अंतर्वेदना – सरिता गर्ग ‘सरि’

Post View 281     बिस्तर पर पड़ी सिलवटें  उसके मन की सिलवट बन गईं। रात भर की थकन उदासी,और शिथिलता ओढ़े , मन में हवा के टूटे पंखों की छटपटाहट लिए बेजान पैरों से चलती वो , हवा में  रात का ठहरा हुआ जहर पीती सूर्योदय से पूर्व ही सागर-तट पर चली आई। दूर समुद्री पक्षी … Continue reading अंतर्वेदना – सरिता गर्ग ‘सरि’