अपमान – नीलम शर्मा : Moral Stories in Hindi

शशिकांत जी के यहां बहुत बड़ी पार्टी का आयोजन किया गया था। आज वे बैंक मैनेजर के पद से रिटायर हुए थे। दो साल पहले वे अपने दोनों बच्चों की शादी करके उनकी जिम्मेदारी से भी मुक्त हो चुके थे। लड़की की ससुराल बहुत अच्छी थी। और वह अपने ससुराल में खुश थी।

बेटे ने भी अपनी सहकर्मी के साथ शशिकांत जी की मर्जी से शादी की थी। बेटा बहू दोनों बाहर रहते थे। वैसे तो बहु थोड़ी तुनक मिजाज थी। लेकिन कभी-कभी ही ससुराल आना होता था तो कोई ज्यादा परेशानी नहीं होती थी। उसे भी लगता था कि कुछ दिन रहकर तो चले ही जाना है। शशिकांत जी की पत्नी सुभद्रा जी भी सामन्जस्य बैठाने की कोशिश करती। 

खैर बात करते हैं आज के दिन की। डांस, खाने-पीने और मौज मस्ती के बीच शशिकांत जी के दोस्त ने उनसे कहा, यार अब तो तू रिटायर हो गया है। तो यहां अकेले क्यों रहना। तू और भाभी जी अपने बेटा-बहू के साथ आगे का जीवन बिताओ। यह बात उधर से गुजरती हुई मिनी (शशिकांत जी की बहू) के कानों में पड़ी तो वह परेशान हो गई, कि कहीं यह दोनों सचमुच हमारे साथ ना चल दें। 

पार्टी खत्म हो जाने के बाद सब मेहमान चले गए तो वह रोहित से बोली, देखो रोहित मम्मी-पापा हमारे साथ नहीं जाएंगे। तुम देखो कैसे हैंडल करना है। मिनी पागल हो क्या? अरे पापा रिटायर हो गए मुझे उनसे साथ चलने के लिए कहना ही होगा। उन दोनों के बीच की यह बात सुभद्रा जी ने सुन ली, जो रसोई में पानी लेने आई थी। अगले दिन मिनी का मुंह बना हुआ था। ना ही ठीक से किसी से बात कर रही थी। सुभद्रा जीवजह जानती थी। लेकिन कहा कुछ नहीं। 

जाने से पहले रोहित ने शशिकांत जी से अपने साथ चलने के लिए कहा तो वह खुश हो गए। लेकिन सुभद्रा जी ने स्थिति को समझते हुए कहा नहीं जी यह हमारे एक साथ गुजारने के दिन है। अब खूब घूमेंगे और एक दूसरे के साथ समय बिताएंगे। 

शशिकांत जी को रिटायर हुए दो साल हो गए थे। इस बीच में एक पोते के दादा भी बन गए। बहु डिलीवरी के लिए अपनी ससुराल आकर पॉंच-छह महीने सास से सेवा करवा कर वापस चली गई। क्योंकि उसको डर था कि कहीं सास -ससुर एक बार आ गए तो बच्चे के मोह में कहीं वापस ही ना जाएं।

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लेकिन अब बच्चे के साथ में उसे बहुत परेशानी हो रही थी ।ना तो वह बाहर ही जा पाती थी, ना ही बच्चे के साथ आराम कर पाती थी। अब उसे सास की जरूरत महसूस होने लगी। तो उसने रोहित से कहा,देखो मम्मी पापा का भी तो बच्चे के साथ खेलने का मन होता होगा ,

उन्हें क्यों ना तुम यहीं बुला लो। रोहित तो यही चाहता था। मिनी के कहते ही उसने तुरंत मम्मी पापा की टिकट करवा दी। शशिकांत जी बहुत खुश थे। लेकिन सुभद्रा जी का मन परेशान था, क्योंकि उन्हें पता था की बहू को उनका वहां रहना पसंद नहीं आएगा। 

कुछ दिन सब सही चला। लेकिन धीरे-धीरे मिनी सुभद्रा जी के ऊपर बच्चे को छोड़कर रोज ही कभी घूमने, कभी किटी और कभी पार्लर चली जाती। पीछे से सुभद्रा जी को घर का सारा काम करना और बच्चे को संभालना पड़ता। उम्र के साथ घुटनों का दर्द इतने काम के बोझ से बढ़ता ही जा रहा था।

एक दिन उनके घुटने में ज्यादा दर्द हो रहा था। शशिकांत जी ने मिनी को बाहर जाते हुए देखा तो बोले बेटा, सुभद्रा की तबीयत ठीक नहीं है। तुम घर पर ही रुक जाओ। मिनी का इतना सुनते ही पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया। वह बोली तो यहां क्या आराम फरमाने बुलाया है। शशिकांत जी उसका मुंह ताकते रह गए इतने अपमान की तो उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी। 

सुभद्रा जी शशिकांत जी के पास आई। वे नहीं चाहती थी कि उनकी वजह से बेटे-बहु में मनमुटाव हो। उन्होंने शशिकांत जी को समझाया जो कि उस अपमान से असहज से हो गए थे। देखो जी हम अपने घर चलते हैं। फिर मुझे वहां डॉक्टर को भी दिखाना है। मैं अपने आप रोहित से बात कर लूूंगी।आप उससे कुछ मत कहना। 

शाम को जब रोहित घर आया। तो सुभद्रा जी ने कहा, बेटा मेरा और अपने पापा का टिकट करा दो। हम वापस जाना चाहते हैं। मेरा और तुम्हारे पापा का यहां बिल्कुल मन नहीं लगता। वे सारा दिन यहां घर में बैठे-बैठे परेशान हो जाते हैं सब ठीक है ना मॉं। कुछ और बात तो नहीं है। नहीं बेटा हम वहॉं अपने संगी साथियों में रहेंगे तो ज्यादा ठीक रहेंगे। और उसमें क्या है जब तुम्हारा मन करे दोबारा बुला लेना। शशिकांत जी और सुभद्रा जी संबंधों को कड़वाहट से बचाए रखने के लिए चुपचाप अपमान का घूंट पीकर अपने घर वापस आ गए।

नीलम शर्मा

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