अम्मा का स्वाभिमान – उमा वर्मा

अम्मा आखिर चली गई ।घर में आज उनकी अंतिम श्राद्ध की दौड़ धूप मची हुई है ।पंडित जी जीम कर उठने वाले ही हैं ।नाते रिश्ते दारो को अब भूख सताने लगी है ।सबकुछ, खाने से लेकर दान दक्षिणा की तैयारी भी तो करनी पड़ी बेटे बहुओं को ।आज भर का झमेला है, कल से चैन की सांस लेने को उतावले परिवार खाने के लिए टूट पड़े हैं ।शायद जीवन में इतने तरह के मिष्ठान्न  कभी अम्मा को नसीब नहीं हुआ था लेकिन आज तो यह सब करना ही था ।

लोग क्या कहेंगे कि वाहवाही लूटने की तमन्ना भी तो है बेटे,बहू को ।पंडित जी ललचायी नजरों से सामान समेट रहें हैं ।बर्तन बासन् और कपड़े, रूपये खूब मिले हैं ।सब दिन अपने स्वाभिमान के लिए जीती रही अम्मा ।उनका जन्म हुआ था एक निपट देहात में ।अच्छी भली  संभ्रांत घर की थी ।अच्छे कुल का तेज चेहरे पर चमकता रहता ।अच्छा रहन सहन, अच्छा खाना, नौकर चाकर की भीड़ ।सब कुछ तो था वहां ।पर लड़की  के शिक्षा के पक्ष में नहीं थे पिता ।

उनका कहना था कि लड़की पढ़ाई कर के बिगड़ने लगती है ।बहुत पुराने खयाल के पिता का दबदबा इतना की किसी को बोलने की हिम्मत ही नहीं हुई कभी ।और अम्मा का मन पढ़ाई के लिए तड़प रहा था ।वह लकड़ी पर खाना बनाती और चुपके से पिता जी के अलमारी से गीता, रामायण, महाभारत, और भी सारे धार्मिक पुस्तकों को पढ़ने में मन लगाती।इस तरह चुप चाप उनहोंने सब कुछ याद कर लिया ।कम ही उम्र में शादी रचा दी गई उनकी ।

बहुत पुराने जमाने की बात थी फिर भी अम्मा को पढ़ने का बहुत शौक था ।ससुराल में भी घर परिवार में रमकर खुश थी ।शिक्षाके  अभाव का मलाल तो बहुत था लेकिन क्या  कर सकती थी ।पढाई में रुचि देख कर पति अखबार और पत्रिकाएं ला देते।फिर उन्होंने घर में ही पुस्तकालय बना लिया और अच्छे लेखकों की किताब खरीद कर पढ़ाई करती ।

हर बात में बहुत कुशल थी अम्मा ।सिलाई,कढ़ाई, पेन्टिंग, तरह तरह के पकवान बनाने वाली अम्मा मुहल्ले में किसी का दुःख सुख होता, किसी की शादी की सालगिरह होती, जन्म दिन होता वे बधाई देने जरूर पहुंच जाती।समय बदला अब वे दो बेटे और एक बेटी की माँ भी बन गई ।

समय के साथ बच्चों की शिक्षा पूरी हुई ।बेटी बड़ी थी तो शादी भी अच्छा घर वर देख कर बेटी को विदा किया ।समय का पहिया कब रूकता है, समय भागता रहा ।पति एक एक्सीडेंट में चल बसे ।बहुत कम उम्र में ही पति को खोने का गम तो था ।लेकिन समस्या मुँह बाए खड़ी थी ।कैसे घर चलेगा? बेटों की शिक्षा अधूरी थी ।बेटी, दामाद ने सहारा दिया उन्हे ।परिवार वाले तो नाराज ही हो गये ।”




 जो खायेंगे,खिलायेगे” समस्या का कोई हल नहीं था ।सिर्फ खाना ही तो नहीं था  जीवन में ।पूरी जिंदगी बाकी थी ।बेटों को भी कोई लाइन में लगाना था ।बहुत स्वाभिमानी थी अम्मा ।कहा ” मेहनत मजदूरी कर लेंगे लेकिन किसी के आगे हाथ नहीं पसारने है ” फिर दिन भर अपने दामाद जी के साथ अर्जी लेकर आफिस में दौड़ लगाते हुए शाम को थक हार कर अपनी पढ़ाई शुरू देती ।

रात को दो घंटे कागज के लिफाफे बनाने शुरू कर दिए ताकि हाथ खर्च के लिए कुछ पैसे हो जाएँ ।इस तरह अम्मा ने हाई स्कूल पास किया और फिर ग्रेजुएट भी हो गई ।बच्चे मजाक करते ” कितना पढ़ाई करोगी अम्मा, इस तरह तो हम पीछे रह जायेंगे ” वे बस मुस्कुरा देती ।कुछ दिन और बीत गए ।नौकरी के लिए दौड़ धूप चलती रही ।

