खाना शुरू करते ही वर्मा जी ने पत्नी यशोदा से कहा….
क्या बात है आज दाल में नमक डालना भूल गई क्या..
सब्जी भी फीकी लग रही आज तो…
क्या कह रहे हैं.. डाली तो थी
स्वादानुसार नमक दाल में..
हाँ सब्जी में मिर्ची कम डाली है..
डाक्टर ने मना किया है आपको..
लेकिन आप मानें तब न..
अब इस उम्र भी तीख़ा खाने को जान दिए रहते हैं..
तो अब इस उम्र में आदत कहां से बदलूं अपनी..
और वैसे भी जान तीख़ा खाने के लिए नहीं तुम्हारे हाथों से बने खाने के लिए देता हूँ..
वर्मा जी ने दबी आवाज कहा..
हम्ममम…
मसखरी सीखनी हो तो कोई आपसे सीखे..
उम्र हो गई लेकिन मसखरी नहीं गई आपकी
यशोदा जी ने पति की ओर देखते हुए कहा
अच्छा लिजिए गर्मा गर्म खीर भी तैयार हो गई जल्दी जल्दी खा लिजिए..
पहले इधर आकर सब्जी चखो जरा..मुझे बिल्कुल पसंद नहीं इतनी फीकी सब्जी..
पत्नी के करीब आते ही वर्मा जी ने रोटी का एक टूकडा दाल में भीगोकर पत्नी को खिला दिया..
निवाला खाते ही यशोदा जी ने आश्चर्य से पति से कहा..
अरे…नमक ठीक तो है दाल में..
फिर सब्जी चख बोलीं..
और सब्जी भी ठीक लग रही..
आप भी न सुधरने से रहें..
इतने साल हो गए शादी के लेकिन खाने में नुक़्स निकालने की बीमारी नहीं गई आपकी…
कभी सब्जी फीकी,कभी दाल में नमक कम,कभी रोटी कच्ची तो कभी…..
यशोदा जी ने शिकायती लहजे में कहा
पर मुझे तो फीकी लगी ..
हल्के फुलके अंदाज में वर्मा जी ने यशोदा जी को जवाब दिया..
अच्छा चलो नमक ठीक है तो तुम भी खाना खा ही लो…
आओ साथ बैठो..
आज हम एक ही थाली में खाना खा लेते हैं..
सब समझती हूँ….
यह कहो कि मुझे खुद से पहले खिलाना चाहते थे..
यशोदा जी ने मुस्कुराते हुए पति से कहने लगी..
क्या करूँ शादी के इतने सालों बाद भी
तुम्हारा समर्पण ही है जो मुझे तुम्हारे प्रति मेरे दायित्वों और मुझे हमेशा मुख्य ध्यान में रखता है
वरना बच्चों ने तो हमें मरा ही समझ लिया है
सच कहूं तो दोनों बेटों का हम दोनों को यूँ छोड़ जाने के एहसास भर से मेरी रूह कांप उठी थी…टूट सा गया था बिल्कुल..
लेकिन तुम्हारे साथ ने मुझे हिम्मत दी..
गर तुम न संभालती तो शायद कब का बिखर गया होता मैं..
कभी समझ नहीं पाता कि आखिर हम बुजुर्गों के साथ अक्सर ऐसा क्यूं होता है…??
जिन बच्चों को हम पाल-पोस कर बड़ा करते हैं,हर कदम पर उन्हें सहारा देते हैं
अपनी हर ख्वाहिशों की तिलांजलि देकर..उनकी ख्वाहिशें पूरी करते हैं
वही बच्चे बड़े होकर हम माता पिता को बेसहारा छोड़ जाते हैं..
सच पूछो तो माता पिता कभी भी अपनी ख्वाहिशों के लिए जीतें ही नहीं हैं उनकी बस एक ही ख्वाहिश होती हैं कि वो अपने बच्चों की हर ख्वाहिश को पूरी कर सकें.. लेकिन जाने क्यूं आगे जाकर वही बच्चे अपने माता पिता की एक ख्वाहिश भी पूरी नहीं कर पाते….
वर्मा जी ने दुःखी मन से कहा..
कहने के साथ उनकी पलकें भी गीली हो चली थी..
यशोदा जी पति के आंसू पोंछती बोलीं ..
व्यर्थ की चिंता क्यूं करते हैं आप ??
