अन्नपूर्णा – निशा जैन : Moral Stories in Hindi

राशि अपने पति सुबोध के साथ बड़े शहर में जबकि उसके सास ससुर जी अपने गांव के पैतृक मकान में ही रहते थे। कभी कभार वो 15 से 20 दिनों के लिए अपने बेटे बहु के पास आ जाया करते थे।

            राशि पढ़ी लिखी होशियार लड़की थी पर छोटे बच्चों का साथ होने से नौकरी नहीं करती । उसने अपने घर की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले रखी थी। घर का बजट वो ही देखती थी। सुबोध उसे महीने के शुरू में पैसे दे देता था बाकी क्या, कितना और कहां खर्च करना है वो सब राशि देखती थी। राशि ने ये आदत अपने मम्मी पापा से सीखी थी कि यदि महीने के शुरू में घर का , रसोई का और अन्य खर्चों का बजट बनाकर चले तो बाद में परेशानी नही होती और जितने चादर उतने पैर फैलाओ न कि दिखावे की जिंदगी में अपना हर पल बिताओ।

            सुबोध को हफ्ते का एक दिन छुट्टी मिलता तो वो कम ही बाहर जाना पसंद करता खासकर घर का राशन लाने में तो उसकी दिलचस्पी बिलकुल नहीं थी।पर राशि के साथ उसे जाना पड़ता तो वो डी मार्ट या रिलायंस में जाकर सामान खरीदना पसंद करता

            वहां वो अपना टाइम पास कर लेता और राशि अपनी खरीदारी।राशि सब कुछ देख परख कर लेती थी जैसे एक्सपायरी डेट, रेट, क्वांटिटी, ऑफर सब कुछ

            वहीं सुबोध को जो नया दिखता, उठा लाता और फिर घर आकर दोनो एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप करते।

            “सुबोध ये कौनसी ब्रांड के बिस्किट ले आए आप या ये वाली मूसली हम नहीं खाते” राशि सामान देखते हुए बोलती

            “अरे क्या हुआ यार, जब तक नही खाओगी, पता कैसे लगेगा। और फिर तुम्हारी गिनी चुनी ब्रांड खाकर ऊब गया मैं। बाहर जाकर देखो लोग क्या क्या खाने लगे हैं आजकल और तुम वही ढाक के तीन पात”

    “हां आप बोलते हो बस , स्वाद अच्छा नही लगा तो कभी नही खाते उसे बस दिखावे के चक्कर में लाते रहते हो कुछ भी

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              मन मारकर मैं ही खाती रहती हूं उसे क्योंकि मुझे लगता है जितने रुपए खर्चे उसे वसूलना भी तो पड़ेगा”

              ( और सच ही था सुबोध और बच्चे शौक शौक मे कुछ भी खरीद लाते पर जब पसंद नही आता तो उसे हाथ तक नहीं लगाते)

     आपको बोलो तो बोलेंगे फेंक दो या दे दो किसी को

     अरे ऐसे कैसे दे दूं भला कोई पैसे पेड़ पर थोड़े ना उग रहे हैं वो अपने आपसे ही बतियाती रहती क्योंकि सुबोध तो पता नही कब का अपने मोबाइल में लग जाता

     राशि देखती सुबोध ने उसकी एक बात नही सुनी तब सर पकड़ कर बैठ जाती और सोचती कैसे संभालूं अपनी रसोई का बजट। एक मैं अकेली बजट की चिंता करती हूं और बाकी लोग सिर्फ अपनी पसंद और नापसंद की। बस दिखावे की जिंदगी जीना चाहते हैं। ऐसे कैसे काम चलेगा…

     फिर भी बहुत ही सोच समझ कर काम करती।

जब कोई मेहमान आ जाता तब वो अपने बजट में अपने हिसाब से कटौती कर लेती पर मेहमान नवाजी में कोई कसर नहीं छोड़ती और कभी सुबोध मजाक में कहता भी कि”

 अब कहां गया तुम्हारा बजट? अब तुम भी तो दिखावे के लिए सब कर रही हो”

