आज सुबह से ही घर में बहुत ही कलह पूर्ण वातावरण बना हुआ है। सिया का सर बहुत भारी हो रहा था। मन में बहुत से वैचारिक उतार-चढ़ाव चल रहे थे।
15 वर्ष पूर्व सिया का अंतर्जातीय प्रेम विवाह हुआ था यश के साथ।
यश और सिया दोनों ही जानते थे कि इस विवाह को इतनी आसानी से स्वीकार नहीं किया जाएगा।
ससुराल का भरा पूरा परिवार था दादा- दादी, चाचा-चाची, बुआ, मामा -मामी, देवर ननदें सभी रिश्ते थे।
सिया परिवार नई पीढ़ी की पहली बड़ी बहू थी। विवाह पूर्व तो उसकी सासू जी उसे बेटी की तरह ही बात करती, प्रेम और सम्मान देती थी। विवाह होते ही जैसे सारे रिश्ते बदल गए।
बाकी सब रिश्तेदारों से तो सिया को वैसे ही कोई उम्मीद नहीं थी क्योंकि वह तो विवाह पूर्व भी उसे स्वीकारना नहीं चाहते थे, परंतु उसे सबसे ज्यादा दुख इस बात का था कि उसकी सासू जी जो उसे बेटी बनाकर लाई थी लेकिन बहू का हक भी नहीं दे रही थीं। उसकी सासू मां भी उसे बात-बात पर ताने मारना, जाति -धर्म को लेकर सुनाती ही रहती थीं।
विवाह की शुरुआत से ही सिया को घर में जाति, धर्म पर हमेशा ताने दिए जाते थे। यहां तक की उसके माता-पिता के लिए भी अपशब्दों का प्रयोग किया जाता था। इस विवाह की वजह से सिया का मायका तो पहले ही छूट चुका था।
सिया ने बड़े मन से इस घर को अपनाया था । जाति, धर्म सब का सम्मान करते हुए रीति- रिवाज, वेशभूषा, भाषा सभी चीजों को उसने अंगीकार कर लिया था। वह भी सोचती थी कि कभी ना कभी तो सब ठीक होगा। उसके प्रयास और उसकी मेहनत कभी तो सफल होगी। आखिर वह यश से इतना प्यार जो करती थी।
परिवार मेंआयोजित तीज़ -त्योहार, किसी पारिवारिक समारोह में उसे इग्नोर किया जाता । उससे काम तो बहुत करवाए जाते थे, लेकिन उसे वह सम्मान नहीं मिलता था, जिसकी वह अधिकारी थी।
उसके कर्तव्य क्या हैं? जिम्मेदारियां क्या हैं? यह तो हर कोई उसे गिनाता रहता था, पर उसके प्रति किसी की क्या जिम्मेदारी है? क्या उनके कर्तव्य हैं? वह किसी को याद नहीं था।
यह सब यश के सामने होता रहता था, पर वह अक्सर चुप रहता था। उसे लगता था कि धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा । वह बड़ों के सम्मान की वजह से सिया के पक्ष में कुछ भी कहना पसंद नहीं करता था।
सिया शुरुआत में तो चुप रहकर सब कुछ सहन कर लेती थी । जब भी वह यश से इस बारे में कुछ बात करती यश भी चुप रहने को ही कहते और वह अगर ज्यादा कुछ कहती तो दोनों में ही कलह हो जाती थी। इस तरह सिया और यश का रिश्ता भी बिगड़ता जा रहा था।
जिंदगी यूं ही चल रही थी। धीरे-धीरे सिया दो बच्चों की मां बन गई और 10 -15 साल यूं ही बीत गए।
पर अब सिया चुप नहीं रहती थी, वह अपने पक्ष में बोलने लगी थी। उसका यही बोलना परिवार के सभी लोगों को नागवार गुजरता था। कोई उसे मुंहफट, तो कोई उसे बदतमीज कहता था। यश भी कहने लगे थे कि तुम बहुत अधिक बोलने लगी हो। तुम्हारा यह अधिक बोलना ही हमारे रिश्ते को बिगाड़ रहा है।
यश भी अपने व्यापार की व्यस्तता में सिया पर ध्यान नहीं देते थे। सिया अपने मन की कोई भी बात उनसे कहती तो कहते थे तुम्हें तो दिन भर बस हर किसी से समस्या ही रहती है।
ऐसा नहीं था कि यश उससे प्रेम नहीं करते थे । पर अब अपनी व्यस्तता के चलते या घर के इस माहौल के चलते हुए वे भी ऊब चुके थे।
सबको सिया से अपेक्षाएं तो बहुत थी, लेकिन सिया के बारे में कोई नहीं सोचता था कि किन परिस्थितियों में उसने विवाह किया और इतने सालों से वह क्या-क्या सह रही है ?
