Moral stories in hindi : कल आलोक जी का रिटायरमेन्ट है।आलोक जी और उनकी पत्नी दोनों ही बहुत उत्साहित और प्रफुल्लित हैं । आलोक जी तो इसलिए कि उन्हें कल से इस आपाधापी ,भागदौड़ की मशीनी जिन्दगी से मुक्ति मिलेगी ,जीवन की इस सांध्य बेला में कुछ पल सुकून से, अपने अनुसार, अपनी खुशी के लिए जी सकेंगे अब ।
और उनकी पत्नी विभा को अपने बेटे के पास जाने के लिए आकुलता बेसब्री हो रही थी ।बेटे बहू ने उन्हें पहले से ही कह कर रखा था कि “आप लोग रिटायरमेन्ट के बाद हमारे पास आकर रहोगे।यहाँ आपकी देखभाल करने वाला कौन है ।यह मकान बेच देंगे, यहाँ इसकी सार संभाल कौन करेगा ? “
विभा जी तो यही चाहती ही थी कि बेटे के परिवार के साथ रहें ,चाहते तो आलोक जी भी यही थे लेकिन रह रह कर उनको मकान बेचने वाली बात खटक रही थी ।हाँलाकि उनके बेटे बहू उनका बहुत सम्मान करते थे ,
उनके घर जाने पर यथोचित मान करते थे लेकिन आजकल के समय को देखते हुए उन्हें यह बिलकुल उचित नहीं लग रहा था कि मकान बेच के बेटे पर निर्भर हो जाएँ ।
लेकिन बेटा, बहू और विभा सब मकान बेचने के दृढसंकल्प थे और आलोक जी की अनुभवी व्यावहारिक बुद्धि उन्हें ऐसा करने से रोक रही थी लेकिन उन तीनों के बहुमत के आगे उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया और अपने “मकान” और अपनी जतन प्यार से बनाई गृहस्थी के सामान को औने पौने दामों में बेच दिया।
मन भर आया आलोक जी का। कैसे पाई पाई जोड़कर की गई सारी बैंक सेविंग्स के बाद भी उनको इस मकान के लिए गाँव वाले घर और खेतों का अधिकांश हिस्सा बेचना पड़ा था।अब वहाँ सिर्फ विरासत के तौर पर एक खेत और घर के पीछे की तरफ का एक कमरा और रसोई ही बचा था ।
खेत को भाड़े के खेतिहर देखते थे ।कभी कभी जब वे खेत की देखभाल के लिए एक दो दिन के लिए जाते तो उसी कमरे में ठहरते थे ।
अब मकान बेचने के बाद उन्हें ऐसा लग रहा था जैसे वे एकदम रिक्त हो गए हों । जैसे कि उनके हाथ से फिसल रहा हो सब कुछ ।”भरी आँखो और भरे मन” से वे चल पड़े अपने नए गंतव्य की ओर ।
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घर में घुसते ही जैसे सामान लेकर अपने जिस रूम में वो आकर ठहरते थे ,जाने लगे तो बेटे पीयूष ने उनको ऊपर आने का इशारा किया ।यह पहला झटका था उनके लिए वहाँ क्यों?तो पीयूष ने कहा “नीचे वाले उस कमरे में निमि (पोती) पढ़ती है उसको उसने अपना स्टडी रूम बना लिया है तो आप लोग अभी ऊपर वाली बरसाती में रह लीजिए ।
वहाँ रात को छत की खुली ठंडी हवा भी मिलेगी। मैं तो कमरे बनवाने की सोच रहा था लेकिन पाॅकेट एलाऊ नहीं कर रही थी।अब मकान के मिले पैसों से बनवा दूंगा छत पर कमरे आप दोनों के लिए ।”
आलोक जी हतप्रभ थे कितनी जल्दी रिश्तों ने अपना असली चेहरा दिखा दिया था ।कम से कम कुछ भ्रम तो रखा होता ।पहले मकान बिक गया और अब उन पैसों पर भी नजर है इनकी ।