कभी न कभी तो उन्हें लौट कर यहीं आना है..
तुम नाहक भ्रम पाले रखो अपने मन में
इंतजार करती रहो बेटे बहुओं का..
वो अब कभी नहीं आने वाले
तुम जानती नहीं शायद..स्वार्थ इंसान के फितरत को बदल देता है,रिश्तों का मतलब सिर्फ यह नहीं कि हम हमेशा एक दूसरे के साथ रहे, रिश्तों में प्रेम तो एक-दूसरे से दूर रहने पर भी रखा जा सकता है और रिश्ता कोई भी हो कभी खत्म भी नहीं होना चाहिए..
लेकिन आज कल के बच्चे न तो रिश्तों को समझ पाते हैं और न ही उनका मान रख पाते हैं
उम्र के इस पड़ाव पर हमारे दोनों बेटे अपनी पत्नी व बच्चों संग हमसे दूर रहते हैं या यूं कहो हमे अपनी जिंदगी से दरकिनार कर रखा है..
कभी मुड़कर ताकतें तक नहीं ..कभी एक फोन तक नहीं करतें कि हम दोनों किस हाल में हैं जिंदा हैं भी या नहीं..
बेटे तो बेटे… बेटी भी किनारा किए रहती है हमसे..
प्रभु की इच्छा..
समझ नहीं आता पीछले जन्म में हमने क्या पाप किए थे कि आज हमें ऐसा दिन देखना पड़ रहा..
यशोदा जी मायूस होकर पति से बोलीं
तब तो दुनिया में हम जैसे पापी माता पिता की संख्या बहुतों है..जो अपने किए पाप के कारण दरबदर इधर उधर भटकते रहते हैं, अपने वृद्धावस्था में या तो अकेले जी रहे होते हैं या फिर कहीं वृद्धाश्रमों में बची खुची ज़िंदगी व्यतीत कर रहे होते हैं..
कितनों को तो मुखाग्नि तक नसीब नहीं होती खुद के ही बच्चों से..
हम भी उन्हीं में हो..शायद
अरे छोड़िए भी..कर लेंगे गुज़ारा..
मैं हूं न.. अंतिम सांस तक साथ दूंगी आपका..
बात तुम्हारे साथ की नहीं यशोदा,बात हमारे साथ की है..जीवन और मृत्यु की है..
देखो कब तक साथ दे पाता हूं मैं तुम्हारा
अब तो..सांसें भी जवाब देने लगी हैं जाने कब साथ छोड़ दें..
डरता हूं मेरे बाद तुम्हारा क्या होगा ???
कौन ख्याल रखेगा तुम्हारा..???
चुप भी करिए कैसी उल्टी सीधी बातें कर रहें..आप
मरे आपके दुश्मन ..
यशोदा जी अपनी हथेली वर्मा जी के मुख पे रखते हुए बोलीं..
अभी तो मुझे आपके साथ और जीना है
हां अगर कभी मौत आई भी तो ईश्वर से प्रार्थना करूंगी कि आपके दामन में ही दम तोडूं..
लेकिन मैं तो ईश्वर से कुछ और ही प्राथना करता हूं..
वो क्या भला..?
यशोदा जी ने उत्सुकता बस वर्मा जी से पूछा..
यही कि हम जब भी प्राण त्यागें या प्रभु के घर से जब भी बुलावा आए तो हम दोनों का एक ही साथ आए,हम जब भी विदा लें तो इस दुनिया से एक ही साथ विदा लें..
कहकर वर्मा जी ने पत्नी यशोदा जी की हथेली पे अपना हाथ रख दिया..
यशोदा जी पति के सीने लग अपने आंसूओं को रोकने की असफल कोशिश कर रहीं थीं, उन्हें पता था कि अगर वर्मा जी को उनके टूटने का जरा सा भी एहसास हो गया तो वह वास्तव में बिखर जाएंगे.क्योंकि उन्हें भी सच का एहसास था कि उनके बच्चे अब उनके पास नहीं आने वालें…
सोच..यशोदा जी मन ही मन रोते रोते अपनी किस्मत को कोसती जा रहीं थीं..
उन्हें भलीभांति एहसास था कि…
जीवन का यह अंतिम पड़ाव उन दोनों को एक दूसरे के साथ ही पार करना है..
विनोद सिन्हा “सुदामा”