अपमान बना वरदान – डा. शुभ्रा वार्ष्णेय : Moral Stories in Hindi

रवि वर्मा का नाम आज शहर के कोने-कोने में गूंजता है। लेकिन उसके सफल होने की कहानी साधारण नहीं है। यह संघर्ष, अपमान, और खुद को साबित करने की यात्रा है, जो यह सिखाती है कि असफलता और अपमान को भी एक वरदान में बदला जा सकता है।

रवि एक मिडिल-क्लास परिवार में पला-बढ़ा था। उसके पिता कृपा वर्मा एक सरकारी स्कूल के शिक्षक थे, और मां रेवती एक गृहिणी थीं। घर का माहौल साधारण और अनुशासित था, लेकिन रवि के सपने हमेशा बड़े थे।

माता पिता उसे साधारण तरीके से जीवन शांति से जीने की शिक्षा देते पर रवि की महत्वाकांक्षाएं कुछ हो रही थी वह कुछ बड़ा करना चाहता था।

कॉलेज के दिनों में, रवि ने अपने दोस्तों से कहा, “मैं चाहता हूं कि हर बच्चे को पढ़ाई का मौका मिले, चाहे वह किसी भी छोटे कस्बे या गाँव में क्यों न हो। डिजिटल पढ़ाई हर बच्चे के जीवन को बदल सकती है।”

दोस्त हँसते हुए बोले, “रवि, ये बड़े सपने छोड़। हमारे पास तो स्मार्टफोन भी मुश्किल से आते हैं। डिजिटल पढ़ाई? ये हमारे बस की बात नहीं।”

रवि मुस्कुरा देता, लेकिन अंदर से वह इन बातों से आहत होता था।

कॉलेज के तीसरे साल में, रवि ने एक राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। यह प्रतियोगिता बिजनेस आइडिया पिच करने की थी। रवि का आइडिया था: छोटे शहरों और कस्बों में डिजिटल शिक्षा को पहुँचाने के लिए एक ऐप। उसने रात-दिन मेहनत करके अपनी पिच तैयार की।

मंच पर जब वह अपना प्रेजेंटेशन दे रहा था, तो जजों में से एक ने उसे बीच में ही रोक दिया।

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जज ने कहा, “तुम्हारा आइडिया अव्यावहारिक है। छोटे शहरों में इंटरनेट की सुविधा नहीं होती, लोग डिजिटल पढ़ाई को महत्व नहीं देते। और तुम्हारे जैसे लड़के को तो पहले अपनी पढ़ाई पूरी करने पर ध्यान देना चाहिए। कहां तुम ऐसी बड़ी-बड़ी बातें करने लगे?… यह सब क्या तुम्हारे बस की बात है?… जरा अपने आप को तो देखो फिर कुछ बोलो।”

सारा हॉल तालियों की बजाय हँसी और मजाक से गूंज उठा। रवि चुपचाप मंच से उतर आया। उसकी आँखों में आँसू थे।

उसका दोस्त अंशुल दौड़कर उसके पास आया।

“यार, तुझे बुरा नहीं लग रहा?” अंशुल ने पूछा।

रवि ने गंभीर स्वर में कहा, “बुरा लग रहा है, लेकिन मैं हार मानने वालों में से नहीं हूँ। मैं इन्हें दिखाऊँगा कि मेरा आइडिया गलत नहीं है।”

रवि ने तय कर लिया कि वह इस अपमान को अपनी प्रेरणा बनाएगा। उसने सबसे पहले अपने आस-पास के छोटे स्कूलों और कोचिंग सेंटरों का दौरा किया। वह शिक्षकों से उनके अनुभव और समस्याएं पूछता।

एक दिन, एक स्कूल के प्रिंसिपल ने उसे कहा, “बेटा, तुम्हारा आइडिया अच्छा है, लेकिन हमारे पास पैसे नहीं हैं। छोटे कस्बों में ऐसी योजनाएं चलाना बहुत मुश्किल है।”

रवि ने दृढ़ता से कहा, “सर, मैं कुछ स्कूलों को मुफ्त में अपना ऐप इस्तेमाल करने दूँगा। अगर इससे बच्चों की पढ़ाई में सुधार हुआ, तो आप मेरी मदद करेंगे।”

रवि ने अपने दोस्त अंशुल, जो एक सॉफ्टवेयर डेवलपर था, से मदद मांगी।

“अंशुल, मुझे एक ऐसा ऐप चाहिए, जो सस्ता और उपयोग में आसान हो।”

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अंशुल ने हँसते हुए कहा, “भाई, पैसे कहाँ से आएंगे?”

