ऐसी कैसी औलाद  – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

आज पार्क में घूमने में बड़ा आनन्द आ रहा था मौसम बड़ा सुहाना था । कुछ देर मौसम का आनन्द उठाने के बाद पार्क से घर जाने को बाहर निकलीं तो रोड पर मिसेज शर्मा मिल गई जो हमारी पड़ोसी भी है और हम दोनों हम उम्र भी है ।30 सालों से हमलोग एक मोहल्ले में रहते आए हैं एक दूसरे के परिवार के बारे में अच्छे से वाकिफ हैं ।

मैंने पूंछ लिया अरे मीरा जी आप इस समय बाजार में ,आप तो शाम को बाजार आती नहीं आप तो ज्यादातर दिन में ही बाजार करती है ‌। हां हम तो दिन में ही बाजार करते हैं शाम को कम ही निकलते हैं ‌।वो जरा राजू के पापा की दवाई खत्म हो गई थी और दो तीन सामान और लेना था तो आ गए । क्या करें किससे मंगवाए कोई तो है नहीं घर पर जबसे शर्मा जी बीमार हुए हैं तब से बहुत परेशानी हो गई है। ज़रा ज़रा सा काम के लिए खुद ही भागना पड़ता है।

और राजू के क्या हाल चाल है फोन वोन करता है कि नहीं , अरे नाम न लो उसका मीरा गुस्से से बोली ऐसी औलाद , इससे तो न होता तो तसल्ली कर लेते मीरा गुस्से से बड़बड़ाने लगी आजकल की औलादों को जाने क्या हो गया है उन्हें मां बाप की दौलत तो चाहिए लेकिन मां बाप के लिए कुछ करना नहीं है ।

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                        मिसेज शर्मा के दो बेटियां और एक बेटा राजू है । सभी की शादी हो गई है । बड़ी बेटी इलाहाबाद में है और छोटी बैंगलोर में है और राजू गाजियाबाद में यहां घर पर मिस्टर और मिसेज शर्मा अकेले रहते हैं । रूपये पैसे से सम्पन्न है अभी तीन साल पहले रिटायर हुए हैं अच्छी खासी पेंशन है , रिटायर मेंट के बाद फंड वगैरह भी अच्छा मिला है यहां पर उनका अपना अच्छा बड़ा मकान है ।

                     ् बेटे राजू की नजर हर वक्त मां बाप के पैसों पर रहती है ‌‌‌‌‌‌‌। वो किसी  न किसी बहाने से मां बाप से पैसे निकलवाता रहता है । सबकुछ हमारा है दोनों बहनों के लिए भी सचेत करता रहता हैं उनका हिस्सा नहीं है ।तुम उनकी शादी ब्याह करके रिया सिया को दे चुकी है ।और ये घर भी मेरा है इसमें भी लिया सिया का हिस्सा नहीं है ।और अभी गुड़गांव में फ्लैट खरीदने के नाम पर पच्चीस लाख रूपया दे चुका है ।

                  अभी कुछ समय पहले शर्मा जी को बेनहैमरेज हो चुका था जिससे उनके एक हिस्से में लकवा मार गया था । काफी इलाज चला और फिजियोथेरेपी चली अब काफी समय बाद वो थोड़ा थोड़ा छडी के सहारे चलने लगे हैं ।

                 अभी दीवाली में बेटा बहू घर आए थे डेढ़ साल का पोता है ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌तो  एक   दिन राजू पापा से कहने लगा क्या दिनभर घर में बैठे रहते हो अब तो चल लेते हो थोड़ा थोड़ा पार्क तक चले जाया करो । चलो अच्छा अभी हम बंटी को घुमाने ले जा रहे हैं आप भी वही घूमना ।तो शर्मा जी चले गए । वहां राजू तो मोबाइल पर लग गया और पोता बंटी इधर उधर दौड़ने लगा उसको पकड़ने के चक्कर में शर्मा जी ने  थोड़ा तेजी से कदम बढ़ा दिए बैलेंस न संभाल पाने की वजह से वो गिर पड़े और कंधे की हड्डी टूट गई ।

