शहर से थोड़ी दूर पर एक अपार्टमेंट है बहुत ही छोटे से छह सौ गज के घर हैं उसमें ही दो कमरे हॉल रसोई छोटी सी बालकनी जिसमें ही बर्तन कपड़े धोना और सुखाना भी पड़ता है । तीन मंजिला है लिफ्ट नहीं है ।
वहीं के तीसरे मंजिल के एक घर का माहौल कुछ गरम था क्योंकि घर की मालकिन रमा का मूड ख़राब था । इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि उसका मूड हमेशा ही ख़राब रहता है क्यों ना हो इसमें उसकी कोई ग़लती नहीं है मुर्ग़े की बाँग देने से पहले उठकर पूरे घर का काम निपटा कर ऑफिस के लिए कम से कम पाँच किलोमीटर पैदल चलकर बस स्टाप पर पहुँचती है
आज तक कभी भी बस में बैठने के लिए क्या ठीक से खडे होने के लिए भी जगह नहीं मिलती है हर रोज़ एक टाँग पर खड़े होकर जाती है ।
शाम के छह बजे तक ऑफिस में काम करके फिर वही बस में एक टाँग की सफर करके तीन मंजिल चढ़कर घर पहुँच कर फिर घर के सारे काम निपटाती है । झाड़ू पोंछा बर्तन कपड़े धोना और खाना बनाना ।
उसे खाना बनाकर बच्ची को खिलाकर खुद खाना खाने तक फुरसत ही नहीं मिलती है । एक चकरघिन्नी की तरह उसकी दिनचर्या चलती है । यहाँ तक ठीक है परंतु उनका घर एक आवजाव घर है कब कौन आएगा कौन जाएगा उसे पता ही नहीं चलता है फिर ऐसे वातावरण में कोई खुश कैसे रह सकता है ।
वैसे भी दुनिया में ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्हें रमा के समान ही अपनी ज़िंदगी गुज़ारनी पड़ती है । उसके लिए उनमें कितनी सहनशक्ति की ज़रूरत पड़ती है । रमा भी कभी अपने चेहरे पर मुस्कान नहीं हटने देती थी
परंतु कभी कभी उसे भी ग़ुस्सा आ जाता था कोशिश करती थी ग़ुस्से को रोकने के लिए कभी-कभी ग़ुस्सा इतना बढ़ जाता था कि बाहर बड़बड़ाने लगती थी। आज वही हाल है उसके सब्र का बाँध टूट गया और अपनी क़िस्मत को कोसने लगी थी कि और कितने दिन मुझे इन मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा ।
रमा की एक बेटी है रीत पाँच साल की है उसके द्वारा पूछे गए प्रश्न का उत्तर देना उनके बस की बात नहीं है इसलिए उस पर चिल्लाने लगी थी तो वह रोनी सूरत बनाकर कहती है कि माँ आपके आने के पहले ही मैंने सब काम कर लिया है होमवर्क भी हो गया है फिर आप मुझे क्यों डाँट रही हैं ।
रमा ने ग़ुस्से से कहा कि अपना मुँह बंद कर और कमरे में जाकर बैठ जा नहीं तो एक झापड़ मारूँगी । मेरी क़िस्मत ही ख़राब है नौकरानी बन गई हूँ और घर सराय बन गया है । वह बड़बड़ा रही थी और रीत रोते हुए कमरे में चली गई ।
दूसरे कमरे में बैठे हुए राहुल का सर अपमान के बोझ से झुक गया था । वह जानता था कि रमा की बातें रीत के लिए नहीं बल्कि उसके लिए हैं । वह छोटी है समझ नहीं पा रही है ।
रमा की बातों से उसे इतना ग़ुस्सा आया कि उसे लगने लगा कि घर छोड़कर चला जाऊँ । राहुल को पता है ऐसा करने से क्या होगा गरज उसकी है जब फ्री में उनके घर में बैठा है तो वे बोलेंगीं ही और उसे सुनना भी पड़ेगा । इसलिए उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया या ऐसा नाटक किया ।
