अंतर्मन की लक्ष्मी ( भाग – 19) – आरती झा आद्या : Moral Stories in Hindi
Post View 41,968 “ये सुबह सुबह क्या मनहूसियत फैला रखी है तुमने बहू और संपदा तुम क्या इसे गले लगाए खड़ी हो। घर ना हुआ अजायबघर हो गया है।” अपने कमरे से बाहर आकर बड़ी बुआ कुर्सी खींच कर बैठती विनया और संपदा की ओर देखती हुई कहती है। “फिर से वही सब ड्रामा शुरू … Continue reading अंतर्मन की लक्ष्मी ( भाग – 19) – आरती झा आद्या : Moral Stories in Hindi
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