“जी नहीं पतिदेव इसे दिखावा नहीं कहते ये तो अपनों के लिए प्यार और सम्मान है जिसे दिखाकर और जता कर ही व्यक्त किया जाता है 

 ….मेहमान तो भगवान का रूप होता है ऐसा सासू मां और ससुर जी कहते हैं और किस्मत वालों को ही उनकी आवभगत का मौका मिलता है न कि दिखावे की जिंदगी जीने वाले लोगों को”

और उनकी खातिरदारी होगी तभी तो आपकी वाहवाही होगी कि फलाने की बहु बहुत अच्छी आवभगत करती है मेहमानों की …राशि आगे सुबोध को चिढ़ाते हुए बोलती

 “हां ये बात तो है राशि तुम अपने घर की रसोई के बजट में कितनी भी कटौती कर लो पर मेहमानों की रसोई में कोई कटौती नहीं”

” हां सुबोध ये मैने अपने पापा से सीखा है । उनकी आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी पर फिर भी वो मेहमानों की आवभगत में कोई कसर नहीं छोड़ते और इसलिए सारे रिश्तेदार हमारे यहां पर ही आना पसंद करते ।चाहे उनको रोटी सब्जी खिलाते पर मन से खिलाते।”

  खाने का भूखा कोई नही होता , सब प्रेम के भूखे होते हैं और खाने पीने से कोई बजट नही बिगड़ता, बजट बिगड़ता है व्यर्थ करने से या फिजूल खर्ची से। किसी की होड़ में फालतू सामान ले आओ और काम नही आने पर इधर उधर करते फिरो तब दुख ज्यादा होता है । 

        कुछ दिनों बाद राशि की सासू मां और ससुर जी का आना हुआ।वो जब देखती राशि सारे साबुत मसाले , साबुत अनाज जैसे छोले, राजमा, मूंग, मोठ, मूंगफली, सूजी, मैदा आदि फ्रीज में रखती है तो बोली

       ” बहु ये क्या? तुमने फ्रीज को अलमारी बना रखा है। सब इसमें क्यों भरा है? तुम्हारी मां ने सिखाया नही रसोई का सामान रसोई में शोभा देता है। या शहरों की तरह तुम्हे भी दिखावे का भूत सवार हो गया”

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“मां जी दिखावा नहीं बल्कि समझदारी है ये .. आपके यहां गांव में तो धूप आती है, समय समय पर मसाले और अनाज को धूप दिखाते रहते हैं पर यहां शहरों में फ्लैट में धूप देखने नही मिलती और ऊपर से मौसम में नमी हो तो अचार जैसी चीज खराब हो जाती है। फिर ये तो खराब होंगे ही सही । इसलिए मैने इनको फ्रीज में रखना शुरू किया नही तो पहले कितनी ही बार कितना ही सामान खराब हो गया।

  और हम यहां दो खाने वाले, बच्चे तो खाते ही कितना है। महीने में एक या दो बार इनका नंबर लगता है पर सामान तो लाकर रखना पड़ता है ना ।

   नही लाऊंगी तो भी आप बोलेंगे कि बहु के हाथों में तो बरकत ही नही है। नपा तुला सामान रखती है अपनी रसोई में।

   और फिर फ्रीज खरीदा है तो इसका उपयोग भी करना जरूरी है । मैं तो कहती हूं आप भी फ्रीज में रख दीजिए अब से , कितनी ही बार आप सूजी धूप लगाकर गाय को डालती हो क्युकी वो ज्यादा दिन चलती नही है। “

  ” हां ये तो ठीक कह रही हो बहु…..”.सासू मां बोली

    अगले दिन ससुर जी ने पूछा” बहु कोई सामान लाना है तो बता दो बाजार से, मैं ले आता हूं।”

     “नही पापाजी मैने कल ही ऑनलाइन ऑर्डर कर दिया सारा राशन बिग बास्केट से … आज आ जायेगा शाम तक”

“बहु तुम कब से इस दिखावे की जिंदगी के चक्कर में आ गई। औरों की तरह तुम भी ऑनलाइन सामान मंगवाने लगी क्या ?”ससुर जी ने आश्चर्य से पूछा

