अपमान…सम्मान…. दोनों ही हमारी दृष्टि पर निर्भर करता है। किसी की भूल को भूला देना, अपने कार्यो का मूल्यांकन करने से जीवन सफल हो जाता है। जीवन में सच्ची सफलता समता और विनम्रता के संगम से ही मिलती है। दो सहेलियों की यह कहानी हकीकत का दर्शन कराती है। निशा और माया दोनों पक्की मित्र, सहपाठी पड़ोसी मगर स्वभाव से एक दम विपरीत,
माया के स्वभाव का सबसे बड़ा अवगुण किसी की बात को पूरा होने ही नहीं देती, बीच में ही बोल पड़ती है…. उसके लिए सामने वाले की बात, राय या विचार की कोई अहमियत ही नहीं होती।
उसका यह मानना उसके जो विचार है वो सबसे बेहतर है। वह अपने विचार बीच में ही रखकर यह साफ कर देती है कि अन्य जरूरत नहीं है, जिससे स्पष्ट हो जाता है सामने वाले का अपमान हो रहा है,मगर उसे कोई फर्क ही नहीं पड़ता था ।
माया की छवि एक घमंडी लड़की की, दूसरों पर हाबी होने वाली और अनुशासन में जबर्दस्त कमी रखने वाली शख्स में आने लगी थी ।
इसके विपरित निशा सामने वाले की हर बात ध्यान से सुनती और हमेशा यही जाहिर होने देती कि वह उनको अहमियत दे रही है । पर वह कभी भी माया के अवगुण उसकी मूर्खता पर अधिक ध्यान नहीं देती थी।
सभी निशा को अधिक प्यार करते माया यह समझ ही नहीं पाती कि आखिर सभी निशा को क्यों अच्छा मानते महत्व देते हैं? माया अपने स्वभाव के कारण ज्यादा देर किसी के साथ टिक ही नहीं पाती उसका मीनमेख निकालना, छींटाकशी एक आदत सी जो बन गई थी उसकी ।
वैसे तो दूसरों की बात पर प्रतिक्रिया देने का हर इंसान का अपना अलग ही अंदाज होता है।और वही अंदाज काफी कुछ कह भी जाता है…दी गई प्रतिक्रिया से ही भाव व मान का प्रभाव मिल जाता है। कोई खास भाव से गुजर रहा उसकी मनस्थिति से अकेला छोड़ना फिर भी बेहतर है लेकिन सोच से ही नकार देना बाधित करना अपमान ही है।
माया एक दिन निशा से पूछती है…. आखिर मुझमें कमी ही क्या है, मै सुन्दर हूँ, धनवान हूँ , फिर भी सभी जगह तुम्हारा ही गुणगान किया जाता है। निशा माया की बात सुनकर मुस्कुराई.. बोली -देखों जो इंसान किसी का अपमान करता है ऐसी सोच रखने वालों को लोग बहुत ही छोटी सोच का इंसान मानते हैं। ऐसे लोग अपने जीवन में कभी कामयाब नही हो पाते हैं।
“ हकीकत में जब हम किसी का अपमान कर रहे होते हैं तो समझ लें कि हम हमारा सम्मान खो रहे हैं। घर परिवार समाज में मान सम्मान उन्हीं लोगों को मिलता है जो दूसरों को सम्मान देना जानते हैं, जिसका हम अपमान करते हैं वो कभी भी हमारा सम्मान नहीं करेगा “ ।
निशा माया को बताती है अब कल की ही बात ले लो जब तुमने पड़ोस की पूरन काकी की बात का कितना उल्टा सीधा जवाब दे दिया था….. । वो क्या गलत कह रहीं थी …
तुम जो बीच में दूसरों की बात काटती फिरती हो और सामने वाले को बोलने का मौका ही नहीं देती हो उसके लिए ही तो तुमको रोक रहीं थी वों । मगर तुम कुछ समझों तब बात बने । तुम्हारा सारा ध्यान तो व्यंग्य ताने मारने में ही लगा रहता है।
जीवन में कई बार ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है जब किसी से अपमान सहन करना पड़ता है। कई बार अपनी की गई गलतियों के कारण, अनेक बार बिना बात के ही अपमानित होना पड़ता है।
अपनी गलतियों का दुख अपमान तो इंसान सह लेता है। लेकिन अनेक बार बिना किसी गलती सबके सामने अपमानित होना पड़े तो सहना मुश्किल हो जाता है। यही कारण है तुमको पूरन काकी देखना भी पसंद नहीं करती है। सभी के साथ आये दिन तुम उलझती रहती हो..देखों माया निशा उसे समझाती है- …..
