राखी एक भले घर की लड़की थी मेहनत करती अपना घर संभालती। पिताजी एक मामूली क्लर्क थे।मां अक्सर बीमार रहती तो घर की भाई बहन की जिम्मेदारी उस पर ही थी।बिचारी कभी किसी को किसी काम को मना नहीं करती।तो आस पास वाले भी अपने काम करवाते थे।समय गुजरा मां गुजर गई।
भाई बहन स्कूल कॉलेज में आ गए।वो मां की तरह उन्हें पाल रही थीं।उसके पड़ोस में माधुरी काकी रहती थी उनका बेटा था रतन काकी राखी को बहुत पसंद करती थी वो चाहती थीं कि वह उनकी बहू बन जाए इस बारे मे माधुरी जी ने राखी के पिता से भी एक दो
बार कहां पर उन्होंने कोई जवाब न दिया। रतन भी यह बात राखी से कह चुका था कि मैं तुमसे शादी करूंगा फिर हम साथ साथ सब संभालेंगे पर रखी अपने मुंहसे कैसे कहती। राखी के भाई अखिल की नौकरी लग गई उसके लिए लड़की देखनी शुरू हुई और उसी के मालिक मनोहर जी की बेटी
प्रिया अखिल की पत्नी बनकर आ गई।छोटी रागिनी भी 24 की हो गई थी तो उसके ब्याह की चिंता भी राखी के पिता को सता रही थी। माधुरी जी ने तब भी पूछा अरे राखी बैठी है पहले उसकी सोचो पर उन्होंने माधुरी की बात बिना सुने ही रागिनी का रिश्ता तय कर दिया।रागिनी का पति बैंक मैनेजर था
और रागिनी सरकारी स्कूल में पढ़lती थी।दोनो भाई बहन सेटल हो गए और उनके पिता ने भी आंखें मूंद ली।घर पर अब भाभी का राज था और राखी मुफ्त की नौकरानी।अखिल काम के सिलसिले में बाहर रहता तो अखिल की पत्नी उसकी बहन के साथ क्या कर रही हैं उसे खबर ही ना थी।
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राखी दिन पर दिन कमजोर होती जा रही थीं ना ढंग का खाना ना पहनना।पर वो सदा की चुप सब सहती एक दिन तो हद हो गई प्रिया की सहेलियां घर आई थी सारा काम कर राखी बैठी थी उसकी तबियत कुछ ना साज़ थी।राखी की सहेलियां आते ही वो चाय नाश्ता परोसने लगी
उसकी सहेलियां बोली बढ़िया है फ्री की नौकरानी मिली है। प्रिया बोली क्या फ्री की इसका सारा खर्चा हम उठाते है मां बाप छोड़ गए हमारे माथे यह सुन राखी को बड़ा दुख हुआ वो आगे बढ़ी बर्तन समेटने तो धक्का लगने से एक प्लेट टूट गई प्रिया ने आव देखा ना ताव दो थप्पड़ राखी को लगा दिए
और सबके सामने बाते सुनाई वो अलग आज राखी को इतना अपमानित महसूस हो रहा था कि बस उसने अपनी बहन रागिनी को फोन किया बोली क्या मैं कुछ दिन तुम्हारे पास आ जाऊ ।रागिनी बोली ना जीजी जैसे अखिल का जीना हराम कर रखा है ऐसे ही मेरा भी करना है तुम कुछ पढ़ लिख लेती शादी हो जाती तो सही था
बिचारी भाभी कितना सहती है।राखी आवाक थी ये मेरे भाई बहन है। प्रिया अपनी मां के घर चली गईं थीं राखी ने घर बंद किया और चाबी देने माधुरी काकी के घर पहुंची।काकी बोली बेटी इस वक्त कहा जा रही है।राखी बोली नहीं पता प्यार भरा स्नेह पाते ही राखी फफक फफक कर रो पड़ी और अपनी आप बीती सुनाई।माधुरी काकी बोली बस तू चल मेरे साथ वो राखी को ले दूसरे शहर अपने बेटे रतन के पास आ गई।रतन भी राखी को पसंद करता था ।माधुरी जी ने अगले दिन उनकी शादी करवाई और वो कुछ दिन रह वापस आ गई।
उन्हें अखिल दिखाई दिया तो पूछा अरे आज कल राखी नहीं दिखती वो बोला भाग गई किसी के साथ प्रिया को इतना उल्टा सीधा सुनाया उसने समझाया तो तौबा है ऐसी बहन तो मर जाती।माधुरी जी उनकी बात सुन हैरान थी कौन अपनी मां समान बहन का ऐसे अपमान करता है।उधर रतन के प्यार से राखी में आत्मविश्वास आया अब वो हसने बोलने वाली एक समझदार राखी बन चुकी थी उसके बेटे के स्कूल में पीटी एम थी ।उसके बेटे विशाल की टीचर
उसकी मामा से मिलना चाहती थी क्योंकि उसका काम उसके प्रोजेक्ट्स बड़े ही लाजवाब होते थे। जब वो पीटी एम में पहुंची तो सामने अपनी बहन रागिनी को देखा रागिनी बोली तो तुम इस बच्चे के बाप के साथ भाग आई शर्म न आई तुम्हे।पीछे से रजत अंदर आया और बोला आपको किसने अधिकार दिया मेरी पत्नी से इस तरह बात करने का मै अभी आपकी कंप्लेन करता हु।यह मेरी पत्नी है और इसका अपमान मै नहीं सहूंगा तुम भी सुन लो और अपने भाई भाभी को भी समझा देना। रागिनी अपनी बहन को जाते हुए देख रही थी।और राखी अपने देवता को जो हमेशा उसके साथ था।
स्वरचित कहानी
आपकी सखी
खुशी