्मी को साड़ी पहनाते हुए मजाक करती है, “मम्मी, आज आपका प्रमोशन पक्का समझो। नई पोस्ट आप जल्दी ही ज्वाइन करेंगी। बस मेरी भाभी को रौब ज्यादा नहीं दिखाइएगा।”
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तभी मम्मी रचना की बातों पर हंसती हुई उसे याद दिलाती हैं, “ये विशाल तो अपने कमरे में बंद हो गया है। उसके बिना दुल्हन से कैसे मिलने जाएंगे?”
“भैया की कोई अर्जेंट वर्चुअल मीटिंग चल रही होगी। मैं उन्हें बुला कर लाती हूं।” कहती हुई रचना दूर से ही भैया भैया करती हुई भैया के कमरे की ओर दौड़ लगाती है।
“तनुज, बता न क्या करूं मैं? उस कंगाल अमित को अपने साथ कैसे ले जाऊं? उसकी न कोई हैसियत है, न कोई पद!क्या कहकर मैं प्रिया और उसके परिवार से उसका परिचय करवाऊंगा कि बैंक का ये क्लर्क मेरा जीजा श्री है! मेरी बहन रचना भी न कुछ ज्यादा ही अच्छी बनती है! मैंने कल उसे आज का कार्यक्रम बताने के लिए फोन किया तो बहाना बना दिया था कि अमित का तो फोन नहीं लग रहा है। मैं तो श्योर था
कि अकेली रचना ही आएगी। उसी को लाने के लिए मैंने कार भेजी थी। पर ये भी फ्री की कार में चढ़कर आ गया। इसका कोई स्वाभिमान भी नहीं है। तब से मेरा मूड खराब है। अब मजबूरी में आज का कार्यक्रम रद्द करना पड़ेगा।” विशाल की तनुज से फोन पर हुई इस अप्रत्याशित बातचीत से रचना के पैरों के नीचे की जमीन खिसकने लगी और सिर चकराने लगा।
किसी तरह संभलते हुए रचना ने फटाक से कमरे का दरवाजा खोला, “भैया, न तो आपको अपना मूड़ खराब करने की जरूरत है और न हीं कार्यक्रम रद्द करने की मजबूरी। न तो कंगाल आपके साथ जाएगा और न ही कंगाल की पत्नी। बेशक हमारी हैसियत आपसे बहुत कम है लेकिन इतनी कम नहीं कि आपकी कार का किराया न दे सकें। अपने मुंह से बता देना कि कितना देना है ताकि आपको कम न लगे।”
रचना दूसरे कमरे में आकर अपना सामान पैक करने लगती है। विशाल उसके पीछे-पीछे आकर रोते हुए कहता है, सुन तो मेरी गुड़िया……।”
“मुझे गुड़िया कहने का अधिकार आप को चुके हैं। गुड़िया कहने का अधिकार केवल बड़ों को होता है। आप तो केवल नाम के विशाल हैं। दिल से तो आप तुच्छ हैं।” रचना बोली।
विशाल: “नहीं रचना, मेरी गुड़िया, मुझे माफ़ कर दे। तेरे बिना हम प्रिया से मिलने नहीं जाएंगे।”
रचना: “मैं तो अपने पति के बिना सामान्य परिस्थितियों में भी जाने वाली नहीं थी। और उनके इतने #अपमान के बाद तो सोचने का भी कोई अर्थ नहीं है। उनका अपमान मेरा अपमान है।”
विशाल: “अमित भी हमारे साथ चलेंगे, गुड़िया। मैं उनसे माफी मांग लूंगा।”
रचना: आपको उनका परिचय देते हुए शर्म नहीं आएगी! थोड़ी देर में ही आपके विचार कैसे बदल गए।
विशाल ररचना के पैरों में गिर पड़ता है, “मुझमें अपने पद का अहंकार आ गया था। अहंकार ने मेरी बुद्धि हर ली थी। अपने अहंकार को मैं तेरे चरणों में अर्पित करता हूं। तूने मेरी आंखें खोल दी हैं। मेरी गुड़िया मुझे माफ़ कर दे। चाहे जो मर्जी सजा दे दे पर मैं तेरे और अमित के बिना शादी नहीं करूंगा। तूने हमेशा बड़ी बनकर हम सब को संभाला है, आज भी संभाल ले न अपने भाई को। अपने अहंकार की वजह से मैं कहीं का नहीं रहा।”
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एक तरफ रोता, गिड़गिड़ाता हुआ बड़ा भाई और की दूसरी तरफ पास में खड़े चुपचाप रोते हुए अपने माता-पिता की दशा देखकर रचना भावुक हो जाती है, “भैया इंसान अपने आचरण से बड़ा होता है, पद से नहीं। अमित के साथ मैं उनके आचरण की वजह से ही खुश हूं। बड़ा वही होता है जो किसी को छोटा होने का अहसास न कराए। आप मुझे वचन दें कि भविष्य में आप किसी का भी अपमान नहीं करेंगे और करने की सोचेंगे भी नहीं।
विशाल: “हां हां मेरी गुड़िया, मैं वचन देता हूं कि ग़लती से भी यह ग़लती कभी नहीं करूंगा और हर इंसान के सम्मान की रक्षा करूंगा।”
“तो इस बात पर सब इस कमरे में ही मिट्टी डाल दीजिए। अनुज और अमित आते ही होंगे। यही व्यवहारिकता है। चलिए अब सब जल्दी कीजिए। भाभी अपने होने वाले दुल्हे का इंतजार कर रही होंगी।” रचना की आंखों में ख़ुशी के आंसू थे।
-सीमा गुप्ता (मौलिक व स्वरचित)
प्रतियोगिता विषय: #अपमान