समाज में हर व्यक्ति को किसी न किसी पैमाने पर मापा जाता है। यह मापदंड अक्सर बाहरी रूप, धन, या दिखावे पर आधारित होते हैं, जबकि वास्तविकता कहीं अधिक गहरी होती है। “अंगूठी का नगीना” का मुहावरा सदैव इस समाज की खामियों और वास्तविकता के बीच के संघर्ष को दर्शाता है।
यह कहानी एक ऐसी लड़की की है, जो अपनी सादगी में छिपे हुए वास्तविक सुंदरता को समझने की कोशिश करती है, लेकिन समाज के तय किए गए मापदंडों से उसे यह राह मुश्किल लगती है।
साक्षी, एक छोटे से गांव की लड़की, हमेशा अपनी सादगी और सच्चाई पर गर्व करती थी। उसकी आँखों में न कोई दिखावा था, न ही उसके कपड़े फैशनेबल थे। लेकिन साक्षी को हमेशा यह महसूस होता था कि उसे समाज में उतना महत्व नहीं मिल रहा जितना उन लड़कियों को मिलता था, जो महंगे कपड़े पहनती थीं, या जिनके पास नामी ब्रांड्स के सामान होते थे।
एक दिन गाँव में एक बड़ा उत्सव था, जिसमें शहर से कुछ बड़े लोग आए थे। उनमें से एक था आदित्य, जो एक बड़े फैशन हाउस का मालिक था। आदित्य ने साक्षी को देखा और उसकी मासूमियत और सादगी को पसंद किया। उसने साक्षी से पूछा, “तुम कितनी सुंदर हो, लेकिन तुम्हें थोड़ा और ध्यान देना चाहिए। दिखावा तो इस दुनिया का हिस्सा है।”
साक्षी ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “दिखावा मेरे लिए कोई मायने नहीं रखता। मैं वही हूँ, जो मैं हूँ। मैं खुद को बदलकर किसी और जैसा नहीं बन सकती।”
आदित्य ने थोड़ी देर साक्षी को देखा और फिर हंसते हुए कहा, “तुम्हारे आत्मविश्वास और सादगी में जो चमक है, वह तो सचमुच एक अंगूठी के नगीने जैसी है। लेकिन याद रखना, आजकल इस दुनिया में सादगी से अधिक बाहरी रूप की चमक को पसंद किया जाता है।”
इस कहानी को भी पढ़ें:
ससुराल ऐसा ही होता है – अर्चना सिंह : Moral Stories in Hindi
यह बातें साक्षी के दिल में गहरे पैठ गईं। वह सोचने लगी कि क्या सच में समाज की नजर में केवल बाहरी रूप ही महत्वपूर्ण है? क्या केवल दिखावा करके ही हमें समाज में स्थान मिलता है?
वहीं, गाँव में उसकी एक दोस्त, पूजा, जो हमेशा महंगे कपड़े पहनती थी और हर जगह अपनी खूबसूरती का दिखावा करती थी, साक्षी से मिलने आई। पूजा ने कहा, “देखो साक्षी, अगर तुम्हें सम्मान चाहिए तो तुम्हें कुछ बदलाव करने होंगे। तुम हमेशा ऐसे साधारण कपड़े पहनती हो, जबकि हमें दिखावा करना चाहिए ताकि लोग हमें पहचानें।”
साक्षी ने उसकी बातों को ध्यान से सुना, लेकिन उसके भीतर एक संघर्ष उठने लगा। एक तरफ उसकी माँ की बातें थीं, जिसमें हमेशा सादगी और अच्छाई की अहमियत बताई जाती थी, और दूसरी तरफ समाज का दबाव था, जो सिर्फ बाहरी दिखावे पर ध्यान केंद्रित करता था। साक्षी को समझ में आ गया कि समाज ने असलियत और दिखावे के बीच भेद को मिटा दिया है। यहाँ केवल वही महत्व रखता है जो नजर आता है।
कुछ दिन बाद, साक्षी ने तय किया कि वह समाज के इस दिखावे वाले खेल में हिस्सा नहीं लेगी। वह जानती थी कि उसकी असली पहचान उसकी सादगी में छिपी हुई है, और यही उसे सबसे अलग बनाता है। साक्षी ने तय किया कि वह अपनी राह पर चलेगी, चाहे समाज क्या सोचता है।
कुछ समय बाद गाँव में एक और समारोह हुआ, जिसमें साक्षी ने अपनी सादगी और आत्मविश्वास के साथ भाग लिया। उसकी असली सुंदरता उस दिन उजागर हुई, क्योंकि उसने किसी बाहरी चीज़ को अपनी पहचान नहीं बनने दिया। वह आत्मविश्वास से भरी हुई थी,
और उसकी यह आत्मा की सुंदरता सभी को छू गई। आदित्य, जो पहले साक्षी को बदलने की सलाह दे चुका था, अब उसकी सादगी और आत्मविश्वास से प्रभावित हुआ। उसने साक्षी से कहा, “तुम सच में अद्वितीय हो, साक्षी। आज मैंने सीखा कि असली सुंदरता कभी दिखावे में नहीं, बल्कि आत्मविश्वास और सच्चाई में होती है।”
साक्षी मुस्कुराई और बोली, “आपका धन्यवाद, आदित्य जी। मैं जानती थी कि जो मैं हूं, वही ठीक है। समाज को बदलने का काम मुझे नहीं, हमें सबको मिलकर करना होगा।”
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि असली सुंदरता केवल बाहरी रूप से नहीं आती, बल्कि हमारी आंतरिक सुंदरता, आत्मविश्वास और सच्चाई से होती है। “अंगूठी का नगीना” वह प्रतीक है जो दिखावा और बाहरी रूपों से कहीं आगे है। समाज में बदलाव लाने के लिए हमें अपने मापदंडों को समझने और बदलने की आवश्यकता है, ताकि हम सादगी और असली सुंदरता को सम्मान दे सकें।
प्रस्तुतकर्ता
डा.शुभ्रा वार्ष्णेय