अनमोल उपहार – शिव कुमारी शुक्ला : Moral Stories in Hindi

सीमा क्या आजकल तुम्हारे स्कूल में छुट्टियां चल रही हैं तुम रोज मम्मी के साथ आ रही हो स्कूल नहीं जाती क्या।

यह सुन सीमा की आंखें डबडबा आईं और कुछ नहीं बोली।

अरे बोल क्यों नहीं जाती क्या हुआ।

सीमा जोर -जोर हिचकियां ले रोने लगी। रागीनी जी घबरा गईं ये क्या हुआ इसे । उन्होंने राधा को आवाज लगाई राधा यहां आ देख ये क्यों रो रही है।

आई दीदी कहती राधा हाथ का काम छोड़कर  आईं।

इसे क्या हुआ रो क्यों रही है मैंने तो केवल इससे स्कूल न जाने का कारण पूछा था।

अब राधा की आंखें भी भर आईं। मुश्किल से बोली दीदी ये स्कूल जाना चाहती है किन्तु स्कूल वालों ने इसका नाम काट

 दिया कारण मैं दो महीने से फीस नहीं भर पाई थी।

और बबलू, वह तो जा रहा है।

मैं दो माह की फीस लेकर  गई थी और उनसे कहा भी था कि एक -एक माह की दोनों की फीस जमा कर लो अगले महीने पूरी दे दूंगी पर वे नहीं माने उन पैसों से बबलू की पूरी दो माह की फीस जमा कर ली और इसका नाम काट दिया।अब यह रोज रोती है स्कूल जाने के लिए, पढ़ना चाहती है पर मैं फीस कहां से दूं ।

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राधा पहले तो तू हर महीने फीस देती थी अब क्या हो गया।

दीदी इसका बापू जहां काम करने जाता था वहां ऊपर से गिर गया कमर में चोट आई है। ठेकेदार ने कुछ भी पैसे इलाज के लिए नहीं दिये सारा पैसा इलाज में लग गया और वह काम पर भी नहीं जा पाता सो अकेली मेरी कमाई से गुजारा चल रहा है।

पर यह बात तूने मुझे क्यों नहीं बताई। मैं भर देती फीस बच्ची का स्कूल तो नहीं छूटता।

दीदी अच्छा नहीं लगता रोज -रोज आपको परेशान करना   हमारा जीवन तो ऐसे ही रोते बीतता है आप कहां तक मदद करेंगी। औरों से तो आप हमारा बहुत ध्यान रखतीं हैं यही क्या कम है। तभी तो आपके यहां मुझे दस साल हो गए काम करते कितने घर बदल लिये पर आपका घर नहीं छोड़ा।

रागीनी जी की बेटी सिया भी सीमा की हम उम्र थी जब राधा काम पर लगी अपनी बेटी को साथ लेकर आती थी यही कोई छह सात माह की होगी। रागिनी जी ने अपनी बेटी की एक छोटी सी गद्दी उसे बेटी को सुलाने के लिए दी।वे उसका अपनी बेटी की तरह ख्याल रखती। उसके रोने पर कहतीं राधा काम छोड़

पहले बेटी को सम्हाल शायद भूखी है जबकि ओर घरों में कहा जाता कि बेटी को किसी के पास छोड़ कर आ तेरा ध्यान उसी में लगा रहता है गन्दगी होती है सो अलग।कई बार इसी  चक्कर में काम छूट जाता। खैर रागिनी जी ने सीमा की स्कूल फीस भरकर  उसका नाम फिर से लिखवा दिया।अब वह खुश थी क्योंकि वह पढ़ने में बहुत होशियार थी और पढ़ना चाहती थी।

समय अपनी गति से भाग रहा था।चार माह बीत गए तब सिया के जन्मदिन को पांच दिन रह गए थे। सिया बोली मम्मी इस बार मैं अपना जन्मदिन घर पर ही 

मनाऊंगीं और अपनी सहेलियों को भी बुलाऊंगी।

ठीक है जैसी तुम्हारी इच्छा। मैं उसी हिसाब से तैयारी कर लेती हूं।

आज रविवार था सीमा भी अपनी मम्मी को काम में मदद करने के उद्देश्य से उनके साथ आईं थी।

