“आंटीईईई… यहां आओ!” छोटी सी मान्या पड़ोस में सुधा के घर में एंट्री करते हुए बोली।
उसके हाथ में मेकअप का ब्रश था जो शायद वह अपनी मम्मी की ड्रेसिंग टेबल से उठा कर लाई थी।
सुधा प्यार से बोली,”मान्या बेटा, पहले ब्रश रख कर आ जाओ फिर मैं तुम्हें चॉकलेट देती हूॅ॑।”
“आंटी कहां है चॉकलेट? आप दे दो, मैं चॉकलेट बाद में खाऊंगी पहले आपका मेकअप करूंगी, आज मैं आपका मेकअप करने आई हूॅ॑।” मान्य अपने नन्हें हाथों को आगे बढ़ाते हुए कहा
“पर बेटा मैं तो अभी तैयार हो गई हूॅ॑। देखो मैंने नहा धो कर अच्छे से कपड़े पहने हैं।” सुधा ने टालने को कहा
“आंटी मैं तो आपका आज मेकअप करूंगी! इस ब्रश से मैं आपके पाउडर लगाऊंगी, आपके पास वो क्रीम है जो मम्मी लगाती हैं ? नहीं तो घर से लेकर आती हूॅ॑।” मान्या ठुनक कर बोली
सुधा मनोविज्ञान की प्राध्यापिका है, बच्चों के मनोविज्ञान को अच्छे से जानती है उसको पता है कि बच्चे अगर किसी चीज की जिद करते हैं तो कई बार उनकी जिद यदि उचित हो और पूरी करने में हर्ज नहीं तो पूरी करनी पड़ती है अन्यथा वह लगातार जिद करते रहते हैं। मान्या पांच साल की एक छोटी सी बच्ची है जो सुधा के पड़ोस में रहती
है वह कभी कभार सुधा के घर में खेलने आ जाती है। सुधा उसे बहुत प्यार करती है शादी हुए दस साल हो गए हैं उसके कोई बच्चा नहीं है। वह मान्या को बहुत प्यार करती है। दो साल पहले जब मान्या का उसका परिवार ट्रांसफर होकर इस शहर में आया था तब मान्या मात्र 3तीन साल की थी तब से मान्या का उसके घर में आना जाना है। सुधा आंटी को मान्या भी बहुत चाहती है, मजाल जो उनका कहना ना मानें! मान्या उतने ही हक से सुधा आंटी को बोलती भी है और कभी तबीयत खराब हो जाए तो छोटे छोटे हाथों से सिर दबा देती है,
सुधा की तबीयत तो मान्या के आने से ही ठीक हो जाती है, उसके स्पर्श से ही मानो वो जी जाती है। उम्र का फासला भले ही कुछ हों परंतु दोनों में बेहद प्यार है, कभी बड़े-बच्चे वाला तो कभी सहेली वाला और कभी-कभी तो मान्या मानो सुधा की माॅ॑ बन जाया करती है, छोटी सी माॅ॑! ऐसी ऐसी नसीहत कि बस सुनकर ही प्यार हो जाए।
उम्र का क्या है मात्र एक नम्बर ही तो है! यह कथन सार्थक होता जान पड़ता है दोनों के बीच में…एक अनकहा दिल का रिश्ता बन गया है दोनों के बीच, बहुत प्यारा खूबसूरत बंधन!
