जगरु चाचा आज बेहद खुश थे, उनके पावँ जमीन पर पड़ ही नही रहे थे।अपनी खुशी का इजहार हर किसी को कैसे करे,उन्हें समझ नही आ रहा था।बस हर जानने वाले को रोक लेते और बताने लगते कि उनका मुन्ना आ रहा है, सुना तुमने मुन्ना यही आ रहा है,अब वो मेरे पास ही रहेगा।कहते कहते जगरु चाचा की आँखे छलक जाती।
पूरे पांच वर्ष बाद मुन्ना अमेरिका में रहने के बाद वापस अपने घर आ रहा था।जगरु चाचा ने तो मान लिया था कि बिना मुन्ना और पोते का मुँह देखे मुन्ना की माँ की तरह वे भी परलोक सिधार जायेंगे, पर मुन्ना के भारत वापस आने की खबर ने उनमें जीने की तमन्ना जगा दी थी।
अपने कस्बे के प्रतिष्ठित लाला जग्गनाथ जी को सब जगरु चाचा ही कहते थे।ये तो उन्हें भी याद नही कब वे जगत चाचा हो गये, पर उन्हें यह सम्बोधन कभी खला नही।इस संबोधन में उन्हें अपनापन लगता।मजे की बात तो ये हुई उनका अपना बेटा वीरेंद्र भी उन्हें चाचा ही पुकारने लगा।वीरेंद्र जब पैदा हुआ तो
जगरु चाचा उसे गोद मे लेते ही बोले सुनती हो अब मुन्ना आ गया है,अब हम अकेले नही रहेंगे,हमारा मुन्ना हमारे पास जीवन भर रहेगा।बेड पर लेटी उनकी पत्नी सुमन बोली-और नही तो क्या,इतना इंतजार कराया इसने,कितनी मन्नत मांगी,तब जाकर आया है,तो क्या अब भी पास नही रहेगा,और कहां जायेगा? ये तो है-जगरु चाचा कहते हुए कमरे से चले गये।
जगरु चाचा और सुमन की शादी के नौ वर्ष बाद उन्होंने संतान सुख पाया था।संतान न होने का संताप और अकेलेपन के अहसास उन्हें तोड़कर रख देता।दोनो खूब पूजा पाठ करते,मन्नत मांगते भगवान हमारे अंगना में भी कोई फूल खिला दे।कहते है ना,भगवान के घर देर है अंधेर नही,सो भगवान ने भले ही नौ वर्ष बाद सुनी हो पर उनके घर मुन्ना आ ही गया।
जगरु चाचा और सुमन के तो मानो पंख लग गये थे,हर समय मुन्ना मुन्ना की रट रहती।मुन्ना के बाद सुमन को फिर कोई औलाद नसीब नही हुई,पर वे मुन्ना से ही संतुष्ट थे।खूब अच्छे स्कूल में मुन्ना की शिक्षा हुई।मुन्ना भी होनहार निकला।आई टी की डिग्री ले मुन्ना को एक बड़ी कंपनी में जॉब भी मिल गया।अब मुन्ना कस्बे से दूर हैदराबाद में रहने लगा था,
पर हर दूसरे तीसरे महीने वह जगरु चाचा और माँ सुमन को अपने पास बुला लेता,10-15 दिन मुन्ना के पास रहते और फिर वापस घर चले जाते।असल मे मुन्ना से लगाव उन्हें वहां आने को मजबूर करता,
अन्यथा उन्हें तो अपना कस्बा,अपना घर ही सुहाता,पर बिना मुन्ना के वह भी सूना ही लगता।बड़ी ही असमंजस की स्थिति से गुजर रहे थे।आखिर जगरु चाचा ने निश्चय कर लिया कि वह अपना कारोबार समेट कर मुन्ना के ही पास चले जायेंगे,वह भी जिद कर रहा था और जगरु चाचा और सुमन का मन भी बिन मुन्ना के नही लग रहा था।
सब सोचा ही हो जाये तो कौन ईश्वर की सत्ता स्वीकार करे?मुन्ना को अमेरिका की कंपनी से बहुत अच्छा आफर आ गया।इस आफर को बताते हुए मुन्ना बेइंतिहा खुश था।वह जगरु चाचा को बता रहा था,चाचा