वे कुछ बोले नहीं बस चुपचाप बरसाती वाले कमरे में जाकर पड़ गए।
बहू चाय नाश्ता दे गई । रात को भी निमि के हाथ खाना भिजवा दिया ।क्या सोच कर आए थे सारा परिवार एक साथ हँसी ठिठोली ,मस्ती करेंगे।दुनिया भर की गप्पें मारेंगे,ऐश की जिन्दगी जिएंगे ।यहाँ तो उनके साथ मेहमानों की तरह औपचारिक बर्ताव किया जा रहा है।
सुबह नीचे से ही बिना मिले ही पीयूष ऑफिस और निमि स्कूल चली गई ।बहू ने मेड के हाथ नाश्ता
भिजवा दिया- पोहे और चाय ।अपने घर के मक्खन मार के आलू गोभी के पराठे याद आ गए ।आँखे भर आईं और फिर मेड के हाथ नाश्ता भिजवाया ,दिल में एक हूक उठी !!।अभी तो एक दिन ही हुआ आए हुए और अभी से इतनी उपेक्षा ।
कैसे रहेंगे वो ताउम्र इस तरह !!! आकाश तो जरूर है छत पर लेकिन पंख नहीं है उड़ने को। ऊपर टाँग दिया गया हमें।हमारे घुटने बार बार ऊपर नीचे चढ़ने की इजाजत नहीं देते तो क्या यहीं टँगे रहना होगा दिन रात ।
शायद बहू अपनी गृहस्थी और रसोई में उन लोगों का हस्तक्षेप नहीं चाहती और न ही अपने कमरे पर हमारा अधिग्रहण बरदाश्त है उसे इसलिए अछूतों की तरह यहाँ अलग पटक दिया हमें ।
शाम को कुछ देर के लिए बस पीयूष ऊपर आता औपचारिक सी बातचीत के बाद ही कभी पत्नी आवाज लगा लेती कभी वो खुद कुछ काम का कह फटाफट नीचे चला जाता ।निमि भी बस खाना देने आती तो कुछ देर ही बैठती ।
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घुटन हो रही थी उनको जैसे आजाद पंछी को पिंजरे में बंद कर के बस समय से दाना पानी देते रहें तो क्या वो खुश रह पाएगा?
अब तो विभा जी को सब कुछ समझ आ रहा था ।अपनी नादानी और अंधी ममता की वजह से वो मकान से तो हाथ धो ही बैठे थे अब उससे मिले पैसे को नहीं गँवाना तो ऐसे होगा जैसे अपने पैर पर खुद कुल्हाडी मारकर खुद को अपाहिज कर लेना।
रात को दोनों पति पत्नी ने आपस में मशविरा किया और सुबह सुबह ही अपने कपड़े और जरूरी सामान लेकर गाँव वाले घर को जाने के लिए तैयार हो गए । बेशक वहाँ सुख सुविधा नहीं होगी , सामान आराम नहीं होगा ,खुद काम करना होगा लेकिन अपनी जिन्दगी अपनी तो होगी ।
अपने आत्मसम्मान को तो पल पल चोटिल होते नहीं देखना पड़ेगा।अपने ही घर में उपेक्षित अवांछनीय बनकर तो नहीं रहना पड़ेगा ।
बच्चों ने बहुत रोका मना किया , बेटे ने डाँटा भी कि वहाँ एक ही कमरा है कैसे रहोगे अकेले कैसे मैनेज करोगे ? यहाँ आपको क्या परेशानी है ,हाथों में खाना मिलता है कोई काम न धाम और क्या चाहिए आपको ?
पिता ने जवाब दिया– “आत्मसम्मान”
अपनों से करते अपेक्षा
बदले में मिलती उपेक्षा
जहाँ मिलता नहीं सम्मान
जहाँ आहत हो स्वाभिमान
वहाँ रहना है कैद समान
चाहे बेटे का ही हो मकान
पूनम अरोड़ा
#उपेक्षा