“नहीं पापाजी किसी दिखावे के लिए नहीं बल्कि आसानी के लिए सामान ऐसे मंगवाती हूं। 

जब से कोरोना हुआ तब से मैं ऑनलाइन ही सामान मंगवाती हुं। सस्ता और अच्छा सामान घर बैठे ही आ जाता है। और कभी कुछ खराब भी हुआ तो वापस हो जाता है या पैसे वापस मिल जाते है। 

        इस पर ऑफर भी चलते रहते हैं तो वो मैं सब देखकर ही अपने बजट के हिसाब से मंगवाती हुं।

पिछली बार दुकान जाके सामान लिया तभी तो सुबोध ने कुछ भी खरीद लिया और कितना ही सामान बेकार हुआ इसलिए मैं अब ऐसे ही सामान मंगवाती हूं”

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     “हां पापा और कब , क्या और कितना सामान चाहिए इसकी टेंशन से भी मुझे मुक्ति मिल जाती है “सुबोध हंसते हुए बोला

     “पापा ,आप तो कभी कभी आते हो फिर सुबोध को सामान लाना पसंद नहीं, मुझे अकेला जाने नही देते तो मुझे अपनी रसोई का बजट संभालने का ये आइडिया बहुत अच्छा लगा। आज ऑर्डर करो और आज ही सामान आ जाता है।

     टेंशन नही रहती इससे …….”

     ससुर जी के सामने जब सामान आया तो वो देखकर दंग रह गए। सब सामान सिस्टेमेटिक पैक हुआ और बिल भी साथ देखकर सोचने लगे कि हमारे जमाने में तो हमने कभी सोचा नहीं कि घर बैठे बैठे भी सारे काम हो सकते हैं।

      जितने दिन भी ससुर जी और सासू मां रुके वो देख रहे थे कि राशि सुबोध से अच्छा घर का बजट बनाकर चलती है। उन्हें यह देखकर खुशी हुई कि जमाना कितना बदल गया है । उनके जमाने में औरत को सिर्फ घर के काम से मतलब था , नमक आटे , दाल के भाव तक नही पता होते थे वहीं आज के जमाने में घर की स्त्री हर तरह से सक्षम है चाहे वो घर के काम हो या बाहर के। घर को एक गृहिणी इतने अच्छे से संभाल सकती है तभी तो पुरुष की चिंता आधी हो जाती है और वो पूरी तन्मयता से अपने ऑफिस के काम संभाल सकता है।

       रसोई के बजट के साथ साथ उनके आपसी रिश्तों में भी संतुलन बना रहता है और घर का वातावरण भी शांत रहता है 

         उसके ससुर जी बोले” मुझे लगता है एक औरत जितने अच्छे से घर के बजट को समझती है और उसके अनुसार घर चलाती है एक पुरुष शायद ही कर पाए।”

        “ये बात आपको आज समझ आई ? जब मैं रसोई और घर संभालती थी तब तो आपने कभी नही कहा “राशि की सास ससुर जी को घूरते हुए बोली

        “अरे भाग्यवान ऐसे देखकर डराओ मत । मानता तो मैं तब भी था पर तब इतनी हिम्मत नही कर पाया कहने की…. लो अब कहे देता हूं मेरी होम मिनिस्टर साहिबा “ससुर जी सासू मां को छेड़ते हुए बोले।

राशि अपने काम में लगी हुई थी और वो दोनों अपने अतीत को याद करने लगे

      ” सच कमला तुमने मेरी इतनी छोटी नौकरी में भी हमारे तीनों बच्चों( दोनो बेटी और बेटा) को कितने ढंग से पाला है उन को कितनी अच्छी परवरिश दी है कोई दिखावे के लिए कभी भी तुमने बच्चों को गलत शिक्षा नहीं दी। 

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साथ ही तुमने मेरे परिवार, रिश्तेदार की आवभगत में कोई कमी नही रखी थी। वरना मां तो……” 