सुधा का मान्या से मिलना मानो सुधा का उसकी खुशियों से पुनर्मिलन हुआ है, उसकी ज़िन्दगी में मान्या के आने से बहार आ गई। सबसे ज्यादा खुशी उसे हुई जब मान्या की मम्मी और पापा ने बताया कि उन्हें यह शहर बहुत पसंद आया है और उन्होंने यह घर खरीद लिया है। अब इसी में रहेंगे ताऊम्र…
“अच्छा बेटा, आप लगा दो आज मेरा मेकअप कर ही दो।” सुधा हंसकर बोली और बाॅडी लोशन उसको लाकर दे दिया।
बच्ची को क्या मालूम कि फाउंडेशन क्रीम है या नार्मल लोशन। मान्या ने बड़े मनोयोग से नन्हे नन्हे हाथों से सुधा के चेहरे पर क्रीम लगा कर ब्रश से फेस पाउडर (काॅम्पैक्ट) लगाया।
इसके बाद मान्या ने सुधा को बिंदी लगाकर कहा,” देखो आंटी अब आप सुंदर लग रही हों।”
“हां बेटा , मेरी छोटी सी मान्या ने मेरा इतना अच्छा मेकअप किया है तो मैं भला सुंदर क्यों नहीं लगूंगी!” कहते हुए सुधा ने मान्या को चाॅकलेट पकड़ा दी
मान्या चाॅकलेट खाते हुए बोली,” आंटी अब आपको काली कोई नहीं कहेगा। कल नीचे मधु आंटी ने आपको काली बोला था मुझे बहुत बुरा लगा था मैंने सोच लिया था कि मैं आपका मेकअप करके सुंदर बना दूंगी।”
सुधा थोड़ी हैरान हुई सुनकर क्योंकि उसका रंग उजला गोरा है पर मान्या से उसने कहा, “बेटा, मुझे नहीं पता मधु आंटी ने कब बोला पर तुमने क्यूट बना दिया मुझे अपने जैसा।”
“अरे आंटी आपको कैसे पता चलेगा? कल जब मैं पार्क में खेल रही थी तब मधु आंटी ने सीमा आंटी से कहा,” देखो वो जा रही है मनहूस काली सुधा! खुद के बच्चे तो है नहीं ,अपने बच्चों को उसके पास खेलने मत भेजा करो। ” मान्या ने टूटे फ़ूटे शब्दों में बताया और बताने के साथ ही सुधा से पूछा, “मैंने तो तभी सोचा आपको काली कह रही है, आपको सुंदर बना दूंगी।आंटी, मनहूस क्या होता है, मुझे उसका मतलब नहीं मालूम, आप बता दो।”
सुधा की ऑ॑खें भर आई सोचकर कि लोगों का काम है कहना, इतनी छोटी बच्ची को क्या समझाऊं…उसने मान्या को सीने से लगा लिया।
दोस्तों, सच ही है, लोगों का काम है कहना फिर भले ही किसी का दिल दुखे या दूसरा आपकी बातों से परेशान रहे। बच्चा नहीं होने पर सुधा को इस तरह की बातें अक्सर लोग सुनाया करते हैं।
यहां कहानी में मान्या के मुंह से लोगों की सुधा के लिए कही गई ऐसी बातें सुनकर सुधा के दिल को चोट पहुंची , प्यारी मासूम मान्या ने उसके घावों पर अपने प्यार का मरहम लगा दिया, बच्चे मन के सच्चे होते हैं उनमें ईश्वर का वास होता है। मान्या को उसकी मम्मी ने सुधा से मिलने से नहीं रोका, मान्या की मम्मी ने सुधा का मान्या से लगाव देखा, सच्चे दिल का रिश्ता बनते हुए देखा परंतु कई बार बच्चों को उनकी मांएं रोक देती हैं निसंतान औरत के पास जाने से, कहां तक उचित है ऐसा करना या कहना? आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा।
दोस्तों, बहुत दिल से लिखी है यह कहानी मैंने और यदि आपके दिल के तारों को भी झंकृत कर दिया मेरी रचना ने तो कृपया लाइक और शेयर करें एवं अपनी अमूल्य राय कमेंट सेक्शन में साझा कीजिएगा।
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धन्यवाद।
#दिल_का_रिश्ता
-प्रियंका सक्सेना
(मौलिक व स्वरचित)
3 thoughts on ““अनकहा रिश्ता!” – प्रियंका सक्सेना”