अकेलापन – बालेश्वर गुप्ता : Moral Stories in Hindi

 अचानक पटाखों की तेज आवाजों से जानकी की आंखे खुल गयी।बड़ी मुश्किल से झपकी लगी थी,अचानक इत्ती रात को पटाखे?भला कोई ऐसा क्यों कर रहा है?इस उम्र में वैसे ही बड़ी मुश्किल से नींद आती है,अब आयी थी तो पटाखों ने तोड़ दी।बड़बड़ाती हुए जानकी उठ कर बॉलकोनी में आकर नीचे झांकने लगी

तो देखा  कि कॉलोनी के लड़के लड़कियां न केवल पटाखे छोड़ रहे थे,वरन डी.जे. की आवाज में खूब डांस भी कर रहे थे।अरे अच्छा तो नये साल की खुशियाँ मना रहे हैं।थोड़ी देर बालकनी में खड़े होकर जानकी उन बच्चों को निहार कर  धीरे धीरे चलकर वापस अपने पलंग पर आकर लेट गयी।एक बार नींद टूट जाने पर वैसे ही दुबारा नींद आना कठिन होता है और जानकी को तो नींद ही न के बराबर आती है।

          जानकी और रामप्रसाद की शादी 32 वर्ष पूर्व हुई थी।नव नवेली जानकी की सुंदरता के चर्चे पूरे कस्बे में थे।रामप्रसाद जानकी को पा फूले नही समा रहे थे।संस्कारित जानकी ने ससुराल में सबका मन जीत लिया था।संयुक्त परिवार था,जिसमे सास ससुर ,चचिया ससुर व चचिया सास,देवर, ननद सब थे।परिवार की खासियत थी

सब मिलजुलकर रहते,एक दूसरे के दुख सुख में काम आते।घर मे भी खूब चहल पहल रहती।सुबह से शाम तक का समय कैसे बीत जाता,पता ही नही चलता।जानकी के पावँ भारी क्या हुए,पूरे परिवार में खुशी की लहर दौड़ गयी।जानकी को घर के काम तक करने के लिये मना कर दिया गया। जानकी अभिभूत हो गयी।

      आखिर वह दिन भी आ ही गया जब जानकी माँ बन गयी,एक सुंदर गोलमटोल बेटे की  माँ।पूरे परिवार में हर्ष की लहर हिलोर लेने लगी,ढोलक की ढाप गूंजने लगी।सबके स्नेह का खिलौना बन गया था जानकी का बेटा मुन्ना।

       पाश्चात्य सभ्यता ने न केवल कस्बे तक ही अपना प्रभाव डालना शुरू कर दिया था,वरन रामप्रसाद के परिवार पर भी असर शुरू हो गया था।सयुंक्त परिवार की परिपाटी टूटती जा रही थी,एकल परिवार का चलन बढ़ने लगा था।टूटने का सिलसिला चला तो एक कमरे और रसोई के साथ रह गये राम प्रसाद,जानकी और उनका मुन्ना।

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सबकी आंखों का तारा रहा मुन्ना अब अपने पापा की गोद को भी तरस जाता।सबके हाथों में उठाई जाने वाली जानकी अब बीमारी में भी रसोई में खटती।फिर भी एक आशा जीवित थी अपना मुन्ना बड़ा होगा,उसकी शादी करेंगे और उसे सबकी तरह अलग नही रहने देंगे,अपने साथ रखेंगे।उसके बच्चे भी अपने अंगना में ही खेलेंगे।पहले वाले वातावरण,परम्पराये और एक दूसरे के प्रति स्नेहनिल व्यवहार को फिर पैदा करेंगे।

      समय के साथ मुन्ना बड़ा हो गया और मुन्ना की नौकरी भी पास के शहर में लग गयी।मुन्ना अपने पापा और मम्मी को शहर ही अपने पास ले आया।रामप्रसाद और जानकी का सीना गर्व से चौड़ा हो गया था।मुन्ना की पसंद से उसकी शादी शैली से करा दी गयी। शैली सुंदर और आधुनिक विचारो से ओतप्रोत थी।शैली और मुन्ना एक दूसरे को बहुत प्यार करते थे।दोनो की जोड़ी भी खूब फबती थी।जानकी और रामप्रसाद दोनो को देख खूब प्रफुल्लित होते थे।मुन्ना अपने ऑफिस से वापस आकर अपनी मम्मी और पापा के पास ही आकर कुछ देर अवश्य बैठता था।