“मैं अपने पिता से उधार लूँगा। और बाकी पैसे पार्ट-टाइम काम करके जुटाऊँगा,” रवि ने आत्मविश्वास के साथ जवाब दिया।

पिता रवि की योजना में अपनी जमा पूंजी लगाना नहीं चाहते थे पर जब उसकी मां रेवती ने उनसे कहा ,”हमें अपने बेटे पर भरोसा रखना चाहिए। जब वह कुछ सपने देख रहा है तो उसको पूरा करने में हमें उसका साथ देना चाहिए अगर हम ही अपने बच्चे का साथ नहीं देंगे तो कौन देगा?”,

रेवती की बात सुनकर कृपा वर्मा भी रवि की सहायता करने को तैयार हो गए थे। उन्होंने अपनी कुछ जमा पूंजी रवि को उसके सपने को पूरा करने के लिए दे दी थी और रवि ने भी उन्हें भरोसा दिलाया था कि वह उन्होंने निराश नहीं करेगा।

अगले कुछ महीनों में रवि और अंशुल ने रात-दिन मेहनत करके ऐप तैयार कर लिया। ऐप में वीडियो लेक्चर, टेस्ट सीरीज, और बच्चों के लिए लाइव क्लासेस का विकल्प था।

जब उसने इसे स्कूलों में प्रस्तुत किया, तो लोग फिर हँसने लगे।

“रवि, ये सब बड़े शहरों के बच्चों के लिए होता है। हमारे बच्चे तो आज भी ब्लैकबोर्ड और चॉक से पढ़ते हैं,” एक टीचर ने कहा।

लेकिन रवि ने हार नहीं मानी। उसने पांच स्कूलों में अपने ऐप का ट्रायल मुफ्त में शुरू कर दिया।

कुछ ही महीनों में बच्चों की पढ़ाई में सुधार दिखने लगा। जो बच्चे पहले साधारण नंबर लाते थे, वे अब बेहतर प्रदर्शन कर रहे थे। यह खबर धीरे-धीरे दूसरे स्कूलों तक पहुँचने लगी।

एक दिन, रवि के पिता ने उससे कहा, “बेटा, जो लोग तुझ पर हँसते थे, आज वही लोग तेरे काम की तारीफ कर रहे हैं। मुझे तुझ पर गर्व है।”

लेकिन रवि जानता था कि यह बस शुरुआत है।

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रवि की सफलता को देखकर कुछ लोग जलने लगे। एक दिन, एक बड़े कोचिंग सेंटर के मालिक ने रवि से कहा,

“तुम हमारा काम छीनने की कोशिश कर रहे हो। छोटे ऐप्स का कोई भविष्य नहीं है। बेहतर होगा कि तुम यह सब छोड़ दो।”

रवि ने शांत स्वर में जवाब दिया, “सर, मैं किसी का काम छीनने नहीं, बल्कि शिक्षा का स्तर उठाने आया हूँ। और यह तय है कि एक दिन यह छोटे ऐप्स बड़े बदलाव का कारण बनेंगे।”

धीरे-धीरे, रवि का ऐप शहर के बाहर भी फैलने लगा। अब उसे निवेशकों की जरूरत थी। उसने कई कंपनियों से संपर्क किया, लेकिन हर जगह उसे ठुकरा दिया गया।

“तुम्हारा बिजनेस मॉडल कमजोर है,” एक निवेशक ने कहा।

“तुम्हारे पास अनुभव नहीं है,” दूसरे ने कहा।

लेकिन रवि ने हार नहीं मानी। उसने सोशल मीडिया का सहारा लिया। एक महीने में उसके ऐप को 10,000 डाउनलोड मिले। अब वही निवेशक उससे मिलने आने लगे, जिन्होंने पहले मना कर दिया था।

कुछ ही समय में रवि की कंपनी “एजु-टेक्नो” करोड़ों की कंपनी बन गई। उसी प्रतियोगिता के आयोजकों ने उसे फिर से आमंत्रित किया। इस बार, वह मंच पर एक विजेता के रूप में खड़ा था।

जज, जिन्होंने उसे पहले अपमानित किया था, ने कहा,

“रवि, मुझे गर्व है कि मैं उस दिन गलत था। तुमने साबित कर दिया कि बड़े सपने देखने का अधिकार हर किसी को है।”

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रवि ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया,

“सर, आपकी आलोचना ने मुझे बेहतर बनने की प्रेरणा दी। मैं उस अपमान का शुक्रगुजार हूँ। अगर वह न होता, तो मैं शायद यहाँ तक न पहुँचता।”

रवि की कहानी यह सिखाती है कि अपमान और असफलता को अपने जीवन का अंत नहीं मानना चाहिए। अगर हम दृढ़ संकल्प और मेहनत से आगे बढ़ें, तो हर अपमान को वरदान में बदला जा सकता है। रवि की तरह, हमें अपने सपनों के लिए लड़ना चाहिए और उन तानों को अपनी सफलता की सीढ़ी बनाना चाहिए।

इस तरह रवि ने साबित कर दिया कि अपमान केवल एक शुरुआत है, अगर उसे प्रेरणा की तरह लिया जाए।

प्रस्तुतकर्ता 

डा. शुभ्रा वार्ष्णेय

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