अन्याय – पुष्पा पाण्डेय

सरिता से फोन पर बात करने के बाद कमला चाची का मन थोड़ा हल्का हो जाता था। मन की भड़ास निकल जाती थी। इतनी बड़ी दुनिया में एक सरिता ही थी जिससे वह अपना दुख-दर्द साझा कर सकती थी। कमला सरिता की चाची थी और धीरे-धीरे वह सबकी चाची बन गयी। बड़ी मन्नतों के बाद चाची को  एक बेटा नसीब हुआ, लेकिन पति की असमय मौत के कारण जेठ-जेठानी की छत्र-छाया में पला। जेठ की चार बेटियों में एक बेटी सरिता का कन्यादान कमला ने ही किया था। सचमुच उन दोनों में माँ-बेटी सा ही रिश्ता था। कमला के पति शिक्षक थे अतः उनका पेंशन भी कमला जेठ जी के हाथों थमा देती थी। कमला को किसी से कोई शिकवा-शिकायत नहीं थी। पति की मौत के बाद चलती-फिरती रोबोट बन गयी थी। वैसे भी वह शुरू से अन्तर्मुखी स्वभाव की थी और जरूरत से ज्यादा ही कुछ सीधी थी। जिस काम में जेठानी लगा देती थी, सूर्योदय से सूर्यास्त तक लगी रहती थी मानों उसकी अपनी कुछ चाहत ही नहीं थी। बेटा स्कूल से निकलकर अब काॅलेज में पहुँच गया था। जेठ जी ने अपने बेटे और कमला के बेटे में कभी कोई भेद-भाव नहीं किया।———

समय अपनी गति से गुजर रहा था। दोनों बच्चों की नौकरी लग लगी। जेठ जी ने उन दोनों की शादी भी धूम-धाम से कर दिया, लेकिन जेठ-जेठानी अधिक दिन तक बहू के हाथों बनी रसोई का आनन्द नहीं उठा सके। एक दुर्घटना में दोनों की मौत हो गयी। नियति के फैसले को स्वीकार करना ही पड़ता है। घर की बागडोर बहुओं की हाथ में आ गयी। कमला की रुचि घर गृहस्थी में बिल्कुल नहीं थी या यों कह सकते हैं कि घर-गृहस्थी सम्भालने की काबिलियत ही उनमें नहीं थी। नये जमाने की दोनों बहुएँ ,भला एक साथ कहाँ से निभा पाती और  बीच में दीवार खींच गयी।

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धीरे-धीरे कमला की स्थिति बद् से बद्तर होती गयी। बहू ने उसे एक कमरे तक सीमित कर दिया, जिससे वह बाहर वालों के सम्पर्क में कम आए। बेटा महीने में एक बार उनके पास आता था और प्यार मुहब्बत से बातें कर पेंशन के लिए हस्ताक्षर करा चला जाता था। शुरू-शुरू में तो कमला अड़ोस-पड़ोस के फोन पर सरिता से बातें कर लिया करती थी। उसकी शिकायत सिर्फ यही थी कि मुझे गंगा-स्नान के लिए कोई नहीं ले जा रहा है। सरिता अपनी चाची की स्थिति से काफी दुखी रहती थी। वह जानती थी कि चाची के साथ अन्याय हो रहा है। एक तरह से उसे कैदी बनाकर रखा गया है। पेंशन के लिए जिन्दा रखना जरूरी है इसलिए सुबह-शाम भोजन मिल जाता था। सरिता एक  -दो बार उनके बहू- बेटे से बात करने की कोशिश भी की। हमेशा यही जबाब मिलता- “मेरे घर में दखल देने की कोशिश मत करो।”

सरिता मजबूरन चुप ही रहती थी।———-

तीन साल बाद इस बार सरिता मायके आई। कमला चाची की हालत देख आँखे भर आई। दो जून भोजन और एक लोटा पानी कमरे में रखने के अलावा कभी कोई कमला चाची की तरफ देखता भी नहीं था।———

एक निर्णय लेते हुए सरिता ने अपने पति को फोन किया और उसके बाद कमला चाची का सामान बांधने लगी। सामान के नाम पर चाचा की तस्वीर और नारायण की मूर्ति के आलावा कुछ ले जाने लायक था ही नहीं।

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सरिता जाते-जाते उनके बेटे से बैंक के कागजात जबरदस्ती अपने साथ लेती गयी।  एक फैसले के तौर पर यह घोषणा भी कर दिया कि –

“यह अन्याय हम नहीं देख सकते। चाची ने हमें बेटी माना है। अब मैं बेटी का फर्ज निभाऊँगी।

अब से चाची का पेंशन चाची के पास आयेगा। बेटा होने के नाते अचल सम्पत्ति के मालिक हो। हाँ, चाची के लिए अंतिम संस्कार करने आ जाना।”

बेटे-बहू सरिता का मुह देखते रह गये। कुछ कहने के लायक थे ही नहीं। उन्हें उम्मीद नहीं थी कि सरिता ऐसा भी कर सकती है।

स्वरचित

पुष्पा पाण्डेय

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