यहां तक की सिया को अपने बराबर की पीढ़ी से उम्मीद थी कि वह उसे समझेंगे और साथ देंगे, पर समझना तो दूर वे लोग भी कभी उसका साथ भी नहीं देते थे।
समय निकलता जा रहा था। बच्चे बड़े हो रहे थे। उन पर भी घर के इस माहौल का बहुत बुरा प्रभाव पड़ रहा था। सिया का निरंतर होता तिरस्कार उसे अपने बच्चोंकी नजरों में भी गिर रहाथा। बच्चों से प्रेम करने वाले ना दादा-दादी थे, ना चाचा-चाची, ना मामा मौसी, ना बुआ ।
बराबर वालीं पीढ़ी के भी देवर, ननदों के विवाह हो चुके थे। सिया ने उन सभी के शादी विवाह की सभी रस्मों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया और सारे व्यवहार भी बहुत उचित तरीके से निभाएं।
जो चाची सास, मामी सास उसमें कमियां निकालते नहीं थकती थी। आज उनकी अपनी बहुएं आ चुकी थी। अब उनके मुंह कुछ हद तक सील गए थे क्योंकि अब सब कुछ साफ-साफ दिखाई दे रहा था कि वह अपनी जाति की बहूऐ लाई थी । फिर भी वह सिया के आगे कहीं नहीं थी। कामकाज और हर व्यवहार में सिया उनसे बहुत आगे थी।
सिया की पूरे समाज में बहुत तारीफ होती थी। आस पड़ोस हर जगह सब लोग सिया को बहुत पसंद करते थे। हर घड़ी वह सब की मदद करने के लिए तैयार रहती थी। उसमें हुनर भी बहुत थे।
सिया पहले नौकरी भी करती थी पर घर में होने वाले अंतःकलहा की वजह से यश नहीं चाहते थे कि वह नौकरी करें। वह चाहते थे कि वह घर में ही रहकर घर परिवार पर ध्यान दें और बच्चों का पालन पोषण करें। इसीलिए सिया को अपनी नौकरी छोड़ने पड़ी। नौकरी ना करते हुए भी घर बैठे बहुत सारे काम ऑनलाइन कर लेती थी। वह पढ़ी-लिखी समझदार लड़की थी।
रिश्तेदारों की बहुओं में कितनी भी कमियां क्यों ना हो पर वह कभी भी वे अपनी बहुओं को कुछ नहीं कहते थे। कोई और उन्हें कुछ कह भी तो सदा ही उनका पक्ष लेकर उन्हें बचाते थे।
यह सब देखकर सिया अपनी सासू मां से हमेशा कहती थी कि अब देखा आपने। कैसे अपनी बहू का ख्याल रखा जाता है? सिया का हमेशा अपमान करने वाले रिश्तेदारों को उसकी सासू मां कभी कुछ नहीं कहती थी। दूसरों के सामने उनकी छवि अच्छी बनी रहे इसलिए वह हमेशा चुप ही रहती थी।
आज भी परिवार में सिया का बहुत अपमान किया गया था। एक रिश्तेदार के घर पर कार्यक्रम था और उन्होंने केवल सिया के पति और सास को बुलाया था सिया को नहीं। सिया ने इस बात पर घर वालों से पूछा कि जब उसे नहीं बुलाया गया, उसका अपमान किया गया तो क्या उन्हें जाना चाहिए ?
घर वाले कार्यक्रम में तो नहीं गए। घर में इसी बात पर विवाद हो गया। यश और सासू मां दोनों ही सिया को ही दोषी ठहरा रहे थे।
कह रहे थे कि तुम्हे तो रिश्ता निभाना ही नहीं आता तुम तो सबसे रिश्ते तोड़ देना चाहती हो।
घर में आग लगाने वाले रिश्तेदार तो सभी अपने-अपने घर में खुश थे। पर सिया पिछले 15 सालों से इसी तरह के माहौल में घुट घुट कर जी रही थी।
उसने अपने घर परिवार को बचाने के लिए अपना कैरियर और अपनी सारी खुशियों को दांव पर लगा दिया था।
आज बात सिया के आत्म सम्मान की थी, जिसे सालों से हर बार हर कोई ठोकर मार रहा था। जिस तरह सिया अंतिम सांस ले रही हो उसने एक ही सांस में आज यह कह दिया अपनी सासू मां से कि “सासू मां आप मुझे बेटी बना कर लाई थीं लेकिन आपने मुझे बहू का हक भी नहीं दिया।”
मुझे रिश्ते तोड़ने ही होते तो 15 सालों से रिश्ते निभाने की यह जी तोड़ कोशिश नहीं की होती। सच तो यह है कि इस परिवार ने मुझे नहीं अपनाया और किसी को भी मुझसे रिश्ता निभाना नहीं आया।
आज के बाद में कभी भी किसी के गलत व्यवहार के आगे नहीं झुकूंगी। मेरा आत्मसम्मान सर्वोपरि रहेगा।
स्वरचित
दिक्षा बागदरे
14/05/24
#सासू मां आप मुझे बेटी बनाकर लाई थी लेकिन बहू का हक भी नहीं दिया