सुष्मिता को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि आज उसको इतने बड़े मंच पर उसकी कहानियों के कारण सम्मानित किया जा रहा है ,चारों तरफ तालियों की गूंज से हॉल गूंज रहा था , एक-एक करके सभी साहित्यकार मालायें पहना रहे थे और एक बहुत बड़े फिल्म डायरेक्टर के द्वारा सुष्मिता को शील्ड प्रदान की जा रही थी , श्रीफल देकर और शॉल उड़ा कर उसको सम्मानित किया गया ,यह एक बड़ी बात थी एक फिल्म के लिए, और कई सीरियलों के लिए उसकी कहानियां पसंद की गईं ,इसके लिए उसे इतना सम्मानित किया गया।
सुष्मिता ने देखा की माला पहनाकर सम्मानित करने वालों में कुछ वरिष्ठ साहित्यकार भी हैं ,वरिष्ठ लोग भी हैं, कुछ आलोचक भी हैं जिन्होंने बोला था ऐसी कहानियां तो कोई भी लिख सकता है,और कुछ पब्लिशर भी हैं लेकिन उन पब्लिशर ने जब सुष्मिता को देखा और उसके पास सम्मानित करने माला लेकर आए
तो देखते रह गए अरे यह तो सुष्मिता राय हैं जिसे हमने कहा था की किताब छपवाने में तो बहुत पैसे लगते हैं और हम तो बड़े-बड़े लोगों की किताब छापते हैं और वह आलोचक भी शर्मिंदा हुए जिन्होंने बोला था ऐसी कहानी तो कोई भी लिख ले यह कहकर उसका “अपमान”भी कर दिया था
जिन्होंने सुष्मिता जी का अपमान किया था आज उन्हीं की निगाह नीचे हो गईं और एकदम शर्मिंदा हो गए, उन्होंने सुष्मिता से वहीं स्टेज पर माफी भी मांगी और बोले आपको पहचानने में हमसे बहुत बड़ी गल्ती हो गई अपनी गल्ती स्वीकार करने के पश्चात उन्होंने सुष्मिता को माला देकर सम्मानित किया।
सुष्मिता अपने ख्यालों में खो जाती है उसको याद आया कि वह कितनी निराश हो गई थी शिक्षाप्रद कहानियां लिखती थी और उसकी पेपरों मैं भी कहानी छपती थीं कई ऑनलाइन कंपटीशन में भी कहानी सुनाई पर अभी तक उसको बहुत सफलता नहीं मिल पाई थी कई बार वह ऑनलाइन ही पब्लिशरों को अपनी कहानी की किताब छापने के लिए बोलती थी
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तो पब्लिशर यही कहते थे अरे इतने बड़े-बड़े साहित्यकार कहानी छपवा रहे हैं और इतने हाई रेट भी किताबों के दे रहे हैं ,सुष्मिता यह सोचकर निराश हो जाती थी जब पब्लिशर उसको हाई रेट बताते थे तो वह सोचती थी मुझ पर तो इतने पैसे भी नहीं हैं और हो सकता है मेरी कहानी किसी को पसंद आए या न आए।
एक दिन निराश होकर सुष्मिता बगीचे में बैठ गई और बेंच पर बैठकर अपनी कहानियों के पेज पलटने लगी इतने में इतनी तेज हवा आयी और सुष्मिता की कहानियों के पेज इधर-उधर उड़ने लगे वह दौड़कर अपने पेज एकत्रित करने लगी कि एक कहानी का पेज उड़कर सामने ही एक साहित्य सभा चल रही थी उसमें चला गया वहां
पर सुष्मिता ने देखा बड़े-बड़े बैनर लगे हुए थे कोई अनिरुद्ध मुखर्जी कहानियों की समीक्षा करने कोलकाता से आए हुए हैं, किसी बड़े साहित्यकार की कहानियों की समीक्षा कर रहे थे और उनको मंच पर समीक्षा करने के लिए ही बुलाया गया था।
