शाम से ही अनीता का मन बहुत द्रवित था।आज उसकी छोटी बेटी का चोला संस्कार था, जिस पर पड़ोस की सारी औरतों ने आकर उसको बातों ही बातों में बेटा ना होने का सुनाया और बधाई भी दी। इन बातों ने उसके मन को बहुत विचलित कर दिया कि अब उसकी सास और ननद उसको बिलकुल नहीं छोड़ेंगे, क्योंकि वह तो उस दिन से ही परेशान थे,जिस दिन से दूसरी बिटिया का जन्म हुआ था। मन ही मन परेशानी से भरी हुई वह अपना रसोई का सारा काम संभाल रही थी क्योंकि सामाजिक तौर पर आज से उसको रसोई संभालने की जिम्मेदारी दी गई थी, नहीं तो ससुराल वालों के तानों ने तो उसको हफ्ते के अंदर खड़ा कर दिया था,अपना घर संभालने को।
शाम को जैसे ही उसके पति रवि घर आए, उसने उनको अपनी पूरे दिन की व्यथा सुनाई और बोली कि “क्या आपको भी दूसरी बिटिया के होने का इतना दुख है?” तो उसके पति ने कहा
“नहीं मेरे लिए मेरी दोनों बेटियां मेरी जान है। मैं उनके लिए सब कुछ करूंगा मेरे लिए बेटे और बेटियों में कोई फर्क नहीं है।” इस बात को सुनकर अनीता के मन को बहुत धीरज मिला।
समय बीता और धीरे धीरे उसके बच्चे बड़े होने लगे।उसने अपनी बड़ी बेटी को बिल्कुल बेटे की तरह पाला। वह बेटे की तरह उसके बाल कटवाती और कपड़े पहनाती l बेटे की तरह उसको हर खेल खेलने भेजती। उसको हर चीज में आगे रखती और हमेशा उसको बोलती कि “तू मेरी बेटी नही तू तो मेरा बेटा है। तूने ही मेरे और अपने पापा के सारे फर्ज पूरे निभाने हैं।”
और इसी तरह समय का पहिया चलता रहा और उसकी दोनों बेटियां अब किशोर हो गईं।
लेकिन एक दिन अचानक वह भगवान के पास चली गई अकाल मृत्यु मिली उसे एक भयानक एक्सीडेंट में।
सास ससुर के साथ रिश्ते अब बहुत भले हो रहे थे, तो सबने सोचा चलो तीरथ यात्रा पर ही हो आते हैं और भगवान का धन्यवाद करते हैं। पर होनी को कुछ और ही मंजूर था। उनकी गाड़ी का एक भयानक एक्सीडेंट हुआ।
इस एक्सीडेंट में उसका परिवार यानी पति और बच्चे बच गए थे,जो बिल्कुल तन मन से टूट गए थे। उसके सास-ससुर भी इसी एक्सीडेंट में गुजर गए थे। उसकी एक इच्छा जो मृत्यु से पहले हमेशा से थी की जब भी मेरी मृत्यु हो तो सिर्फ पति के हाथों ही मेरा दाह संस्कार हो।
अक्सर अनीता यह बात मजाक मजाक में अपने पति रवि से कहा करती थी, पर कब जबान पर सरस्वती बैठ जाए उसका पता तो किसी को भी नहीं लगता।
क्योंकि इस एक्सीडेंट में रवि और बच्चों को काफी ज्यादा चोट लगी थी, जिसके कारण रवि के दोनों पैरों की हड्डियां टूट गई थी और दोनो बेटियां बहुत ज्यादा घायल हो गई थी। मां की ममता की विडंबना देखिये कि जैसे ही सामने की गाड़ी से अपनी गाड़ी पर टक्कर होते दिखी तो अनीता ने अपना शरीर अपने साथ बैठी बड़ी बेटी विधि के आगे और सीट के बीच में फंसा दिया,ताकि कोई भी झटका उसकी बेटी को ना लगे और वह अपनी और बेटी की सारी चोट अपने ऊपर ले गई।आगे की सीट के उछलने के कारण जहां रोड से सीट बंधी होती है,वह रोड सीधा उसके सिर में बिंध गई और बिना कुछ बोले उसके प्राण पखेरू हो गए।
किसी तरह उसके परिवार वालों को इस दुर्घटना की खबर दी गई। रोते बिलखते उन्हें बचाने के लिए परिवारजन वहां पहुंचे और उन्हें दिल्ली उनके घर लाए, जहां से अब उनके जीवन की अन्तिम यात्रा की शुरुआत होनी थी।
रवि घायल अवस्था में,कातर नजरों से पार्थिव शरीरों को देख रहा था। जो कुछ वक्त पहले उसके साथ प्राणवायु से परिपूर्ण हंस खेल रहे थे। उसे समझ नहीं आ रहा था कि यह कैसी माया है, उसके मानस पटल पर उन सब के साथ बिताए खुशियों के पल घूम रहे थे। उनकी बातें मन में गूंज रही थी।
घर में मची चीख पुकार के बीचअंतिम संस्कार के लिए उसके छोटे भाई ने सगे संबंधियों के साथ शमशानघाट की तरफ अंतिम यात्रा की शुरुआत करवाई।
रवि भरे मन से बिस्तर पर पड़ा दूर से यह सब खिड़की से देख रहा था कि सब बाहर जा रहे थे। तभी अचानक उसके मस्तिष्क में जैसे उसकी पत्नी की आवाज कोंधी।
“सुनो जी आपको पता है ना मैं आपको कितना प्यार करती हूं इसीलिए चाहे कुछ भी हो मैं हमेशा सुहागन रहूं यही इच्छा है बस मेरी।आपके हाथों में ही दुनिया से जाना चाहूंगी, मैं नहीं चाहती कि मुझे किसी और के हाथ लगे।”
तभी रवि ने विधि को बुलाया और बोला “बिटिया एक बार अपने दोनों हाथ मेरे सामने ला।” फिर उसके दोनों हाथों के ऊपर रवि ने अपने हाथों को रख दिया रख दिया और जोर जोर से रोने लगा और बोला “बेटा जा आज तुझे अपनी मां का कर्ज चुकाना है। वह जो चाहती थी कि मैं उसे अग्नि दू ,आज यह काम तुझे पूरा करना है क्योंकि तु मेरी बेटी नहीं मेरा बेटा है।आज तुम्हारी मां की और मेरी अंतिम इच्छा तुम्हें बताने जा रहा हूं कि हमारा संस्कार हमारे अंतिम कर्म सिर्फ तुम और तुम करोगी क्योंकि तू ही हमारा बेटा है और बेटी भी।”
यह बात सुनकर विधि हक्की बक्की रह गई, अपने सारे दुख दर्द भूल कर उसने जोर से अपने पिता रवि को गले लगाया और भागी बड़ी सड़क की ओर, ताकि अंतिम यात्रा के पीछे पीछे श्मशान घाट तक जाकर अपनी माता की अंतिम इच्छा पूरी कर पाए।
# बेटी_हमारा_स्वाभिमान
लेखिका:
गुंजन आनंद गोगिया