        कहते कहते किशोर जी ( राशि के ससुर जी) चुप हो गए

“हां वरना मां को तो किसी का आना पसंद ही नही था ।बोलती घर के खर्चे कम हैं क्या जो अब इनकी खातिरदारी करो” कमला जी ने बात आगे बढ़ाई ।

” और आपकी मां और बहन तो मेरे खिलाफ पता नही क्या क्या खिचड़ी पकाती और आपके कान भरती रहती थी पर आपने कभी उनका साथ नहीं दिया। 

आपके इसी भरोसे के दम पर ही तो मैं अपने हिसाब से काम करती गई और आपके रिश्तेदार और परिवार वालों से संबंध अच्छे बनाती गई।

हम दोनो के आपसी रिश्तों की खिचड़ी उनकी खिचड़ी पर भारी पड़ गई क्युकी उसमें हमने समझदारी का तड़का जो लगाया था” कहते कहते कमला जी भावुक हो गई ।

किशोर जी की आंखे भी नम हो गई

“खैर हमारी जिंदगी तो कट गई कमला पर बहु बेटे के आपसी रिश्तों को हमे खिचड़ी नही बनने देना है कि कोई भी उसमे आकर अपने जायके का तड़का लगा जाए। और तुम भी बहु को ज्यादा टोका मत करो , आजकल के समझदार बच्चे है ।” 

“हां जी वो तो मैं जुबान की थोड़ी कड़वी हूं पर मन की तो साफ हूं। और बहु और मेरे रिश्ते की मिठास मेरे जुबान की कड़वाहट को कम कर देती है ये आप भी भली भांति जानते हैं। हम दोनों सास बहु दिखावे की जिंदगी में विश्वास नही करते है तभी तो जिंदगी मज़े में कट रही है हमारी…” कमला जी इतराते हुए बोली

“हमारी बहु वास्तव मे खरा सोना है खरा सोना….” सुरेश जी राशि के ससुर बोले

         “ये बिलकुल सही निर्णय लिया सुबोध ने जो घर की कमान हमारे बहु के हाथों दे रखी है । मेहमानों की आवभगत में भी कभी कोई कसर नहीं छोड़ती न ही कभी हाथ तंग है का रोना रोती है। बच्चों की, बड़ों की सारी जरूरतें अच्छे से जानती है। किसको क्या पसंद है, क्या नही सब कुछ।फल की जगह फल तो दूध, दही सबका इंतजाम पहले से ही रखती है

         ये ही होती है असली अन्नपूर्णा की पहचान जो सबके आहार का ध्यान रखे और प्रेम से भोजन खिलाए जैसे हमारी राशि है।

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दिखावे की जिंदगी से कोसों दूर है । जैसी मन के अंदर वैसी बाहर है। नहीं तो आजकल की लड़कियों को देखो कितना दिखावा करती हैं। 

दूसरों की होड़ में जिंदगी जीना चाहती है ,अपना स्टेटस बनाना चाहती है पर घर आए मेहमान को चाय तक नहीं पिलाती और बजट का रोना रोती रहती है जैसे हमारे पड़ोसी शर्मा जी की बहु नेहा करती है । आए दिन किटी पार्टी करती है पर सास ससुर की सेवा के नाम पर बीमार हो जाती है। ये दिखावे की जिंदगी नहीं तो और क्या है?घर में कलह ,अशांति , तनाव सब दिखावे की जिंदगी जीने का परिणाम है

आजकल इस दिखावे की जिंदगी में लोग अपनी शांति भंग कर रहे हैं। वरना जितने चादर उतने पैर फैलाए जाए तो जिंदगी खुशनुमा हो सकती है। “सुरेश जी की बात से 

कमला जी भी सहमत थी और दोनों सादा जीवन उच्च विचार रखने में विश्वास करते थे इसलिए जिंदगी का मज़ा भी ले रहे थे।

दोस्तों आपको क्या लगता है ?

दिखावे की जिंदगी जीना कितना ज़रूरी है?

मेरी कहानी पर अपनी प्रतिक्रिया देना मत भूलिए।

धन्यवाद

निशा जैन

# दिखावे की जिंदगी

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