” प्रशंसा चाहे किसी की करो या न करो किन्तु अपमान बहुत सोच समझ कर करना चाहिए क्योंकि अपमान वह ऋण है जो कोई भी अवसर मिलने पर ब्याज सहित जरूर चुकाता है ” ।
वैसे सही तो यही है कि किसी का अपमान करने की जरूरत ही क्यूं है…. कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी धैर्य से काम लेना चाहिए अगर हम अपने किसी परिचित का अपमान करते हैं तो जिंदगी भर आत्मग्लानि से भरे रहते हैं।
देखो माया तुमको देखकर सब यही सोचते हैं कि…वो अपना मुंह क्यों गन्दा करें तुम्हारी कोई इज्जत नहीं करता उनकी तो करते हैं आखिर वो क्यों तुम्हारे स्तर पर गिरें सब तुमको आईना दिखा जाते हैं।
तुम्हारे बात की प्रक्रिया न देकर तुमको आहत करते हैं लेकिन सभी मौके की तलाश में रहते हैं सभी तुम्हारे गलती करने की फिराक में रहते हैं तुम कुछ गलत करो ताकि वो तुमको मानसिक चोट पहुंँचा सके, सभी तुमको मूर्ख समझते हैं । क्योंकि सबकी नजर में मूर्ख को टोकना अपना अपमान ही करना है।
अब माया जहां तक मेरी बात है तुम मेरे बचपन की सहेली हो मै तुमको अच्छी तरह समझती हूँ…. तुम दिल की बुरी नहीं हो बस तुमको अपने व्यवहार में बदलाव की सख्त जरूरत है। जो मैं तुमको हजार बार समझा चुकी हूँ और तुम हो की समझने का नाम ही नहीं लेती हो ।
“अभी तुम्हारे अवगुण एक ऐसे पौधे की तरह हो जिसे आसानी से उखाड़ कर फैंका जा सकता है बाद में वो एक मजबूत पेड़ का रूप ले लेंगे तब उनको उखाड़ फैंकने में तुमको परेशानी ओर अधिक सामाजिक अवमानना का सामना करना पड़ सकता है “। तुम्हारे व्यवहार से सबका विश्वास क्षतिग्रस्त होता है जो नकारात्मकता उत्पन्न करता है उनके तुम्हारे रिश्ते की अहमियत घट जाती है। उपलब्धियां कम हो जाती है। कल जब तुम्हारा विवाह होगा तुम्हारा स्वभाव तुम्हारे गृहस्थ जीवन को भी प्रभावित कर सकता है।
माया को निशा की बात समझ आ जाती है..वह कहती हैं क्या तुम मेरे व्यवहार में परिवर्तन लाने में मेरी मदद कर सकती हो । निशा तो चाहती ही यही थी उसकी प्यारी सहेली अपने ये अवगुण छोड़ सबकी चहेती बने वह धीमी मुस्कान के साथ उत्तर देती है।…… “ हां, हां क्यों नहीं अगर अपमान करना किसी का स्वभाव हो सकता है…. लेकिन सम्मान करना मेरे संस्कार में है “। दोनों सहेलियां आपस में गले लग जाती हैं ।
डॉ बीना कुण्डलिया
Beena kundlia