सुष्मिता की कहानियों में से एक पेज उड़ता हुआ उनकी कहानी की समीक्षा के ऊपर जाकर चिपक गया वह लय में बोले जा रहे थे उन्हें समझ में नहीं आया और वह उस कहानी की समीक्षा करने लगे जो उन्होंने सोचा भी नहीं था, इतने में पूरी सभा में तालियां बजने लगीं और सभी लोग बोलने लगे यह कहानी तो बहुत अच्छी है
बहुत शिक्षाप्रद है हम यह किताब जरुर पढ़ेंगे सभी लोगों की प्रतिक्रिया देखकर जब अनिरुद्ध मुखर्जी ने उस कहानी के लेखक का नाम पड़ा तो उसमें लिखा था सुष्मिता राय अरे! यह मैं किसकी कहानी पड़ गया ? और सबको पसंद भी आई, मैं तो किसी और की कहानी की समीक्षा कर रहा था।
सुष्मिता अपने पेज को ढूंढते ढूंढते दौड़ते हुए अनिरुद्ध मुखर्जी के पास आकर खड़ी हो गई और बोली सर जी यह मेरी कहानी का कागज आपके पास उड़ कर आ गया कृपया मुझे देदें और मुझे इसके लिए माफ कर दें ,अरे आप ही सुष्मिता राय हैं! आपका तो “मान सम्मान” होना चाहिए।
अनिरुद्ध मुखर्जी बोले यहां तो सभी लोगों को आपकी कहानी पसंद आ रही है ,मैं तो किसी और लेखक की कहानियों की समीक्षा करने आया था लेकिन आपका जो कागज उड़ कर आया शायद मैंने उसी की समीक्षा कर दी और सबको सुना दी यह भगवान की ही इच्छा थी जो आपकी कहानी अपने आप उड़ कर मेरे पास आई आप तो सम्मान के लायक हैं।
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सुष्मिता को विश्वास ही नहीं हुआ कि उसकी कहानियों के द्वारा इतना सम्मान मिलेगा बस एक ही कमी थी उसके पास कहानी संग्रह छपवाने के पैसे भी नहीं थे और जब भी वह अपनी कोई कहानी किसी सभा में सुनाती भी थी तो प्रतिक्रिया तो अच्छी मिलती थी कभी-कभी कुछ आलोचक भी ज्यादा ही मिलते थे उसे कहते थे ,
ऐसी कहानी तो सभी लिख सकते हैं कोई बड़ी बात नहीं है , पर वह हिम्मत नहीं हारी ,पब्लिशर भी यही कहते थे कि किताब छपवाने में तो बहुत पैसे लगते हैं और बड़े-बड़े राइटरों की किताब हमने छापी हैं यह सुनकर सुष्मिता को अपमान लगता था और वह चुप बैठ जाती थी। इतने में तालियों की गूंज से उसकी तंद्रा टूटती है और वह अपने आप को स्टेज पर खड़ा पाती है ।
सुष्मिता को आज अपने ऊपर बहुत गर्व हो रहा था कि यह कहानियां ही तो हैं जो मुझे इतनी ऊंचाइयों तक ले गईं और इन कहानियों के द्वारा समाज को नई दिशा मिली बच्चों को बड़ों को प्रेरणा मिली और शिक्षा मिली। और मैं आज इस मुकाम पर पहुंच गई कि मेरी कहानियों से फिल्म बनी ,सीरियल बने और मैं इतने पैसे वाली बन गई कि आज स्टेज पर एक अच्छे सम्मान जनक लेखक के रूप में मेरा सम्मान हो रहा है और एक बड़े पैसे वालों की हैसियत से जानी जाती हूं।
तो दोस्तों इस कहानी से यही शिक्षा मिलती है कि कोई भी छोटा बड़ा नहीं होता अपने कर्मों और किस्मत के द्वारा वह बहुत बड़ा और मान सम्मान लायक हो जाता है और पैसे वाला भी बन जाता है, पैसों से कभी किसी की तुलना नहीं करना चाहिए उसका हुनर देखना चाहिए इसलिए कभी किसी का “अपमान” नहीं करना चाहिए।
सुनीता माथुर
मौलिक रचना
अप्रकाशित रचना
पुणे, महाराष्ट्र