” मैं अब इस घर में एक पल के लिए भी नहीं रह सकती जा रही हूं मैं ” कहते हुए शिवन्या घर से निकल गई ।
पीछे से समीर भी उतनी ही तेज आवाज में चिल्लाया ” हाँ हाँ जाओ , रोका किसने है । देखता हूं कहाँ जाओगी , तुम्हें क्या लगता है घर तुम्हारे भरोसे चल रहा है तुम्हारे बिना भी यहां सब कुछ होगा । रोज रोज काम गिनाती हो ।” कहकर जोर से दरवाजा बंद कर दिया उसने ।
गुस्से और जोश में घर से तो निकल गई शिवन्या पर अब सोच रही थी कि कहाँ जाएगी , मम्मी पापा के पास तो जाएगी नहीं उन्हें क्यों परेशान करें । सोचते सोचते बस चली जा रही थी कि पास के मंदिर से आरती की आवाज सुनाई दी तो उसके पैर खुद-ब-खुद उधर ही उठ गए , जाकर बैठ गई वहाँ पता नहीं कितनी देर ।
उधर घर में ना तो चाय बनी थी सुबह से और ना नाश्ता या खाना , सुबह-सुबह ही झगड़ा हो गया था शिवन्या और समीर का ।समीर ने रात के खाने पर अपने चार पाँच दोस्तों को बुला लिया था । शिवन्या ने उसे सिर्फ इतना कहा कि आज उसकी तबियत ठीक नहीं है फिर कभी बुला लेना दोस्तों को । तो इस बात पर समीर बिगड़ गया कहने लगा अब मना करेगा तो उसकी फ़जीहत हो जाएगी । शिवन्या ने उसे कहा कि प्रोग्राम बनाने से पहले उससे पूछना जरूरी नहीं था क्या और इस तरह बात झगड़े में बदल गई ।
दोनों के झगड़े से बच्चे भी डर गए और सहम कर चुपचाप अपने कमरे में बंद हो गए । पर थोड़ी देर बाद विहान को भूख लगी वो अपने पापा के पास गया और कहने लगा , ” पापा ! मम्मा कहाँ गई बहुत भूख लग रही है । आप मम्मा को ढूंढ कर लाओ ना , मुझे मम्मा चाहिए पापा । ” और जोर जोर से रोने लगा ।
समीर भी जैसे सोते से जागा। उसने देखा काफी देर हो गई शिवन्या को गए हुए किसी अनहोनी की चिंता से उठकर भागा ।इधर उधर बहुत ढूंढा पर वो कहीं नहीं मिली । तो थक हार कर भगवान की शरण में पास वाले मंदिर में चला गया । घर के इतने पास होते हुए भी वो आजतक इस मंदिर में नहीं आया था । उसने देखा अन्नपूर्णा माता का मंदिर था , माता की मूर्ति को ध्यान से देखा एक हाथ में बड़ा सा चम्मच था और दूसरे हाथ में अन्न से भरा हुआ एक बर्तन । उसे माता की मूर्ति में शिवन्या का अक्स नजर आने लगा वह भी तो उसके घर की अन्नपूर्णा है । परिवार के हर सदस्य का कितना ध्यान रखती है वो । जब वह खुद बीमार होता है तो कैसे उसके चारों तरफ घूमती रहती है और उसका ख्याल रखती है । हर साल छुट्टियों में मायके से पहले अपने सास-ससुर के पास गांव जाती है और यहां से भी हर महीने उनके पास न जाने क्या-क्या बनाकर भेजती रहती है जरूरत का ऐसा कौन सा सामान होता है जो वो नहीं भेजती । वह खुद इतना सोच भी नहीं पाता । शिवन्या को कैसे सबकी जरुरतों का पता बिना बोले ही चल जाता है । बच्चों को खुद ही पढ़ाती है उनकी हर एक्टिविटी के लिए समय निकालती है आज सच मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई वह कितने दिन से कह रही थी कि उसकी तबीयत ठीक नहीं लग रही पर मैंने ध्यान ही नहीं दिया उस और और आज उससे बिना पूछे दोस्तों को खाने पर बुला लिया शायद कुछ ज्यादा ही उसे टेकन फॉर ग्रांटेड ले लिया उसने । उसी समय उसने फोन कर दोस्तों से माफी मांगते हुए प्रोग्राम कैंसिल कर दिया । दोनों हाथ जोड़े आँखे बंद किये माता के आगे प्रार्थना कर रहा था कि तभी अचानक एक जाना पहचाना स्पर्श महसूस हुआ कंधे पर । बिना एक पल गँवाये हाथ पकड़ कर खींच कर गले से लगा लिया और मुँह से सिर्फ इतना ही निकला , ” शिवन्या ! घर चलो तुम , मेरे घर की अन्नपूर्णा हो तुम , तुम्हारे बिना मेरा घर खंडहर है तुम हो तो मेरा घर मंदिर है । मुझे माफ कर दो शिवन्या । “
” पहले तुम मुझे माफ करो समीर ! मैंने भी तो गलती की घर से बाहर निकल कर तुम्हारे और बच्चों के बिना मेरा भी क्या अस्तित्व है । अपने परिवार से ही पूर्ण हूं मैं । चलो घर चलते हैं बच्चे परेशान हो रहे होंगे उन्हें भूख भी लग रही होगी।”
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अनामिका प्रवीन शर्मा
मुम्बई