अपमान बना वरदान – खुशी : Moral Stories in Hindi

मंदिरा बहुत अच्छा खाना बनाती थीं।जब भी किसी को भी जरूरत होती वो उसको बुलाता और वो उसकी सहायता करने पहुंच जाती।रिश्तेदारी में भी कोई फंक्शन होता शादी, पार्टी सब की मदद करने वो पहुंच जाती।सब मंदिरा की तारीफ करते इस बात से उसकी भाभी निधि बहुत चिढ़ती थी।

मंदिरा की उमर शादी की हो चुकी थी। परंतु उसके पिता जी नहीं थे घर में मां और भाई अरविन्द और भाभी निधि थे।मंदिरा ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं थीं।तो मां जब भी भाई से कहती अरविंद मंदिरा के लिए घर वर देख तो निशि बोलती मांजी अब वो जमाना नहीं रहा कि लोग घर चलाने के लिए मासी लेकर जाए अब तो लोगों को पढ़ी लिखी लड़की चाहिए जैसे कि मैं और मेरी बहन।

अरविंद भी यही कहता मां इसके हिसाब का लड़का मिले तो सही ।कुछ दिनों बाद मंदिरा की मौसी उनके घर आई उनका बेटा बैंक में था उन्हें मंदिरा अपने बेटे हितेश के लिए बहुत पसंद आई पर निशि चाहती थीं कि हितेश की शादी उसकी बहन गरिमा से हो ।मौसी मां को आश्वासन दे कर गई कि वो हितेश को मना लेगी।

पर उससे पहले ही निशि हितेश से मिली और उसे बहला फुसला कर अपनी बहन का रिश्ता पक्का कर दिया।मौसी  जब हितेश संग घर आई तो हितेश को सजी सबरी गरिमा पसंद आई और उसने मंदिरा की जगह गरिमा से शादी कर ली।मौसी ने बहुत समझाया पर वो बोला मां गरिमा मेरी तरह पढ़ी लिखी है नौकरी करती है।

इस तरह मंदिरा के लिए आया ये रिश्ता भी निकल गया अब तो भाभी आए दिन ताने सुनाती।गरिमा की शादी में मेहमानों की आव भगत की जिम्मेदारी मंदिरा की थी अच्छा नाश्ता खाना सब उसने बनाया

पर वो अपनी भाभी के व्यवहार से बहुत आहत हुई भाभी अपनी बुआ को बता रही थीं कि निकम्मी लड़की है ना पढ़ी लिखी है मुफ्त की रोटी तोड़ती है इसे और इसकी मां को हम पाल रहे है चलो मां का करना तो हमारी मजबूरी है पर हम इसका क्यों करे इतना खर्चा है इसकी वजह से हम अपना बच्चा नहीं कर पा रहे रोज भाई से नई नई फरमाइश करती हैं।

मंदिरा को आज बहुत दुख हुआ उसने सोचा बस अब और नहीं वो भाभी को तबियत का बोल मां को लेकर घर आ गई।भाई दोनो को छोड़ फिर शादी में चला गया।

मां को सुला मंदिरा बैठी बैठी सोचती रही।उसने अपनी मां के नाम चिट्ठी लिखी मां मैं आप सब पर बोझ हो गई हूं।मै जा रही हूं अगर ज़िन्दगी में कुछ बन गई तो आपके पास जरूर आऊंगी।

चिट्ठी रख मंदिरा कुछ कपड़े  ले निकल पड़ी।

रेलवे स्टेशन पर आई वहां कोई गाड़ी खड़ी थी और उसमें वो बैठ गई सुबह आँखें खुली तो वो भोपाल में थी। वो गाड़ी से उतरी और मुंह धोया भूख भी लगी थी वो स्टेशन पर बैठ गई सुबह से शाम हो गई स्टेशन के सामने एक स्टाल था जो रतन की का था वो सुबह से उसे देख रहा था उसने पूछा कौन हो कहा से आई हो

सुबह से एसे ही बैठी हो भूख लगी होगी लो ये चाय समोसा खा लो। मंदिरा पहले तो ना बोली।पर भूख लगी थी उसने खा लिया फिर उसने रतन से पूछा मुझे कुछ काम मिलेगा।रतन बोला क्या कर सकती हो उसने कहा मैं खाना बहुत अच्छा बनाती हूं।रतन बोला अब रात को कहा जाओगी।मंदिरा बोली पता नहीं यही किसी कोने में रात बिता लोगी।

रतन बोला यहां रात में रुकना ठीक नहीं तुम चाहो तो मेरे साथ चलो मंदिरा बोली तुम्हारे साथ रतन बोला घबराओ मत मै तुम्हे अपनी काकी के पास ठहरूंगा मेरे घर में तो कोई नहीं है।वो दोनों चल पड़े रात काकी के यहां ही मंदिरा सोई वो भी अकेली थीं पड़ोस में ही रतन का भी कमरा था।रतन तो सुबह सुबह घर से चला गया

पीछे से मंदिरा ने उसका और काकी का कमरा साफ किया और खाना बनाया इतना स्वादिष्ट खाना बहुत सालों बाद रतन ने खाया था उसने कहा तुम्हारे हाथों  में 

जादू है कल से तुम काउंटर पर समोसे और ब्रेड पकोड़े बनाना कुछ दिनों में उनका काम बहुत अच्छा चल निकला उन्होंने एक दुकान मार्केट में भी ले ली।

मंदिरा की मिठाइयां और नमकीन जो एक बार खा लेता वो दीवाना हो जाता।

धीरे धीरे रेस्टोरेंट और मिठाई की दुकान सभी शहरों में स्थापित हो गई।

टीवी पर मंदिरा का इंटरव्यू था जो घर में मां भाई भाभी सब देख रहे थे।

भाभी को वो दिन याद आ रहा था जब वो घर से गई थी तो भाभी ने उसे बदचलन ,आवारा जाने क्या क्या कहा। एंकर ने पूछा आप इतनी तरक्की का श्रेय किसे देगी मंदिरा बोली मेरी भाभी को अगर वो मुझे निकम्मा नकारा बोझ ना कहती तो मै आज स्वाबलंबी ना होती। 

अगले दिन घर के बाहर एक बहुत बड़ी गाड़ी खड़ी थी। जिसमें से रतन और मंदिरा उतरे ।मंदिरा मां के गले लग रो पड़ी बोली मां आप चलो यहां से अब आप मेरे साथ ही रहोगी।भाभी बोली मुझे माफ करदो

मंदिरा मैने तुम्हे बहुत दुख दिया है मुझे माफ करदो।मंदिरा बोली नहीं भाभी आपका अपमान ही तो आज ये सम्मान का अवसर लाया है। मै किसी से नाराज़ नहीं हूं। देखो ना आप लोगों के आशीर्वाद से मै कहा आ गई हूं।रतन जी का तो सबसे ज्यादा धन्यवाद जिन्होने कठिन समय में मेरा साथ दिया और मुझे अपनाया ।ऐसा जीवन साथी पा मै धन्य हो गई।

सच है दोस्तों कभी कभी हमारा बुरा वक्त हमारे जीवन को नई दिशा दे जाता है।

स्वरचित कहानी 

आपकी सखी 

खुशी

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