अंजाम – बालेश्वर गुप्ता : Moral Stories in Hindi

भाई जी मेरी औकात दो लाख रुपयों के देने की नही है।मेरे छोटे छोटे बच्चे है,भाई जी हम पर तरस खाओ।

अ—छ–छा, तेरी औकात दो लाख देने की नही है।तो ठीक है फिर हो गया फैसला अब तुझे एक हफ्ते में ढाई लाख भेजने है।

भाई जी– ये क्या?

 क्यों, और रियायत चाहिये?जा एक हफ्ते में ढाई लाख भेज देना।ज्यादा देर यहां खड़ा रहेगा तो और रियायत हो जायेगी।

चुपचाप अपने आंखों को पूछता हुआ अशोक,रामसिंह की बैठक से निकल आया।उसकी समझ मे नही आ रहा था कि अपनी फुटकर अनाज की दुकान से दो ढाई लाख निकाल लेगा तो दुकान में बचेगा क्या?कैसे आगे बच्चों का पेट पालेगा।ये ठीक है दुकान उसकी अच्छी चलती है,पर उसमें इतनी पूंजी नही जो वह ये झटका सहन कर ले।रामसिंह को रुपये नही पहुचाये तो उसकी जान की खैर नही।तब उसके बच्चो को कौन पालेगा।सोचते सोचते अशोक वही रास्ते मे ही चक्कर खा गिर पड़ा।

कस्बे में अशोक की अनाज की दुकान थी,मेहनत और ईमानदारी के कारण दुकान अच्छी चलती थी,दो बच्चे थे,दोनो ही छोटे थे,एक बच्चा स्कूल जाने लगा था।सब ठीक चल रहा था कि इलाके का एक दुर्दांत अपराधी रामसिंह जेल से जमानत पर छूट कर  क्या आया,इलाके के व्यापारियों की शामत आ गयी।कभी भी किसी के पास रुपयों के पहुचाने की डिमांड आ जाती।सब जानते थे रामसिंह को किसी के भी गोली मारने में कोई गुरेज नही होती है,सो सब कैसे भी हो डिमांड पूरी करते।

आज डिमांड का नंबर अशोक का था।रामसिंह की ड्योडी पर खूब चिरौरी करने का नतीजा ये हुआ दो लाख की रंगदारी को ढाई लाख कर दिया गया।असमंजसता थी कि दुकान को लुट जाने दे या फिर जान दे दे। पुलिस में जाने का मतलब भी जान गवाना ही था।

चक्कर खा गिर जाने के कारण अशोक चेतना शून्य हो गया।जब होश आया तो उसने अपने को एक अनजाने घर मे बिस्तर पर पाया।पास में एक युवक खड़ा था।होश में आने पर युवक ने अशोक से कहा अंकल आप सड़क पर बेहोश पड़े थे,आपको मैं अपने घर ले आया।आप अपना पता बता दे तो मैं आपको घर पंहुचा दूँ।नही बेटा मैं खुद ही चला जाऊँगा, भगवान तुम्हारा भला करे।

अंकल कुछ परेशान लग रहे हो बताओ क्या बात है?शायद मैं कुछ मदद कर सकूं?

नही-नही,मेरी मदद कोई नही कर सकता,मुझे ही मरना पड़ेगा।खोया खोया सा अशोक बुदबुदाते हुए उठ कर चलने लगा।तो उस युवक ने लड़खड़ाते अशोक को पकड़ कर फिर बिस्तर पर लिटा दिया और बड़ी ही आत्मीयता से बोला अंकल आप अपना दुख मुझसे शेयर करोगे तो मन हल्का हो जायेगा।आशीष नामक युवक की सहानुभूति ने अशोक को पिघला दिया और उसकी रुलाई फूट पड़ी।रोते रोते उसने रामसिंह द्वारा मांगी जाने वाली रंगदारी के बारे में बता दिया।

सब बात सुन और समझ कर आशीष ने कहा अंकल आप बेफिक्र हो जाये आपको कोई रंगदारी नही देनी है,बस आप इस घटना को एक पर्चे पर लिख मुझे दे दे और मुझ पर विश्वास कर घर निश्चिंत हो चले जायें।

अगले दिन अपनी दुकान से अशोक ने जो नजारा देखा वह भौचक्का रह गया।आशीष सीआइडी इंस्पेक्टर के रूप में उनके कस्बे में आया था और उसे रामसिंह की रिपोर्ट करनी थी।उसकी शिकायतें तो खूब आ रही थी पर सामने आने को कोई तैयार  नही था।अशोक द्वारा अपनी घटना को लिखित रूप से देने के कारण आशीष की रिपोर्ट के आधार पर अगले दिन ही पुलिस ने रामसिंह को उठा लिया था और उसको जुलूस रूप में कस्बे से गुजार रहे थे।ताकि उसके आतंक का भय लोगो के मन से निकल जाये।

आज दुर्दांत रामसिंह को दिन में तारे दिखाई दे रहे थे,अपने को अजेय मानने वाला गर्दन झुकाये सबसे नजर बचाता जा रहा था।

 बालेश्वर गुप्ता, नोयडा

मौलिक एवम अप्रकाशित

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