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फिर अस्पताल ले गए वहां आपरेशन हुआ और राजू को करीब बीस-पच्चीस दिन रूकना पड़ा और पापा का ध्यान भी रखा ‌‌‌। ध्यान रखना तो बस बहाना था ,असल में राजू को अपने ससुर के साथ मिलकर जमीन खरीदनी थी जिसमें आर्गेनिक खेती करनी थी उसके लिए पचास लाख रुपए चाहिए थे ।तो राजू ने पापा को पटा कर चेक पर साइन करा लिए । शर्मा जी थोड़े सीधे सच्चे इंसान हैं और मिसेज शर्मा तेज तर्रार महिला है । मिसेज शर्मा पैसे देने में आना-कानी कर रही थी ।वो राजू से पूंछने लगी कौन कौन ले रहा है साथ में जमीन , कहां पर है पेपर दिखाओ इत्यादि ।इस बात पर राजू बिगड़ गया और मम्मी से झगड़ने लगा । लेकिन इसके पहले वो पापा से चेक पर साइन करा चुकानी था ।

              शर्मा जी का कहना था कि सबकुछ बेटे का ही तो है चाहे अभी दो चाहे बाद में । अपने हाथ से दे देंगे तो हम लोगों की देखभाल करेगा । पैसा तो उसको मिल चुका था अब मीरा नाराज़ हो रही है तो क्या फर्क पड़ता है ।

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                   ज़मीन लेने के करीब बीस दिन बाद राजू वापस चला गया । लेकिन शर्मा जी के कंधे में बराबर दर्द रहता था आपरेशन के बाद भी । फिर डाक्टरों से केस रिफर कराकर फरीदाबाद के अस्पताल ले गए । वहां दिखाया तो पता चला कि आपरेशन सही से नहीं हुआ है । फिर से आपरेशन हुआ और बाकी जो भी परेशानी थी उसका भी इलाज हुआ सब मिलाकर बारह दिन लग गए । फरीदाबाद और गाजियाबाद में कोई ज्यादा दूरी नहीं है । लेकिन वहां राजू एक बार भी नहीं आया न देखने और नहीं फोन पर हाल चाल भी पूछा।

           बड़ी बेटी इसलिए नहीं आ पाई कि उसकी सास अस्पताल में थी और छोटी बेटी के डिलीवरी हुई थी इस लिए नहीं आ पाई । इसी बात से गुस्सा भरा है मिसेज शर्मा में आपरेशन करा कर दोनों घर आ गए ।घर आने पर भी फोन करके भी नहीं पूछता ।

               ऐसे ही जब मिसेज शर्मा से बात हो जाती है तो गुस्सा होकर अपनी भड़ास निकाल देती है ।ऐसी कैसी औलाद दी है भगवान ने ,ने देता तो अच्छा था । क्या करूं बस ऐसे ही अकेले अकेले परेशान हो जाती हूं तो गुस्से में कुछ बोल जाती हूं । कुछ बाजार से लाना हो तो बहुत दिक्कत होती है । पहले शर्मा जी स्कूटर से चले जाते थे अब मुझे ही हर काम को जाना पड़ता है । बेटा लेने को तो सब तैयार बैठा है घर मेरे नाम कर दो , पैसा मेरे नाम कर दो ,लाकर मेरे नाम कर दो लेकिन जिम्मेदारी नहीं उठानी है । करना कुछ नहीं है मां बाप के लिए ।

           मैंने उन्हें समझाया नहीं कर रहा है बेटा न करने दो अपना सबकुछ बेटियों के नाम कर दो बेदखल कर दो सम्पत्ति से बेटे को तो मिसेज शर्मा चुप हो जाती है ।उनका ये भी करने को मन नहीं करता । उनकी भी गलती नहीं है मां है न कैसे बेदखल कर दें । क्या किया जाए  मां बाप का दिल ही ऐसा होता है ।पूत कपूत तो हो सकता है पर माता कुमाता नहीं होती । ईश्वर सद्बुद्धि दे आजकल की औलादों को ।

धन्यवाद

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

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