वह कुशाग्र बुद्धि की लड़की थी, अध्ययन में उसकी अत्यधिक रूचि थी। उच्चतर माध्यमिक की पढ़ाई के समय से ही वह विज्ञान विषय पर विद्या अध्ययन कर रही थी । कक्षा बारहवीं की परीक्षा उसने 80% अंक से उत्तीर्ण किया । अब उसकी जिंदगी का सबसे अहम फैसला लेने का समय आ गया था , वह गाँव से बाहर किसी बड़े शहर में मेडिकल कॉलेज में दाखिला लेकर पढना चाह रही थी। चूंकि वह लड़की थी ; अपना किसी भी क्षेत्र का निर्णय वह अपनी इच्छा अनुसार नहीं ले सकती थी ।
पता नहीं हमारे देश में लड़कियों की यह पाबंदी कब जाकर खत्म होगी । फिर कोई ” राजा राम मोहन राय जैसे अमर विभूति जन्म क्यों नहीं लेते ! लिखते हुए लेखिका का गला भर आ रहा है आँखें डबडबा गई हैं , गले में सिसकियाँ भरती जा रहीं हैं , मगर ” पाबंदी ” लड़कियों को तो सांस लेने में मर्यादा की पाबंदी है । लेखिका अपनी आंतरिक भावनाओं पर काबू रखते हुए आगे उस होनहार लड़की की कहानी लिखने में अग्रसर हो गई। उस लडकी को मेडिकल कॉलेज में दाखिला लेने से इस दलील के साथ रोक दिया गया कि तुम्हें एक दिन ससुराल विदा करना है तो बेहतर होगा कि तुम घरेलू काम काज में दक्षता हासिल करो । ये निर्णय उसके दादाजी का था और उनके किसी भी आदेश का उल्लंघन किया गया तो वो सीधे अनसन कर देते थे ।
वह लड़की अपनी माँ के पास रोने लगी फरियाद करनें लगी – देखो न माँ! ये तो मेरे साथ सरासर अन्याय है मैं डाक्टर बनना चाहती हूँ माँ! मुझे आगे पढाई करने के लिए दादाजी से बोलो न माँ। अपनी बेबसी पर माँ का भी गला भर आया, माँ अपनी बेटी को ढाढ़स देते हुए समझाने लगी -” देखी बेटी! तुम्हारे दादाजी के आगे मैं ज्यादा तो नही बोल पाऊँगी मगर तुम्हें कला समूह में स्नातक की पढाई कराने की जिद करूंगी बेटी । ” और उसकी माँ ने अपनी तरफ से सलाह दिया कि बेटी तुम होम साइंस का सबजेक्ट लेकर बी.ए. कर लो घर गृहस्थी में चार चाँद लग जाएंगे माँ अपनी बेटी को बहलाने का भरसक प्रयास करनें लगी । उनकी बेटी भी समझदार थी माँ की भावनाओं को समझते हुए उसने माँ की बातों पर हामी भर दी किसी भी तरह दादाजी भी राजी हो गये । उन्हें समझाया गया कि इस पढाई में हमारी लड़की तरह-तरह के पकवान बनाना सिखेगी, सिलाई , कढाई मशीन चलाना सब सीख जाएगी , तब कहीं जाकर उसने होम साइंस का सबजेक्ट लेकर स्नातक की पढाई शुरू की । द्वितीय वर्ष का इम्तिहान होंने का समय आ रहा था यानि कि जनवरी-फरवरी का महीना चल रहा था, अचानक घर से फोन आया रश्मि तुम्हें लड़के वाले देखने आ रहे हैं, तुम्हारी शादी तय की जा रही है कल काॅलेज से छुट्टी लेकर तुम तुरंत घर आ जाओ । रश्मि भौंचक्के रह गई! ये तो अन्याय उपर अन्याय होता जा रहा है , कम से कम स्नातक की पढाई पूरी कर लेने देते । मगर रश्मि अत्यधिक मर्यादित स्वभाव की लड़की थी। घर के बुजुर्गों की अवहेलना करना वह जानती ही नहीं थी । वह मन मसोस कर राज़ी हो गई।
ऊंची कद काठी , इकहरा बदन, दूध में जरा सी हल्दी डाल देने से ऊसका रंग कितना सुन्दर हो जाता है ऐसे ही मनमोहक रंग का उसका चेहरा उसे पिंक कलर का सलवार सूट पहना कर एक कमरे में बैठा दिए थे । नजरें झुकाए हुए सामने में लंबी लंबी दो छोटी से उसका रूप किसी गंधर्व कन्या सी दिख रही थी । लड़के की माँ आई तो एक नज़र में पसंद कर ली आनन-फानन में विवाह का मुहूर्त भी निकाल दिया गया विवाहोपरान्त वह ससुराल आ गई। रश्मि अपने पिछले सपनें को भूल चुकी थी वह नये घर संसार को संभालने सहेजने में संलग्न हो गई थी । तभी एक दिन मधुर वार्तालाप करते हुए उसके पति ने पूछ लिया-” रश्मि तुम जो पढ रही थी उसका Aim क्या रखी हो ? रश्मि चुप सी हो गई, क्या कहती अपना लक्ष्य अपने जीवन का उद्देश्य तो वह बहुत पीछे छोड़ चुकी थी वह सिर झुकाए हांथ की ऊंगलियां मडोरते हुए चुप चाप बैठी ही उसके पति पंकज ने फिर कहा-बताओ रश्मि! मैं तुम्हारी हर ख्वाहिश पूरी करनें में सहयोग करूंगा। तब रश्मि को साहस आया और पूरी बात बताई, मगर अब उसने अपनी ख्वाहिश बदल ली थी रश्मि ने कहा अब मैं स्नातक करनें के बाद बी . एड. करके टीचरशीप करना चाह रही हूँ। आशा और विश्वास भरी नज़र से पंकज की आँखों में देखते हुए बोली क्या मेरी यह आखिरी ख्वाहिश मुकम्मल हो पाएगी ? पंकज ने रश्मि को पूर्ण विश्वास देते हुए स्वीकृति दे दी । पढाई पुनः शुरुआत की गई और आज रश्मि एक शिक्षिका के पद पर आसीन है । आज रश्मि अपनें कमरे में बैठे हुए सोच रही थी पीहर में जो अन्याय हुआ वह समाज का डर है और ससुराल में पति ने जो सहयोग किए वह सुधरते समाज का प्रतिरूप है । आशा करती हूँ मेरे पति के सहयोग पूर्ण निर्णय से पीहर वाले भी समाज के डर से मुक्त होंगे ।
।।इति।।
-गोमती सिंह
कोरबा,छत्तीसगढ़