      जानकी और रामप्रसाद अपने मुन्ना से संतुष्ट थे,वे समझते थे,मुन्ना को नौकरी पर भी जाना पड़ता है और अपनी पत्नी को भी समय देना स्वाभाविक ही है फिरभी मुन्ना उनका ध्यान रखता है।कभी कभी एक बात जरूर जानकी के मन मे आती कि मुन्ना तो जैसे ही उसे समय मिलता तो उनके पास आता भी है और बतियाता भी है पर बहू घर रहते हुए भी उनके पास बिल्कुल भी नही आती,बात भी बस औपचारिक सी ही करती है।रामप्रसाद जानकी को समझा देता कि बहू दूसरे घर से आयी है,कुछ दिनों में घुलमिल जायेगी, अपना मुन्ना तो हमे मान देता है ना?एक लम्बी सांस ले जानकी चुप रह जाती।

      अचानक मुन्ना एक दिन बोला पापा उसका जॉब आस्ट्रेलिया में लग गया है,कुछ दिन जरूर आपको और मम्मी को यही इसी फ्लैट में रहना होगा,फिर संभव होगा तो वहां के कानून के मुताबिक आपको भी वही बुला लेंगे,नही तो दो तीन वर्षों में मैं भारत वापस ही आ जाऊंगा।रामप्रसाद जी को एक धक्का सा लगा,उन्हें लगा मुन्ना चला जायेगा तो वे कैसे उसके बिना रह पायेंगे।पर वे ये भी सोच रहे थे कि मुन्ना के कैरियर में जो वह खुद सोच रहा है,उसमें उन्हें अड़चन नही डालनी चाहिये।

         और मुन्ना आस्ट्रेलिया चला ही गया,दो माह बाद शैली भी।मुन्ना के जाने के बाद रामप्रसाद तो अपने मे ही गुम से हो गये।एक गहरी खामोशी उनके दिल दिमाग पर छा गयी,अपने मन की व्यथा वे जानकी से भी नही कह पाते,वे जानते थे जो स्थिति उनकी है तो वही स्थिति जानकी भी तो है।बस वे एक दूसरे से आंखे चुरा रहे थे।

     राम प्रसाद जी अधिक दिन अपने सदमे को झेल नही पाये और एक दिन परलोक प्रस्थान कर गये।रिश्तेदारों के माध्यम से अंतिम संस्कार हो गया।मुन्ना आस्ट्रेलिया से आया और माँ को अपने साथ आस्ट्रेलिया ले गया।छः माह का वीजा बन गया था।नया परिवेश जानकी को रास नही आ रहा था,पर वहां भारत मे ही अब कौन है, सोचकर रह जाती,जानकी।

      छः माह बाद जानकी को वीजा अवधि समाप्त हो जाने पर भारत आना पड़ा।पूरे फ्लैट में नितांत अकेली जानकी को पूरा फ्लैट खाने को दौड़ता।हर समय आंखों के सामने मुन्ना की बचपन से लेकर अब तक की छवि तैरती रहती।आंखों से नींद भी उड़ गयी थी।बड़ी मुश्किल से नींद आती।उस दिन भी पटाखों की आवाज ने जानकी की नींद उछाड दी थी।एक बात जरूर अच्छी रही कि छः माह के ऑस्ट्रेलिया प्रवास में शैली उनसे घुलमिल गयी थी।अब  उसका लगभग रोज ही फोन आ जाता,पर दस मिनट की बात चीत से 24 घण्टो की नीरवता कहीं दूर होती है।

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        सोसायटी में सब नये वर्ष का जश्न मना रहे थे।पहली जनवरी का दिन भी सोसायटी में चहल पहल भरा था।जानकी का मन उस शोर गुल में था ही नही,वह तो अकेली फ्लैट में अपनी बॉलकोनी में बैठी थी।अचानक घंटी बजी,अनमने भाव से जानकी ने उठकर दरवाजा खोला तो सामने शैली को खड़ा पाया।आश्चर्य से जानकी शैली को देखती रह गयी।वह तो तरस गयी थी उन्हें देखे हुए।शैली ने अंदर आकर जानकी के चरण स्पर्श कर कहा माँ हम आपको अकेले नही छोड़ सकते,आप यहां अकेली और हम वहां अकेले।माँ वे अब भारत मे ही दो माह के अंदर वापस आ रहे हैं।उन्होंने त्यागपत्र दे दिया है,दो माह बाद उनकी कंपनी उन्हें रिलीव कर देगी।उनके भारत वापस आने तक मैं आपके पास ही रहूँगी।खुशी के अतिरेक में जानकी ने शैली को अपने से कस कर लिपटा लिया।

      रामप्रसाद जी के फोटो के पास जाकर जानकी बोली आप ठीक ही कहते थे बहू दूसरे घर से आयी है,कुछ दिनों में घुलमिल जायेगी।देखो ना वो आ गयी मेरे पास,सुनते हो मुन्ना भी आ रहा है,मेरे पास।फिर जानकी की हिचकी बंध गयी,काश आज तुम भी होते मुन्ना के पापा।

बालेश्वर गुप्ता,नोयडा

मौलिक एवम अप्रकाशित

मोहताज साप्ताहिक शब्द पर आधारित कहानी:

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