रागिनी जी ने पूछा सीमा पढ़ाई कैसी चल रही है।

आन्टी जी बहुत अच्छी।

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फिर क्यों आईं है पढ़ती न।

नहीं आन्टी जी पूरे दिन तो नहीं पढ़ सकती फिर आज छुट्टी है सो मम्मी के साथ आ  गई उनके काम में मदद कर दूंगी तो आज उन्हें थोड़ा आराम मिल जायेगा। वो भी तो सारा दिन काम करके थक जातीं हैं।

तब यह सुन रागिनी जी  सोच में पड  गईं कितना दूर तक सोचती है इसी के साथ की मेरी बेटी है कभी कुछ नहीं करती। दोनों की सोच में कितना अंतर है।

तभी वहां सिया आकर सीमा से बोलती है मेरे जन्मदिन पर तुम भी आना जरूर से।

हां आऊंगीं दीदी ।

अरे मुझसे दीदी मत कहो मेरा नाम सिया है वही बोलो।

आज सिया का जन्मदिन धूमधाम से मन रहा था घर गुब्बारों,लाइट, एवं फूलों से सजा था उसकी सहेलियों के अलावा कुछ मम्मी-पापा के दोस्त भी आए थे। रंग बिरंगी पन्नीयों में लिपटे छोटे बड़े गिफ्ट हाथों में लेकर सब उसे विश कर दे रहे थे और गिफ्ट वहीं किनारे रखी टेबल पर रखते जा रहे थे।

सीमा भी सिया की पुरानी फ्राक  जो उसे रागिनी जी ने दी थी पहनकर हाथ में एक प्लास्टिक की थैली लिए खड़ी थी। सोच रही थी कहां इतने महंगे -मंहगे गिफ्ट और कहां यह मेरा छोटा सा बनाया फोटो कैसे सबके सामने दूं सब मेरा मजाक बनायेंगे और सिया को भी बहुत बुरा लगेगा।यह सोच थैली हाथ में लिए सबके जाने का इन्तजार करने लगी।जब सब चले गए मम्मी भी काम से निबट गईं तो बोलीं चल सीमा घर चलें। ये तेरे हाथ में क्या है।

रुक न मम्मी और वह सिया की ओर बढ़  गई। थैली में से एक छोटा सा पेपर अन्य थैली में लिपटा हुआ निकाल कर बोली सिया ये मेरी तरफ से गिफ्ट।

सिया ने खोलकर देखा तो देखती रह गई उसने उसका बड़ा ही सुन्दर स्कैच बनाया था। तभी रागिनी जी भी मिठाई का पैकेट लिए वहीं आ गईं और राधा को देते हुए बोलीं ये घर ले जा पति और बच्चे के लिए।

सिया , देखो मम्मी सीमा ने मुझे क्या दिया है।

मम्मी उसे देखकर बहुत खुश हुई। शाबाश बेटा बहुत सुंदर बनाया है।

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आंटी जी बहुत मंहगा गिफ्ट हम नहीं खरीद सकते थे सो मैंने यह बना लिया।पैक करने के लिए रंगीन पन्नी भी नहीं थी मेरे पास ,सो इसमें पैक कर लाई। दोस्त के जन्मदिन पर कुछ तो देना था सो यह छोटा सा कहते वह भावुक हो गई।

रागिनी जी बोलीं नहीं सीमा उपहार कोई छोटा बड़ा नहीं होता केवल देने वाले का मन,प्यार देखा जाता है। तुम्हारा उपहार तो सबसे कीमती है क्योंकि तुम्हारी सच्ची भावनाएं इससे जुड़ीं हैं। बाजार से तो बहुत कुछ खरीदा जा सकता है किन्तु इसको बनाने में तुम्हारी मेहनत और भावनाएं जुड़ी हुई हैं जिनका कोई मोल नहीं। इस तरह तुम्हारा उपहार अनमोल है कहते हुए उन्होंने उसकी पीठ थपथपाई बहुत सुन्दर बनाया है तुमने। तुम अपने इस हुनर को आगे बढ़ाओ मैं तुम्हारी मदद करूंगी। सीमा यह सब  सुन खुश हो गई।

 

शिव कुमारी शुक्ला 

24-3-25

स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित 

 

वाक्य***उपहार की कीमत नहीं दिल देखा जाता है

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