रमा और उसका पति रोहन दोनों ही एक छोटे से गाँव में रहते थे । शादी के बाद हैदराबाद में ही एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे । उनकी तनख़्वाह कम थी इसलिए शहर से थोड़ी दूर पर घर लिया था । एक ही बेटी बस है सोच लिया था ।
गाँव से आने के कारण आए दिन उनके घर कोई ना कोई आते जाते थे कभी अस्पताल तो कभी यूनिवर्सिटी और या कोर्ट कचहरी का काम हो ।
पति पत्नी दोनों भी बहुत अच्छे थे । उन्हें मालूम था कि बहुत जरूरी है तो ही लोग हमारे घर आते हैं इसलिए वे लोगों की मदद कर थे । उन्हें लगता था कि हम उनकी थोड़ी सी मदद कर देंगे तो क्या हो जाएगा। जब परिस्थितियाँ बिगड़ जाती हैं तो ही रमा के मुँह से इस तरह के शब्द निकलते थे ।
गाँव में भी रिश्तेदारों और दोस्तों से उनकी हालत छिपी नहीं थी इसलिए वे जब भी आते थे चावल दाल जो भी उनसे बन पड़ता था ला देते थे । स्त्रियाँ रमा की घर के कामों में हाथ बँटातीं थीं। राहुल सोहन के दूर के बड़े पिताजी का बेटा था । रिश्ता दूर का था पर परिवार में नज़दीकियाँ थीं ।
उसने गाँव में ही डिग्री हासिल की थी और कुछ कम्प्यूटर के कोर्सेज़ भी किया था । गाँव में नौकरी मिलना मुश्किल था इसलिए पिता ने यहाँ हैदराबाद में नौकरी की तलाश में उसे भेजा था ।
उसके हाथ से चावल दाल भी भेजा था । राहुल के पिता ने उसके जेब खर्च के लिए पैसे भी दिए । हैदराबाद में आते ही उसे नौकरी मिल गई थी तीन हज़ार रुपए तनख़्वाह थी । सुबह का नाश्ता और लंच वे ही लोग दे देते थे । राहुल रात को बाहर से खाना खाकर आ जाता था ।
उस दिन सुबह ही ऑफिस जाने के पहले उसने कहा कि मैंने कमरा ढूँढ लिया है दो दिन बाद खाली हो जाएगा तो मैं चला जाऊँगा ।
रमा ने राहत की साँस ली वैसे उसके रहने से उन्हें कोई तकलीफ़ नहीं हो रही थी क्योंकि वह घर में सिर्फ़ एक कप चाय ही पीता था । जब तक घर पर है मदद भी कर देता था ।
सब लोगों को जिस पहली तारीख़ का इंतज़ार था वह आ ही गया और राहुल के ऑफिस वालों ने उसके हाथों में दो हज़ार थमाकर कह दिया कि कल से नहीं आना ।
इसे सुनते ही तीनों सकते में आ गए । राहुल को सांत्वना देते हुए रोहन ने कहा कि उदास मत हो यह टेंपरेरी नौकरियाँ ऐसी ही होती हैं दूसरी मिल जाएगी मैं हूँ ना । उससे कह तो दो दिया पर यह नहीं कह सकता कि मेरे घर से किराये के कमरे में कब शिफ़्ट होगा ।
राहुल ने पिता को फ़ोन किया कि उसकी नौकरी छूट गई है । उन्होंने अपने हाथ उठा लिया कि अभी मैं कुछ नहीं कर सकता हूँ । तुम थोड़े दिन उनके ही घर पर रहो हाँ खाना बाहर खा लेना ।
यहाँ रमा के सब्र का बाँध टूट रहा है मेहमान दो चार दिन रहकर चला जाता तो अच्छा लगता पर यह तो ईश्वर के भरोसे है ।
रोज ऑफिस से आते ही राहुल की तरफ आशा भरी निगाहों से देखती थी कि वह खुश खबरी देगा पर वह सर झुका लेता था । इसी तरह पंद्रह दिन बीत गए थे ।
आज रमा की तबीयत ठीक नहीं थी पैरों में दर्द हो रहा था । वह बस स्टाप से बड़ी मुश्किल से चलकर आई थीं घर के अंदर प्रवेश करते हुए अपनी आदत के मुताबिक़ रीत के साथ खेल रहे राहुल की तरफ़ देखा उसने अपना सर झुकाकर ना में सर हिलाया ।