, अमेरिका जाकर खूब पैसा भेजूंगा,आपको कुछ करने की जरूरत नही है।एक नौकर 24 घंटे को रख लेना,मां को किसी काम को हाथ लगाने की जरूरत नही है।रोज वीडियो कॉन्फ्रेंस से बात किया करेंगे।जगरु चाचा तो बस इतना सुन पाये कि मुन्ना अमेरिका जा रहा है।धक से रह गये जगरु चाचा।
मुन्ना के साथ रहने की सब योजना धरी की धरी रह गयी।दबे से स्वर में जगरु चाचा ने कहा भी बेटा अपना घर अपना होवे है,अपना मुल्क अपना होवे है, बेटा यहां क्या कमी है?यहाँ अपने मुल्क में तो तू कही रहे जब तुझसे मिलने को दिल करे,आ तो जावे हैं।
अपने कैरियर की ऊंची उड़ान की आकांक्षा और विदेश जाने का आकर्षण,कस्बे के जगरु चाचा की बात कहां सुन पाता।मुन्ना ने बस इतना कहा, चाचा ऐसे मौके बार बार नही मिलते।
आप बेफिक्र रहो, आपको किसी चीज की कमी नही होने दूंगा।अब जगरु चाचा क्या कहते मुन्ना कमी तो तेरी हो जाएगी रे।चुप रह गए जगरु चाचा और मुन्ना उड़ गया अमेरिका।साल भर में ही सुमन मुन्ना को याद करते करते जगरु चाचा को अकेले छोड़ ऐसी यात्रा पर चली गयी,जहां से वापस आया ही नही जा सकता।
बड़ी मुश्किल से मुन्ना बस एक सप्ताह के लिये ही आ पाया।बड़ी आस भरी निगाहों से जगरु चाचा मुन्ना को देखता रहता,काश वह अपने घर मे रुक जाये, पर मुन्ना तो उसकी सब सहूलियत करा, फिर उड़ गया।
जगरु चाचा की आस टूट गयी थी,उन्हें लग गया था कि मुन्ना अब वापस नही लौटेगा,उसे यूँ ही जीना पड़ेगा,अकेले। तीन वर्ष बाद मुन्ना ने वही एक भारतीय लड़की से शादी भी कर ली।
बहुत खुश होकर उसने सब फोटो साझे किये, शालिनी से भी बात कराई,शीघ्र भारत आने की उसने इच्छा भी जाहिर की।अपनी आंखों के पानी को पोछते हुए जगरु चाचा ने अपनी बहू को आशीर्वाद दिया।सुंदर थी बहू, सामने नहीं तो चलो मोबाईल पर ही सही देख तो लिया, बस मलाल रह गया,अपनी बहू को मुँह दिखाई तो दे ही नही पाया।
पूरे पांच वर्षों बाद मुन्ना ने फोन पर कहा चाचा मैं आ रहा हूँ आपके पास।आपने सच कहा था चाचा अपना घर अपना होवे है,अपना मुल्क अपना होवे है।चाचा शालिनी को डिलीवरी में क्रिटिकल स्थिति आने पर दूर दूर तक भी कोई दिखाई नही दिया।शालिनी के माँ बाप भी भारत गये हुए थे।मैं तो अकेला पड़ गया।
चाचा अपने देश मे अपने कस्बे में क्या ऐसा हो सकता था?चाचा तब समझ आया विदेश की मरीचिका में हमने तो सब कुछ खो दिया।चाचा अब मैं भारत ही वापस आ रहा हूँ,वही नौकरी ढूंढूंगा या कुछ भी करूँगा।आप अब अकेले नही रहेंगे चाचा अपनें मुन्ना के पास रहेंगे।
सब बात सुन जगरु चाचा भगवान की ओर देख रहे थे,पता नही शिकायत कर रहे थे,तू सब देखता भी,सबकी सुनता भी है,पर इतनी देर क्यो लगा देता है भगवान।आंसुओ को आंखों में खुशियों को दिल मे लिये जगरु चाचा आज पूरे कस्बे का चक्कर लगा आये, सबको बताने,मेरा मुन्ना आ रहा है,मेरे पास,अपने घर।
बालेश्वर गुप्ता,नोयडा
मौलिक एवम अप्रकाशित।
*अपना घर अपना घर ही होता है*