स्वाति के तीखे नैन नक्श, रंँग सांवला एवं बाल घने बहुत लम्बे थे। स्वभाव में चंचलता लेकिन बात करने का अंदाज बहुत गंभीर था। वह जब भी बालों को धोती तो, मांँ बोलती जाओ! बालों को धूप में सुखा लो, नहीं तो खराब हो
जाएंगे ।
“उसका बाल सुखाने का एक अनोखा ही अंदाज था। अपने घर के बाहर भाई बहन के साथ बैडमिंटन खेलते हुए बाल सुखाती, यह उसे अच्छा लगता था।”
ऑफिस में भी लोग उसके मधुर स्वभाव के कारण जानते थे।
एक दिन ऑफिस के समारोह में सभी मस्ती में नाच, गा रहे थे। स्वाति भी खूब इंजॉय कर रही थी तभी आनंद स्वाति के पास आए और बोले…
मैं तुमसे एक बात कहना चाहता हूंँ…स्वाति ने कहा- कहिए! “आनंद तुरन्त बोला… अगर अच्छा न लगे, तो तुम बात करना बंद नहीं करोगी।”
मुझसे पहले वादा करो। स्वाति ने हांँ में सिर हिला दिया…. और कहा, बोलो क्या बात है?
आनंद बोले- मैं तुमसे शादी करना चाहता हूंँ..!
क्या तुम्हें मैं पसंद हूंँ ?
स्वाती भौचक्का होकर उसका मुंह देखने लगी!!
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वह सोच नहीं पा रही थी कि क्या जवाब दे!
बस इतना बोल पायी- ठीक है आपके बारे में मैं अपने माता-पिता से बात करूंँगी।
आनंद स्वाति के जवाब के लिए बेचैन था।
एक दिन स्वाति ने बताया, कि मेरे माता-पिता को कोई एतराज नहीं,आप अपने माता-पिता से बात कीजिए।
“आनंद ने अपने माता-पिता से स्वाति के बारे में बताया,और कहा…मैं उससे विवाह करना चाहता हूंँ।”
घर के लोगों ने जब सुना, तो आनंद की मांँ और बहनों को यह रिश्ता पसंद नहीं आ रहा था….क्योंकि स्वाति का रंग सांवला था, लेकिन… आनंद के सामने एक न चली!! घरवालों को न चाहते हुए भी यह विवाह करना पड़ा।
स्वाति ससुराल गई वहांँ उसकी सास और ननदों का व्यवहार उसके प्रति अच्छा नहीं था।
वह सब काम निपटा कर ऑफिस जाती,और वापिस आकर दिनभर का पड़ा हुआ सारा काम निपटाती ।
सभी के व्यवहार को नजरअंदाज करते हुए, नित नए- नए खाना बनाती। जब भी समय मिलता उसमें पेंटिंग एवं सिलाई करती।
दोनों ननद पढ़ रही थी, उनकी परीक्षा के लिए, उसने जो भी नोट्स बनाये…वो दोनो के लिए बहुत कारगर सिद्ध हुए।
इतनी गुणवान होते हुए भी, तीनों स्वाति को नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ती। स्वाति के अंदर गजब का धैर्य था ।
“उसने भी ठान रखी थी, कि वह चुप रहेगी। मेरी खामोशी से ही उन्हें एक दिन जवाब मिलेगा।”
अगर वह चाहती, तो पति को लेकर अलग भी रह सकती थी। लेकिन उसने यह उचित नहीं समझा….सोचा “परिवार से आनंद को अलग क्यों करूंँ?”
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“मैं हर हाल में सामंजस्य बैठाऊंँगी।”
एक दिन पूरे परिवार के लोग बैठे हुए थे… छोटी ननद बोली, मांँ भाभी का नाम नहीं रखोगी?
“मांँ बोली- हांँ.. हांँ क्यों नहीं।”
हमारे यहांँ तो बहू का नाम रखने की परम्परा है ।
“सास, जो नाम रखती है… उसी नाम से बहू को सभी लोग बुलाते हैं।”
“स्वाति उत्सुक थी, क्या नाम दिया जाएगा ?”
सास ने कहा – आज से तुम्हारा नाम… “कालो मोयना”….(काली मैना)। स्वाति सभी की तरफ बारी-बारी से देखने लगी, सब लोग खूब जोर-जोर से हंँस रहे थे।
स्वाति ने आनंद की तरफ देखा, वह भी हंँस रहे थे। स्वाति कभी सपने में भी नहीं सोच सकती थी…
कि उसकी सास सिर्फ उसके रंँग के कारण उसका ऐसा नाम रखेगी।
खैर “जिसकी जैसी सोच, उसके वैसे बोल” फर्क नहीं पड़ता, ऐसा सोच कर स्वाति अपने काम में लग गई।
उसी साल शहर में राज्य स्तर पर “सौंदर्यप्रतियोगिता” हो रही थी। स्वाति ने में भाग लेने के लिए अपने ससुराल वालों से कहा। तो परिवार के लोग हंँसने लगे….
“तुम्हें वहांँ कौन पूछेगा ?”
“अगर जीत नहीं पाएंगे तो कम से कम अनुभव ही होगा, स्वाति बोली।”
स्वाति ने प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। वह आखरी राउंड तक चयनित होती चली गई ।
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आज आखिरी दिन था। स्वाति के ससुराल वाले सभी दूसरी पंँक्ति में बैठे थे। स्वाति ने हल्के आसमानी रंग का गाउन पहन रखा था…. खुले बाल, देखने में एकदम परी जैसी…। किस्मत ने साथ दिया….”स्वाति” के नाम की घोषणा प्रथम प्रतियोगी के रूप में की गई…
तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा हाल गूंँजने लगा। सभी खुशी से खड़े होकर स्वाति- स्वाति चिल्लाने लगे।
स्वाति को तो जैसे विश्वास ही नहीं हो रहा था?
आज वह अपने आप को सचमुच आत्मविश्वास से परिपूर्ण बहुत खूबसूरत महसूस कर रही थी।
आगे की प्रतिक्रिया शुरू हुई। स्वाति को एक प्रमाण पत्र दिया गया। जज ने क्राउन लगाने के लिए, जैसे ही क्राउन उठाने लगे तो स्वाति ने कहा-
“आप लोगों से एक अनुरोध है…..यह क्राउन मैं अपनी सासू मांँ के हाथ से पहनूंँगी।”
सासू मांँ गर्व से उठकर आई और स्वाति को क्रॉउन बहुत प्यार से पहनाया।
मैं अपनी बहू के विषय में कहना चाहती हूं कि ….”मेरी बहू स्वाति लाखों में एक है।”
स्वाति बोली…. नहीं मांँ, आप जिस नाम से बुलाती हैं… उसी नाम से बुलाइए।
सास इधर-उधर देखते हुए झेंप गई। निर्णायक मंडल ने पूछा क्या नाम है?
“कालो मोयना” स्वाति ने कहा।
खराबी नाम में नहीं, हमारी सोच में होती है। मुझे यह नाम न मिलता तो मैं शायद इस मंच पर न होती।
सुनीता मुखर्जी “श्रुति”
स्वरचित
लेखिका
हल्दिया, पूर्व मेदिनीपुर पश्चिम बंगाल