रमा ने अपने लिए चाय बनाई और रीत के लिए बार्नविटा बनाकर दिया । आज उसे खाना बनाने की इच्छा नहीं हो रही थी इसलिए सिर्फ़ चावल बनाकर छोड़ दिया । रोहन किसी पार्टी में जाने वाले थे अपने और रीत के लिए सिर्फ़ चावल बस था सोचा अचार या दही के साथ खा लेंगे ।
वह थोड़ा सा आराम करने के लिए कमरे में जाकर लेट गई और उसकी नींद लग गई ।
वह सोकर उठ कर देखती है कि राहुल घर पर ही है जबकि उस समय तक वह खाना खाने के लिए बाहर चला जाता था । जबसे उसकी नौकरी छूटी सप्ताह में दो तीन दिन घर में ही खा रहा था । आज वह रुक गया तो उसे फिर से उसके लिए खाना बनाना पड़ेगा इसलिए वह ग़ुस्से से भरी हुई थी ।
उसकी बातों से राहुल का अपमान हो रहा था लेकिन वह भी क्या करे उसके हाथ में सिर्फ़ पचास रुपए बचे थे कल रात को भी उसने दो केले खा कर पेट भर लिया था ।
रमा को दिखाने के लिए कि वह खाना खाने जा रहा है जाकर आ सकता है परंतु सुबह से कुछ भी नहीं खाया था जिसके कारण तीन मंजिल उतरकर चढ़ने की उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी। पिता को फोन किया तो दो तीन एडजस्ट कर ले फिर भेजता हूँ कहा तो इस पचास रुपए से दो तीन दिन कैसे चलेगा सोच में डूबा हुआ था तो रोहन आ गया और उसने राहुल से कहा कि क्या ख़बर है तो उसने सर झुकाकर कहा कुछ नहीं है ।
तुम फ़िक्र मत करो मैं अभी पार्टी में किसी से मिला हूँ उन्होंने कल तुम्हें ऑफिस में बुलाया है । बेटी से पूछा तुमने खाना खाया है कि नहीं वह कुछ कहती इसके पहले वहाँ रमा आकर कहती है कि यह कैसे हो सकता है वह तो पहले मेरी जान खाएगी फिर खाना खाएगी । वह समझ गया कि रमा ग़ुस्से में है । राहुल से पूछा तुमने खाना खा लिया है ना ।
राहुल ने कहा कि दोपहर को मैंने देर से खाना खाया है इसलिए अभी भूख नहीं है ।
रोहन ने कहा कि रमा तुम खाना खा लो मैं रीत को खिला दूँगा ।
रमा ने कहा मुझे भूख नहीं है बाद में खाऊँगी कहते हुए कमरे में चली गई । राहुल भी अपने कमरे में चला गया था ।
रोहन रसोई में जाकर रीत के लिए दूध चावल मिला कर ले लाया ।
रीत ने खाने पहले शर्त रखी थी कि वह अपने बचपन की बातें बताएगा तो ही खाना खाएगी । कितनी ही बार उसने पुरानी बातों को कहानी के रूप में सुनी थी फिर भी उन्हें सुनती थी ।
राहुल कहता था कि बच्चों को भी तो पता चलना चाहिए कि उस समय हमारे घर की परिस्थितियाँ कैसी थी सब कुछ आसानी से नहीं मिलता है उसे पाने के लिए माता-पिता ने मेहनत की है और उन्हें भी करना है ।
उसने बताना शुरू किया था कि तो सुनो परी पापा की कहानी पापा की ज़ुबानी । तुम्हारे पापा ने बारहवीं की परीक्षा पास की थी ।
उन्हें डिप्लोमा कोर्स में सीट मिल गया था पर दादा जी के पास फीस जमा करने के लिए पैसे नहीं थे । दादा जी ने अपने भाई के पास पापा को भेजा था । बड़े दादा ने कहा था कि बेटा पैसे तो मेरे पास भी नहीं हैं किसी और से पूछ कर देख ले ।
तुम्हें पता है बड़ी दादी ने दादा जी से क्या कहा?