आखिर उनकी मेहनत और बेटी दामाद की सहायता रंग ले आई।नौकरी लग गई तो घर में खुशियाँ ही खुशियाँ लौट आई।बहुत मेहनत करती थी वह ।दिन में आफिस जाती, रात में दो घंटे सिलाई करती, स्वेटर बनाती और दुकान में दे आती ।पैसे की कमी नहीं थी ।दोनों बेटे भी अच्छी कंपनी में सेटल हो गये।अब वे अपने अलग घर में चली गई ।बेटी से कहा– तुम लोगों ने बहुत सहारा दिया अब मै अपने घर में रहना चाहती हूं ।अम्मा की पढ़ाई का सपना पूरा हो गया ।अब बेटों की गृहस्थी बसानी थी ।बेटी के देख रेख में ही अच्छी कन्या से ब्याह तय हो गया ।दोनों की शादी एक बार मे करके वे निश्चित हो जाना चाहती थी ।बहुएं घर आ गई ।अम्मा गदगद हो गई ।अब आराम करना चाहती थी ।बहुत भाग दौड़ जीवन में किया ।शुरुआत अच्छी थी  दोनों बहू खूब खयाल रखती ।समय पर नाशता, समय पर खाना मिलने लगा ।समय समय पर बेटी दामाद आते ,उनका भी खूब आदर सत्कार होता ।अम्मा को आराम होता ।जीवन में और क्या चाहिए? सुखी, संतुष्ट ,देखभाल करने वाला परिवार था ।

अब चैन की सांस लेने को आतुर अम्मा ने एक दिन रात को जब वह पानी लेने रसोई में गई तो सुना– बड़ी बहु कह रही थी ” छोटी, हम कितना खातिरदारी करें इनकी, रूपये, पैसे तो निकालती नहीं है ये,आखिर हमारे भी तो बाल बच्चों का खर्च है ” ” हाँ दीदी, सही बात है ।बैठी बैठी इनको अच्छा खाना चाहिए ।शरीर तो चलाने से रही।धक से रह गया उनका मन।यह कैसा नाता रिश्ता है ।




जीवन भर इनके लिए कितना मेहनत किया ।किसी के आगे हाथ नहीं पसारे, तिल तिल करके बच्चों को लायक बनाया ।इसी दिन के लिए ।अकेले है तो क्या हुआ ।वह अपने गाँव चली जायेगी ।पति के छोड़े हुए कुछ पैसे है कुछ सिलाई की मशीन खरीद लेगी और दो लोगों को काम दे देगी ।अपना गुजारा हो जायेगा ।अब अम्मा एक दम चुप हो गयी ।

किसी से कोई शिकायत नहीं करती ।बेटों से क्या  कहे।वे भी तो पत्नी का पक्ष लेंगे ।मायके में माँ और ससुराल में पति से बढ़कर कोई नहीं होता ।यह बात वह अच्छी तरह महसूस कर रही थी ।माँ का सुख भी तो नहीं जानती थी ।छह महीने की थी तभी माँ भी गुजर गयी थी ।चाचा, चाची और पिता के देख रेख में बड़ी हुई थी ।जहाँ शिक्षा के लिए तरस गयी थी ।सारे सपने पूरे कहाँ होते हैं ।सोचा था जीवन में आराम करेंगे ।बहुएं आगे में थाली परोस कर देगी ।

अब इनके लिए भी भारी हो गई ।सब दिन स्वाभिमान से जीती रही ।आज कल देख रही थी सब के खाने के बाद उनको खाना मिलता ।कभी दाल नहीं, कभी सब्जी नहीं ।पूछती तो उत्तर मिलता इतनी महंगाई में घर चलाना आसान है क्या? खाना जुट रहा है, बहुत समझिये ।वे मन मसोसकर रह जाती।आज उनकी तबियत भी ठीक नहीं है ।खाने की इच्छा नहीं है ।

लगता है बहुत तेज बुखार हो गया है ।क्या करें वह? दवा के लिए कहने पर चार बात सुनना पड़ेगा।बहुत जोर की प्यास लगी है ।पानी लाने के लिए रसोई में जाना पड़ेगा ।वह गिलास थामे बढ़ती गई और लड़खड़ा कर गिर पड़ी।धम की आवाज से दोनों बहू दौड़ी ।

” अजी सुनिए तो, अम्मा गिर गई है ”  बड़ा बेटा दौड़ कर आया ।अम्मा के हाथ को पकड़ा,बर्फ सा ठंढा ।” छोटे,अम्मा चली गई—-” घर में चित्कार करके रोने धोने का नाटक होने लगा ।अंदर से खुश भी हो गये ।चलो झंझट खत्म हो गया ।हिसाब किताब होने लगा ।कौन कितना खर्च करेगा ।किसी चीज की कमी नहीं होनी चाहिए ।आखिर अम्मा थी हमारी ।स्वाभिमानी अम्मा ।आज सबकुछ अच्छे  से निपट गया ।और अम्मा भी ।—-

” उमा वर्मा, राँची “

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