मैं अपने बच्चों को रोज स्कूल छोड़ने लेने खुद जाती हूं।
कभी-कभी मेरे पति भी बच्चों को छोड़ने जाते हैं। यह मेरा रोज का काम होता है कभी समय से पहले बच्चों को लेने पहुंच जाते हैं।
रोज मिलते-जुलते रहने की वजह से हम अभिभावकों की एक दूसरे से अच्छी पहचान हो जाती है। ऐसे ही एक दिन की बात है।
मैअपने बच्चों को लेने स्कूल पहुंची,,,,, बच्चों को बाहर आने में बहुत टाइम लग जाता है। बच्चों को स्कूल से छुट्टी की जल्दी रहती है इसलिए दूसरे को धक्का देते हुए बच्चे अपने मम्मी और पापा के पास जल्दी पहुंचना चाहते हैं।
बेटा कुदरती रौवीले स्वभाव का है। छुट्टी हो चुकी थी चपरासी स्कूल का गेट नहीं खोल रहा था बेटा अभी मात्र कक्षा 4 का छात्र था
गेट के बाहर मुझे देख कर उसको चपरासी पर बहुत गुस्सा आ रही थी बेटा मुझे गेट से दिखाई दे रहा था क्योंकि वह सबसे आगे था,,,,
यकायक बेटा चपरासी से बोला अंकल जब छुट्टी हो गई है तो इतनी परेशान क्यों कर रहे हो ,,,,,?
आप गेट खोलते क्यों नहीं हो,,, गेट खोलो,,,,
आवाज में रूआब था जबकि उससे बड़े बच्चे बड़े आसानी से खड़े हुए थे किसी की बोलने की हिम्मत ना हो रही थी,,,
बेटा चौथी कक्षा में था छोटा सा था इस तरह से सुनकर चपरासी और बाहर खड़े हुए गार्जियंस जो गेट के आसपास थे उन्हें हंसी आ गई,,,,,
जैसे ही गेट खोला बेटा मेरे पास आ गया आपका बेटा बड़ा स्मार्ट है किसी से नहीं डरता ,,,, सूरत से बिल्कुल अपने पापा की तरह लगता है। बाजू में खड़ी महिला ने कहा ,,,मैंने कहा हां
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और इंतजार करने लगी अपने दूसरे बेटे का,,,,,,
वह भी बाहर आए तो मैं उसको ले लेकर घर चलूं
कुछ देर बाद मेरा छोटा बेटा भी आ गया मेरे बाजू में खड़ी महिला जो मेरे बड़े बेटे को देख रही थी
जब मेरा दूसरा बेटा आया तो बोली ,,,,यह भी बेटा आपका है।,,,
मैंने कहा हां,,,,, दोनों बेटे आपके हैं।,,,, दो दो बेटे आपके हैं।,,,,
कुछ अजीब तरह से पूछ रही थी मुझे बड़ा अटपटा सा लग रहा था,,,,,,
मैं अपने बच्चों को स्कूटी पर बैठा ही रही थी कि तभी उसकी दोनों बेटियां भी बहार आ गई
बेटियां बड़ी क्यूट सुंदर थी मेरे बच्चों के ही बराबर की होंगी,,,,,, अब माजरा मैं समझ चुकी थी,,,,
शायद उसके मन में यह चल रहा होगा यह देखो कितने सौभाग्यशाली है कि इनको दो दो बेटे हैं मुझे एक बेटी की जगह ही एक बेटा हो जाता,,,,,,, शायद हीन भावना से ग्रस्त रही होगी,,,,,,
जबकि उसकी दोनों बेटियों की जोड़ी मुझे अपना बचपन याद दिला रही थी
जब मैं मेरी बहन साथ साथ चलते थे,,,,,,
बेटियां बड़ी प्यारी थी,,,,,,,
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जोड़ी हमेशा ही सुंदर दिखती है,,,,,,,, चाहे भाई भाई की जोड़ी हो,,,, या दो बहनों की जोड़ी हो,,,,
या भाई-बहन की जोड़ी हो,,,,, देखने में यह सारी जोड़ियां मन आकर्षित कर ही लेती हैं।,,,,,
पता नहीं वह महिला इतनी परेशान सी क्यों हो गई मेरे बेटों को देखकर,,,,,, यह विचार मेरे मन में दिनभर चलता रहा,,,,,,,
हम तो नई पीढ़ी के लोग हैं। एनसीआर में रहते हुए भी इस तरह से पता नहीं क्यों सोच रही थी,,,,,,
फिर मन में विचार आया सिर्फ दिखाने के लिए हम आधुनिक हुए हैं विचारों से हम वहीं के वहीं हैं।
कोई बहुत ज्यादा अंतर नहीं है।
देखने से मुझे यह भी लग रहा था कि शायद अब वह हमेशा दो ही बेटियां रखेगी
लेकिन अंदर से खुश नहीं दिख रही थी जैसे उसने अपनी बेटियों को दिल से न अपनाया हो
बेटे कि कहीं ना कहीं लालसा उसकी नजरों में देख रही थी
उसकी एक बेटी शक्ल सूरत से उसी की तरह दिख रही थी जैसे मेरा छोटा बेटा मेरी तरह दिखता है। शायद दूसरी बेटी पति की शक्ल सूरत पर गई होगी,,,,,,
दोनों बेटियां उसका ही तो अंश थी जैसे मेरे बेटे मेरा अंश है।
बेटा बटी माता-पिता का ही तो अंश होते हैं।
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लोगों को दिखाने के लिए,,, विचार सेआधुनिक दिखाने के लिए बेटियों को अपना तो रहे हैं।,,,,,,
लेकिन दिल से अपनाने की बारी का बेटियां अभी भी इंतजार कर रही हैं। बाहर के लोग तो दूर उनके माता-पिता अभी भी उनको दिल से अपनाने में थोड़ा कतरा रहे हैं। क्योंकि परिवारी जन बेटी को औलाद मानने के लिए तैयार नहीं बेटियां उनको चुभती है।,,,, ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक देखने को मिलता है। और भारत गांव से बनता है।
बेटा बेटी दोनों ही औलाद है ।
फिर औलाद में अंतर कैसा,,,,,,?
अब तो बेटी कमजोर भी नहीं है।
सुनो ए दुनिया वालों चूड़ी पहनने वाले हाथों में अब रिवाल्वर भी सजने लगी है। अब सीमा पर रक्षा करने वाली को कमजोर समझने की भूल ना करना,,,,
कलम भी हाथ की शोभा बढ़ा रही है।
इसके लिए जिम्मेदार कौन समाज,,,, माता पिता,,,
या परिवार सगे संबंधी जिनके पास चर्चा का यही विषय होता है। या वह जो बेटी वाले माता-पिता को इतना असहज कर देते हैं।,,,, इस के कारण बेटी वाले माता-पिता का व्यवहार इस तरह का हो जाता है।
लेकिन 21वीं सदी में यह चर्चा का विषय नहीं होना चाहिए लेकिन हमारा दुर्भाग्य है।
आइए हमारे साथ चर्चा करिए अपनी महत्वपूर्ण टिप्पणी दीजिए,,,,,,
#औलाद#
मंजू तिवारी गुड़गांव
स्वरचित,, मौलिक रचना