रीत ने कहा क्या कहा होगा पापा?
हाँ हाँ मुझे मालूम है क्या कहा होगा?
अच्छा बोलो क्या कहा होगा?
रीत ने शाम को माँ के मुँह से जो बातें सुनी वही दोहराई थी । रोहन राहुल और रमा तीनों ही उसकी बातों को सुनकर चौंक गए थे ।
रोहन को अब पूरी बात समझ में आई थी कि रमा ऐसी क्यों है राहुल क्यों अपना चेहरा छिपाया हुआ है ।
पापा मैंने सही कहा ना दादी ने ऐसा ही कहा है ना?
रोहन ने कहा कि नहीं बेटा दादी ने ऐसा नहीं कहा। उन्होंने कहा कि बेचारा कितना परेशान होकर यहाँ आया होगा उसकी मजबूरी को समझकर उसकी सहायता करना हमारा फ़र्ज़ है । हमारे पास जो चाँदी की थालियाँ हैं उन्हें कहीं गिरवी रखकर पैसे लाइए बाद में हम उन्हें छुड़ा लेंगे ।
बच्चा पढ़ लिख जाएगा तो उसका भविष्य सुधर जाएगा । मान लीजिए भगवान ना करें हमें कल पैसों की ज़रूरत पड़ेगी तो हम भी तो किसी से माँगेंगे ही अगर उन्होंने ना कह दिया तो हमें भी तो दुख होगा । ऐसा बड़ी दादी ने दादा जी को समझाया ।पिता की बात सुन रीत ने कहा कि बड़ी दादी बहुत अच्छी हैं ना पापा । हाँ बेटा उन्होंने सिर्फ़ मेरी ही नहीं बहुत सारे लोगों की मदद की थी ।
रमा तकिए में सर छिपाकर रो रही थी । रोहन रीत को पलंग पर सुलाने आया और रमा से कहा रमा उठ और खाना खा ले बहुत रात हो गई है कल सुबह ऑफिस भी तो जाना है ।
रमा झट से उठी मुँह हाथ धोकर जल्दी से आटा गूँथ कर फुलके बनाया और राहुल के कमरे में जाकर उसे उठाया कि चल राहुल हम दोनों खाना खा लेते हैं ।
राहुल जो अपमान से भरा हुआ कल ही यहाँ से जाने का निर्णय लिया हुआ था कहा कि मुझे भूख नहीं है ।
जितनी भूख है उतनी ही खा ले आ खाना ठंडा हो जाएगा उसके बाद उसने दो थालियों में खाना परोसा । भूख नहीं है कहने वाले राहुल को जल्दी जल्दी खाना खाते हुए देख रमा की आँखें भर आईं थीं ।
राहुल ने खाना खाने के बाद रसोई में रमा की सहायता की और फिर सोने चले गए । रमा कमरे में आकर रोहन के सामने आँखों में आँसू भर कर बोली कि मैं बहुत बुरी हूँ ना ।
रोहन ने कहा कि नहीं तुम बुरी नहीं हो रमा हालात ही हमें बुरा बना देते हैं । मैं खुश हूँ कि तुम्हें एहसास हो गया है कि हमारे घर कोई भी मजबूरी में आता है बस थोड़ी सी मदद से उनका भविष्य सुरक्षित हो जाता है । रोहन ने हँसते हुए चलो सो जाओ वरना कल देरी हो जाएगी और मूड ख़राब हो जाएगा । रमा भी उस रात सुकून की नींद से सो सकी थी ।
के कामेश्वरी